नमस्कार! स्वागत है आप सभी का Strugglealwaysshine.blogspot.com पर ईश्वरकृष्ण की सांख्यकारिका से सम्बन्धित दो पोस्टो में सांख्यदर्शन के महत्त्वपूर्ण पच्चीस तत्वो की उत्पत्ति,"प्रकृति तत्व" की व्याख्या के बारें में जानकारी प्राप्त कर चुके होंगे अगर आप ने दोनो पोस्ट नही पढी़ है, तो कृपया पढ़ ले ताकि आप आज के Topic को Easily समझ पायेंगे। आज हम सांख्यदर्शन के महत्त्वपूर्ण तत्व" पुरुष" के स्वरूप,पुरुष के अस्तित्व की सिद्धि हेतु तर्क, पुरुषकी अनेकता(बहुत्व) सिद्ध करने के तर्क के बारें में जानेंगे। पुरुषका स्वरूप- सांख्य ने द्वैतवाद में प्रकृति के अतिरिक्त दूसरी सत्ता पुरुष की मानी है। सांख्य दर्शन पुरुष के सम्बन्ध में तीन मूल प्रश्नों पर विचार करता है। (1)पुरुष का स्वरूप क्या है (2)पुरुष के अस्तित्व की सिद्धि हेतु तर्क (3) पुरुषों की अनेकता या बहुत्व सिद्ध करने के तर्क पुरुष का स्वरूप- सांख्य दर्शन में पुरुष का स्वरूप आत्मा से पर्याप्त साम्य रखता है। इसे प्रकृति के विपरीत बताया गया है।सांख्य दर्शन के अनुसार पुरुष की निम्न विशेषताएँ है--- . पुरुष शुद्ध चैतन्यस्वरूप है और सभी अवस्थाओं में चैतन्ययुक्त रहता है। यह प्रकृति के विपरीत निर्गुण स्वरूप है यह ज्ञाता और विषयी है। पुरुष नित्य तथा अपरिणामी है। पुरुष की सत्ता स्वत:सिद्ध हैऔर इसका निषेध करना असम्भव है क्योकि इसका निषेध करने वाला निषेधकर्ता स्वयं पुरुष का ही स्वरूप है। यह सत् और चेतन है किन्तु आनन्दस्वरूप नही है क्योकि सत्व गुण से आनन्द की उत्पत्ति होती हैजबकि पुरुष निर्गुण स्वरूप वाला है। पुरुष कर्ता नही भोक्ता मात्र है यह प्रकृति और उसके विकारों का उसी प्रकार भोग करता है।जैसे राजा स्वयं अन्नोत्पादन नही करते हुए भी अन्न का भोग करता है। सांख्य का पुरुष अन्य दर्शनो के आत्म स्वरूप के समान होते हुए भी कुछ दृष्टियों से भिन्न है। सांख्यदर्शन का पुरुष चावार्कीय देहात्मवाद से भिन्न अपनी नित्य सत्ता स्वीकार करता है। बौद्ध दर्शन मानता है कि आत्मा स्थायी नही है बल्कि चेतना का प्रवाह मात्र है जबकि सांख्य ने पुरुष को नित्य माना है न्याय दर्शन में चेतना को आत्मा का आंगन्तुक गुण मानते हैं जबकि सांख्य के अनुसार चेतना पुरुष का स्वभाव है। भारतीय दर्शनों में आत्मा को सच्चिदानंद तथा एक माना गया है जबकि सांख्य का पुरुष संख्या में अनेक हैं। सांख्य दर्शन में पुरुष की अनेकता सिद्धि के तर्क दिए गए हैं।जो पुरुष की संख्या में बहुत्व को सिद्ध करते हैं। भारतीय दर्शनो के विपरीत सांख्य के अनुसार पुरुष निर्गुण होने से आनंद से रहित है। इस प्रकार सांख्य दर्शन में पुरुष को आत्मा रूप में माना गया है। यह सत् चित् है लेकिन आनंद से रहित है। उसके अस्तित्व की सिद्धि हेतु तर्क**** ईश्वरकृष्ण की सांख्यकारिका में पुरुष की सत्ता सिद्ध करने हेतु पाँच तर्क दिए गए है। जो इस प्रकार है संघातपरार्थत्वात् त्रिगुणादिविपर्ययात् अधिष्ठानात् ।पुरुषो अस्ति भोक्तृभावात् कैवल्यार्थप्रवृत्तेश्च ।। संघात परार्थत्वात् -- यह जगत प्रकृति के तीनो गुणों से निर्मित हैं और जड़, अचेतन है।यह जगत साधन रूप है प्रश्न यह उठता है कि इसका साध्य कौन है ?यदि जड़ पदार्थ को ही इसका साध्य मानें तो अनावस्था दोष पैदा होता है। इसलिए इसका साध्य वही हो सकता है जो चेतन हो तथा इस जगत को भोगने का सामर्थ्य रखता हो अतः सांख्य के पुरुष के स्वरूप के अनुसार इस प्रयोजन की पूर्ति पुरुष ही कर सकता है त्रिगुणादिविपर्ययात्--प्रकृति अपने स्वरूप में त्रिगुणात्मक तथा परिणामी है तो तार्किक दृष्टि से त्रिगुण निर्गुण की ओर संकेत करता है परिणामी अपरिणामी की ओर।यह निर्गुण तथा अपरिणामी तत्व पुरुष है।यह पुरुष की सत्ता सिद्धि का एक प्रमाण यह है। अधिष्ठानात्-- प्रकृति ज्ञेय,विषय तथा जड़ है।जबकि पुरुष अधिष्ठान, ज्ञाता, विषयी तथा चेतन है। भोक्तृभावात्--प्रकृति और उससे उत्पन्न पदार्थ जड़ होने के कारण भोग्य है अतःअतः इसे भोगने के लिए भोक्ता होना चाहिए।और यह भोक्ता वही हो सकता है जो चेतना से युक्त हो। चेैतन्य होने के कारण पुरुष इस प्रकृति का भोक्ता है अत:भोक्तृभाव होने से पुरुष का अस्तित्व सिद्ध होता है। कैवल्यार्थप्रवृत्तेश्च-- प्रकृति का साध्य कैवल्य है अब यह प्रश्न उठता है कि कैवल्य की प्राप्ति किससे होगी । पुरुष की सत्ता का वास्तविक बोध होने पर ही प्राणी कैवल्य अर्थात् मोक्ष प्राप्त कर सकते है। उपर्युुक्त पाँच कारण पुरुष के अस्तित्व को सिद्ध करते है। पुरुषो की अनेकता सिद्धि के तर्क ** सांख्य दर्शन पुरुष या आत्मा की अनेकता सिद्ध करने के लिए तीन तर्क प्रस्तुत करता है जो इस प्रकार है जननमरणकरणानाम् प्रतिनियमात् अयुग्पत्प्रवृत्तेश्च । पुरुष बहुत्वं सिद्धम् त्रैगुण्यविपर्ययात् चैव ।। जननमरणकरणानाम् प्रतिनियमात् -- इस जगत में व्यक्ति का जन्म, मृत्यु और अनुभव भिन्न भिन्न होते है। यदि पुरुष एक ही होता तो प्रत्येक व्यक्ति का जन्म और मृत्यु एक ही समय होते अर्थात् एक व्यक्ति के जन्म से सभी जीवित हो जाते और एक ही की मृत्यु से सभी मर जाते।परन्तु जगत में ऎसा नही देखा जाता है अत: सांख्यदर्शन में पुरुष की बहुत्व सत्ता की सिद्धि इस तर्क द्वारा भी की जाती है। अयुग्प्रवृत्तेश्च- - इस तर्क के अनुसार सभी व्यक्तियों की प्रवृत्ति के परस्पर भिन्न होने का कारण सभी में भिन्न भिन्ऩ पुरुष का होना है। यदि ऎसा नही होता तो एक के हँसने पर सभी हँसते एक के रोने पर सभी रोते त्रैगुण्यविपर्ययात्-- इस तर्क के अनुसार तीनो गुणो की आनुपातिक विभिन्नता पुरुषों की अनेकता सिद्ध करती है। तीनो गुणो की आनुपात में भिन्नता के कारण देवता,राक्षस,मानव योनियाँ पाई जाती है जिसमें सत्व की प्रधानता है वह देवता,जिसमें रजो गुण की प्रधानता वह मनुष्य, जो तमोगुण प्रधान है वह राक्षस योनि का माना जाता है अत:तीनो गुणो की आनुपातिक भिन्नता के कारण मनुष्यो में विभेद पाया जाता है अत: इस विभेद से पुरुषों की अनेकता सिद्ध होती है। Thanks for visiting this blog
पुरूष का बहुतव्व भी डालिये
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