चार्वाक दर्शन के संस्थापक बृहस्पति माने जाते हैं इसलिए इसे बार्हस्पति दर्शन भी कहते है।
इसी का प्राचीन नाम लोकायत दर्शन है।
चार्वाक दर्शन सुख को ही जीवन का परम उद्देश्य मानता है।
यह भौतिकता वादी दर्शन है जो वेदों की निंदा करता है।
यह अग्निहोत्र और श्राद्ध का निषेध करता है
चार्वाक दर्शन की दृष्टि में प्रत्यक्ष ही एकमात्र प्रमाण है।
चार्वाक दर्शन ईश्वर और आत्मा का निषेध मानता है।
चार्वाक दर्शन काम को ही एकमात्र पुरुषार्थ मानता है
चार्वाक दर्शन की दृष्टि में मृत्यु ही मोक्ष है।
चार्वाक दर्शन चार तत्वों को मानता है।👉 पृथ्वी जल तेज वायु
यह आकाश को तत्व नहीं मानता है।
चार्वाक दर्शन के सिद्धान्त
प्रत्यक्ष प्रमाणवाद- चार्वाक दर्शन प्रत्यक्ष दिखाई देने वाली वस्तुओं को ही अंतिम सत्य मानता है यह अनुमान शब्द आदि प्रमाणो को नहीं मानता है।
भौतिकतावाद - यह सांसारिक वस्तुओं को अत्यधिक महत्व देता है
भूत चैतन्य वाद - पृथ्वी जल तेज वायु इन 4 महा भूतों के सहयोग से ही शरीर में चेतनता उत्पन्न होती है यह कोई अलौकिक वस्तु नहीं है
ऐहिकसुखवाद- चार्वाक दर्शन पृथ्वीलोक के सुख को ही महत्व देता है इसके अनुसार जो कुछ है वह इसी पृथ्वी पर है इसलिए व्यक्ति को जब तक जीवित है सुख पूर्वक रहना चाहिए इस संबंध में कहा भी गया है जब तक जियो सुख पूर्वक जियो चाहे इसके लिए किसी व्यक्ति से ऋण भी लेना पड़े तो संकोच नहीं करना चाहिए क्योंकि यह मानव जीवन फिर हमें नहीं मिलेगा। इसलिए जब तक रहो सुख पूर्वक रहो
यावजीवेत् सुखम् जीवेत् ऋणम् कृत्वा घृतं पिबेद्
विशेष -
चार्वाक दर्शन,जैन दर्शन,बौद्धदर्शन ये तीनों नास्तिक दर्शन माने जाते हैं।
चार्वाक दर्शन अवैदिक दर्शन में प्राचीनतम दर्शन है।
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