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रविवार, 21 अप्रैल 2019
काव्य के कितने गुण है? ( आचार्य मम्मट के अनुसार)
काव्य आचार्यो ने काव्य के गुण ,काव्य के दोषो पर चर्चा की है। काव्य- गुण किसे कहते है, गुणो के प्रकार कितने है, इस विषय पर यह पोस्ट लिखी जा रही है।इसे पढ़कर आप सभी काव्य के गुणो के बारे में समझ पाएँगें आचार्य मम्मट ने काव्य गुणो को परिभाषित करते हुए कहा है कि
ये रसस्याड्गिनो धर्मो शौर्यादय:इवात्मन: उत्कर्षहेतवस्ते स्युरचलस्थितयो:गुण (काव्यप्रकाश) जिस प्रकार शूरता,वीरता आदि हमारी आत्मा के धर्म है हमारे शरीर के नही उसी प्रकार शब्द अर्थ काव्य के शरीररूप माने गए है और रस को सभी काव्यज्ञों के द्वारा आत्मा कहा गया है। रस काव्य में अंगी माना गया है जबकि गुण अलंकार आदि इसके अंग है अत:काव्य गुण काव्य की आत्मारूप रस को बढानेवाले हेतु (कारण) है ये रसो के साथ निश्चित रूप से उपस्थित होते है। अर्थात् सभी रसो में कोई न।कोई गुण निश्चित रूप से होता ही है। मम्मट के अनुसार गुणो के प्रकार -मम्मट ने अपने काव्यशास्त्रीय ग्रंथ "काव्य प्रकाश "के" अष्टम उल्लास" में काव्य के तीन गुण बताए है उन्होने आचार्य वामन द्वारा बताए 10 गुणो का खण्डन किया है काव्यप्रकाश में मम्मट लिखते है- "माधुर्यौज:प्रसादाख्यास्त्रयस्ते न पुनर्दश " माधुर्य,ओज,प्रसाद नामक ये तीन गुण है दस नही (जैसा कि वामन आदि आचार्यो ने माना है) अत:काव्यगुण तीन है।मम्मट का यह मत सर्वमान्य है।
चित्त की द्रुति का कारण जो आह्लादकता अर्थात् आनन्दस्वरूप है वही माधुर्य गुण है यह श्रृंगार रस में,
करुण रस में और शान्त रस मे होता है। यह
संभोग श्रृंगार से अधिक करुण रस में होता है
,करुण रस से अधिक विप्रलम्भ श्रृंगार रस मे होता है, विप्रलम्भ श्रृंगार से अधिक शान्त रस में होता है।
अत:सबसे अधिक माधुर्य गुण शान्त रस में होता है।
ओजगुण का लक्षण --
दीप्त्यात्मविस्तृतर्हेतुरोजो वीररसस्थिति ।
वीभत्सरौद्ररसयोस्तस्याधिक्यं क्रमेण च
चित्त के विस्तार का कारण ,जो वीर रस में स्थित
दीप्ति है वही ओजहै। दीप्ति या ओज से अभिप्राय
किसी कार्य या वस्तु के प्रतिकूल होने पर उसे दूर करने
या नष्टकरने के लिए प्रेरणा का जो भाव मन मे पैदा होता है। वह ओज गुण है। उपरोक्त लक्षण के अनुसार यह वीर, वीभत्स और रौद्र इन तीनो रसो मे विद्यमान होता है। वीर रस की अपेक्षा वीभत्स रस मे अधिक ओज होता है और वीभत्स रस सेभी अधिक रौद्र रस मे पाया जाता है।
नोट:-- ओज गुण रौद्र रस में सर्वाधिक होता है।
प्रसाद गुण का लक्षण **
शुष्केनाग्निवत् स्वच्छजलवत्सहसैव य:। व्यापनोत्यन्त प्रसादौ असौ सर्वत्र विहितास्थिति:।। प्रसाद गुण की उपमा करते हुए बताया गया है कि जिस प्रकार शुष्क ईंधन में अग्नि आसानी से व्याप्त हो जाती है स्वच्छ जल मे कपडा़ आसानी से घुल जाता है उसी प्रकार काव्य का जो भाव चित्त में आसानी से व्याप्त हो जाताहै। उसमे प्रसादगुण होता है। अर्थात काव्य को पढ़ते ही उसके अर्थ को आसानी से समझा जा सके वहाँ प्रसाद गुण होता है। यह गुण सभी रचनाओ मे होता है।
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