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सोमवार, 11 फ़रवरी 2019
वेदान्तसार- अनुबन्घ चतुष्टय,अज्ञान की शक्तियाँ
वेदान्तसार (Vedantsaar) महत्त्वपूर्ण तथ्य(important facts) अनुबन्ध चतुष्टय क्या है?-"अनुबन्यते अनेनेति अनुबन्ध: " किसी ग्रंथ के अनिवार्य अंग या शर्ते अनुबन्ध कहलाती है। येअनुबंध चार है1 अधिकारी2 संबंध 3 विषय 4. प्रयोजन अधिकारी- वेदांतशास्त्र ग्रंथ को पढ़ने का अधिकारी साधन चतुष्टय सम्पन्न व्यक्ति ही हो सकता है।
वेदान्तसार
साधन चतुष्टय क्या है? ---- विवेक, वैराग्य, शमदम आदि षट् सम्पत्तियो से युक्त, मोक्ष का इच्छुक ये चारो साधन साधन चतुष्टय कहलाते हैअर्थात इन गुणों से संपन्न व्यक्ति ही वेदान्तदर्शन को जानने का अधिकारी है । सम्बन्ध - शुद्ध चैतन्य ब्रह्म इस दर्शन का मूल प्रतिपाद्य (विषय) है और वेदान्त उसका प्रतिपादक प्रमाण है अतः दोनों के बीच प्रतिपाद्य- प्रतिपादक का का संबंध है विषय * वेदांत शास्त्र का विषय जीवन और ब्रह्म की एकता है प्रयोजन - वेदांत शास्त्र का प्रयोजन ब्रह्म और जीव की एकता के सम्बन्ध में अज्ञान की निवृत्ति, अपने वास्तविक स्वरूप "आनंद" की प्राप्ति है। अज्ञान क्या है?- माया,अविद्या, अज्ञान अध्यास,विवर्त आदि शब्दो का प्रयोग वेदान्त में पर्यायवाची के रूप में हुआ है।वेदांत वेदांतदर्शन में ब्रह्म को ही जगत की उत्पत्ति ,स्थिति और प्रलय का कारण माना गया है। जन्म के अतिरिक्त इस संसार में कुछ भी नहीं है "सर्व खल्विदं ब्रह्म,नेह नानास्ति किञ्चन " अर्थात इस जगत में ब्रह्म के अतिरिक्त किसी की भी वास्तविक सत्ता नहीं है जीव और जगत दोनों माया अर्थात अज्ञान के कारण हमें वास्तविक प्रतीत होते हैं जिस प्रकार रज्जु को(रस्सी)अज्ञानवश हम सर्प समझ लेते हैं लेकिन जब हमें दीपक के प्रकाश से "यह तो रज्जु(रस्सी)है सर्प नहीं है"इस प्रकार का बोध होता है। उसी प्रकार अविद्या, माया के कारण जीव जगत को सत्य समझने लगता हैषलेकिन जब यह माया रूपी पर्दा हमारी आँखो से हट जाता है तो मनुष्य को आत्म स्वरूप का ज्ञान होता है। माया या अज्ञान की शक्तियाँ1आवरण शक्ति 2विक्षेप शक्ति अज्ञान की आवरणशक्ति हमारे ज्ञान को ढक लेती है विक्षेप शक्ति के कारण हमें वास्तविक वस्तु के स्थान पर अवास्तविक वस्तु की प्रतीति होती है। धन्यवाद
सुष्ठु:👌
जवाब देंहटाएंसर जी यह ट्रिक तो बहुत अच्छी है
जवाब देंहटाएंप्रोत्साहन के लिए आप का आभार 👏👏👏
हटाएंhttps://www.samskritekinnavidyate.com/2021/05/anubandha-chatushtaya.html?m=1
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