"नायक के भेद" संस्कृत साहित्य में दस रूपक माने गये है धनञ्जय ने अपने दशरूपकम् में रूपक के दस भेद माने है
नाटक,प्रकरण,भाण,व्यायोग
समवकार,डिम ईहामृगअंक,
वीथी,प्रहसन ये रूपक के दस भेद है।
रूपक के 10 प्रकारो में प्रत्येक की अपनी विशिष्टता है।जिसका करण कथानक(वस्तु),नायक(नेता),रस में भिन्नता है नाट्यशास्त्रीय दृष्टि से ये तीनों रूपकों के महत्त्वपूर्ण तत्व है।
इस Post में हम नाट्यशास्त्र के महत्त्वपूर्ण तत्व नेता अथवा नायक की कोटि (प्रकार) के बारे में जानेंगे।
नेता अथवा नायक किसे कहते है सभी रूपकों का एक नायक होता है जिसे अंत में धर्म, अर्थ,कामरूपी फलों में से कोई न कोई फल अवश्य मिलता है। फल प्राप्ति करने वाला नेता (नायक) कहलाता है।
नायक के भेद कितने है?* भरत मुनि और धनञ्जय ने नायक के चार भेद माने है
धीरोदात्त नायक दशरूपक में कहा गया है
"महासत्वो अतिगंभीर: क्षमावानविकत्थन:
स्थिरोनिगूढ़ाहंकारोधीरोदात्तदृढव्रत:।।"
अर्थात् जिसका ह्रदय शोक,क्रोध आदि से अप्रभावित हो, अति गंभीर स्वभाव वाला, दूसरे की गलतियो को क्षमा करने वाला, आत्मप्रशंसा न करने वाला, सुख दुख आदि सभी परिस्थितियों में स्थिर स्वभाव वाला, अहंकार भाव को दबा कर रखने वाला, धैर्य धारण करने वाला,कार्य में दृढ़ता रखने वाला नायक धीरोदात्त होता है। उत्तररामचरित में राम धीरोद्दात्त नायक है। इसी प्रकार अभिज्ञान शाकुन्तलम् का दुष्यन्त इसी श्रेणी का है।
धीरललित नायक * जैसा कि दशरूपककार ने अपने नाट्यशास्त्रीय ग्रंथ दशरूपक के द्वितीय उद्योत में धीरललित नायक के संबंध में कहा है। "निश्तिन्तो धीरललित: कलासक्त: सुखी मृदु:।"
चिन्तामुक्त विविध कलाओ से प्रेम करने वाला भोगो में आसक्त रहने वाला, श्रृंगारप्रिय, सुख भोगने वाला, मृदु स्वभाव, शिष्ट व्यवहार करने वाला नायक धीर ललित कहलाता है।
रत्नावली नाटिका का नायक उदयन,प्रियदर्शिका का नायक धीरललित की श्रेणी में आता है। धीरप्रशांत नायक*"सामान्य गुणयुक्तस्तु धीर प्रशान्तो द्विजादिक:"। नम्रता,उदारता दान आदि गुणो से युक्त ,अति गंभीर शांत चित्त वाला ब्राह्मण कुल में उत्पन्न नायक को धीरप्रशान्त कहते है।
मालती माधव का नायक माधव, मृच्छकटिकम् का नायक चारूदत्त इस श्रेणी में आते है। धीरोद्धत नायक -धीरोद्धत नायक के संबंध में दशरूपक में कहा गया है कि
"दर्पमात्सर्यभूयिष्ठो मायाछद्मपरायण:। धीरोद्धतस्त्वहंकारी चलश्चण्डो विकत्थन:।।" धीरोद्धत नायक शूरता आदि गुणों के अहंकार से युक्त होता है ,वह दूसरों की संपन्नता से ईर्ष्या करने वाला ,माया कपट आदि कर्मों में तत्पर रहने वाला, क्रोधी, अस्थिर स्वभाव वाला और स्वयं की प्रशंसा स्वयं करने वाला होता है। भीमसेन और परशुराम इस श्रेणी के नायक माने जाते है। नाटकादि में नायक के साथ सहनायक भी होते हे जो नायक की सहायता के लिए होते है इनकी भूमिका भी महत्त्वपूर्ण होती है। मंत्री, विदूषक ,विदूषक, पुरोहित सहनायक होते है।
उम्मीद है आप सभी नायक की प्रकृति के आधार में भेदो के बारें में जान गए होंगे।
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