बेटी के दिल की आवाज इस कविता के माध्यम तक आप सभी तक पहुँचने का छोटा प्रयास मैं कर रही हूँ आज हर बेटी,बहन या कह सकते है हर महिला के दिल की यहीं आवाज है केवल महसूस करने की जरूरत है आज बेटियां अपने जीवन को अपने ढंग से जीने और संवारने का हक चाहती है उनके यही सवाल है कि कब तक लगाम उन पर लगेगी,क्या वे आज चारदीवारी में भी सुरक्षित है क्या आज नैतिक शिक्षा की जरूरत पुरुषो को ज्यादा नही है? सभ्य समाज कब तक असभ्यता का आचरण करेगा? आज शायद इन सभी प्रश्नों का उत्तर कोई देने की हिम्मत भले ही नही कर सकता हो लेकिन उनके प्रश्न बिल्कुल सही है आज उन्होने प्रश्न करने की हिम्मत की है बस हर हिन्दुस्तानी को उनके उत्तर खोजने की हिम्मत करनी है जब उनके उत्तर मिल जाए तब उन पर अमल करने की हिम्मत दिखानी है और तब तक नही रुकना है जब तक हम बेटियो से नजर मिलाकर बात नही कर सके। कविता --- "बेटी हूँ एक बहन हूँ मैं "
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कविता
बेटी हूँ एक बहन हू्ँ मैं
लेकिन इन सबसे पहले एक इंसान हूँ
नही चाहती दर्जा विशेष का,लेकिन रखती हूँ हक समानता का
बेटी हूँ एक बहन हूँ मैं
लेकिन इन सबसे पहले एक इंसानहूँ मैं
नही चाहती तुम मुझे महान समझो बस, अपने जैसा एक जीवित इंसान समझो
बेटी हूँ एक बहन हूँ मैं
लेकिन इन सबसे पहले एक इसांन हूँ मैं
नही चाहिए दया तुम्हारी अब लड़ने की, हमारी बारी
बेटी हूँ एक बहन हूँ मैं
लेकिन इन सबसे पहले एक इंसान हूँ मैं
मर्यादा की अब बात ना करो, मर्यादा को तार-तार करने वालो तुम
अब तक हमने बहुत सुधार किया, कभी खुद की ओर तो झाँको तुम
बेटी हूँ बहन हूँ मैं
अब चारदीवारी तोड़ आसमान में उडने की हकदार हूँ मैं,
सभ्य समाज का खौफ दिखाने वालो, पहले सभ्य समाज की तस्वीर तो बनाओ तुम रिश्तो की बाते करते हो ,थोड़ी आत्मियता तो जगाओ तुम
बेटी हूँ एक बहन हूँ मैं
लेकिन इन सबसे पहले एक इंसान हूँ मैं
ईश्वर की अनमोल कृति हूँ खुद में एक ब्रह्माण्ड हूँ मैं
नही चाहिए झूठा सम्मान तुम्हारा, खुद अपना सम्मान हूँ मैं
उम्मीद करती हूँ आपको यह कविता अच्छी लगी होगी आप सभी अपने दोस्तो को शेयर करे इसी तरह की motivational thoughts कविताएं और लेख संस्कृत जीवा (Sanskrit jeeva) इस ब्लॉग पर आपको पढ़ने को मिलेंगे साथ ही संस्कृत की परीक्षा उपयोगी सामग्री भी यहां उपलब्ध है तो संस्कृत जीवा पर विजिट करना ना भूले।
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