वेणीसंहार नाटक का परिचय :वेणीसंहार संस्कृत साहित्य का एक प्रसिद्ध नाटक है जिसके नाटककार भट्टनारायण है इस नाटक में सर्गों की संख्या 6है।इस नाटक का प्रमुख उद्देश्य दुर्योधन के रक्त से द्रौपदी की वेणी संवारना है। नाटक का नायक- भीमसेन अथवा युधिष्ठिर में से ।इस नाटक का नायक कौन है?इस प्रश्न के जवाब में विद्वानो के मत में एकरूपता नही है।
भीमसेन को नाटक का नायक मानने वालो का तर्क है कि इस नाटक का उ्देश्य दुर्योधन का वध है ताकि द्रौपदी कि दुर्योधन के रक्त से द्रौपदी की वेणी (चोटी)बाँध सके।भीमसेन ने भी धूतसभा में द्रौपदी के अपमान का बदला लेने के लिए दुर्योधन का वध करने की प्रतिज्ञा की थी।
इन दोनो प्रतिज्ञाओ को भीमसेन ने पूर्ण किया अत:भीमसेन को इस नाटक का नायक मानना ही उपयुक्त है ।
युधिष्ठिर को इस नाटक का नायक मानने वालो का तर्क है कि अंत में युधिष्ठिर को ही राज्य की प्राप्ति होती है युधिष्ठिर को ही राजा बनाया है।इस लिए युधिष्ठिर को ही नायक मानना ही तर्क संगत है। दोनो मतो केआधार पर अगर निष्कर्ष रूप में माने तो भीमसेन को ही इस नाटक का नायक मानना चाहिए ।क्योकि इस नाटक का प्रमुख उद्देश्य वेणीसंहार है राज्य की प्राप्ति नाटक का गौण उद्देश्य है।
नाटक में सर्ग**6 नाटक का प्रमुख रस**वीर नाटक की रीति**गौडी नाटक में गुण**ओज नायिका** द्रौपदी (जो स्वकीया,प्रौढ़ा और राजमहिषी है) प्रतिनायक**दुर्योधन वेणासंहार नाटक की कथावस्तु **वेणी संहार नाटक की घटना वस्तु महाभारत से संग्रहित है।राज सभा में दुशासन ने द्रौपदी का अपमान किया था इस पर द्रौपदी ने प्रण किया था कि जब तक मेरे अपमान का बदला नहीं लिया जाएगा तब तक मेरी वेणी (चोटी) नही बँधेगी मैं अपने बालों को खुला रखूंँगी इसी घटना को लेकर कथा आगे बढती है किस प्रकार यह प्रतिज्ञा पूर्ण होती है इसी उद्देश्य को लेकर यह नाटक रचा गया है।
वेणीसंहार नाटक का अंको में विभाजन **इस नाटक में कुल षष्ठ(6) अंक हैं। प्रत्येक अंक में घटित घटना को यहां क्रमबद्ध रूप में प्रस्तुत किया जा रहा है।
प्रथम अंक ** सूत्रधार द्वारा प्रस्तावना में सूचित किया जाता है कि कृष्ण संधि प्रस्ताव लेकर कौरवों के पास गए हैं इस कथन को सुनकर द्रौपदी और भीम का युधिष्ठिर के प्रति विरोध कथन , कौरवो द्वारा श्रीकृष्ण द्वारा लाए गए संधि प्रस्ताव को अस्वीकार करने से श्रीकृष्ण का पुनः पांडवों के पास लौट आना ,क्रोधित युधिष्ठिर द्वारा युद्ध की घोषणा। युद्ध की घोषणा को सुनकर भीम एवं सहदेव युद्ध भूमि में प्रस्थान करने के लिए द्रौपदी से अनुमति माँगते है। द्वितीय अंक** दुर्योधन की रानी भानुमति एक दुस्वप्न देखना है उसके निवारणार्थ देव पूजा करना, रानी भानुमती के पास दुर्योधन का आगमन , दोनों के परस्पर प्रेमालाप का वर्णन इसी अवसर पर जयद्रथ की माता का आगमन जो बताती है कि अभिमन्यु के वध से दुखित अर्जुन ने जयद्रथ वध की प्रतिज्ञा की है।यह सुनकर दुर्योधन का युद्ध के लिए प्रस्थान करना। तृतीय अंक** इस अंक के प्रारंभ में राक्षस और राक्षसी की वार्ता से भयंकर युद्ध और द्रोणाचार्य के वध की सूचना मिलती है इसी बीच पिता के वध से क्रुद्ध अश्वत्थामा का प्रवेश, कृपाचार्य द्वारा उस् सांत्वना देना ,दुर्योधन के समक्ष अश्वत्थामा को सेनापति बनाने का प्रस्ताव रखना,किन्तु दुर्योधन कर्ण को सेनापति बनाने का वचन दे चुका था यह सुनकर कर्ण और अश्वत्थामा में कटु वार्तालाप होता है। अश्वत्थामा कर्ण के जीवित रहने तक शस्त्र नहीं उठाने की प्रतिज्ञा करता हैऔर वहाँ से चला जाता है।
चतुर्थ अंक** दु:शासन का भीमसेन द्वारा वध की सूचना प्राप्ति, कर्ण के पुत्र वृषसेन के वध की सूचना, दुर्योधन पुनः रणभूमि में जाना चाहता है लेकिन इसी बीच उसके माता पिता धृतराष्ट्र और गांधारी आ जाते हैं।
पंचम अंक** इस अंक में गांधारी और धृतराष्ट्र दुर्योधन को समझा कर संधि करना चाहते हैं लेकिन दुर्योधन उनके प्रस्ताव को ठुकरा देता है इसी बीच कर्ण वध की सूचना प्राप्त होती है।दुर्योधन कर्ण के वध पर विलाप करके उसका बदला लेने के लिए युद्ध भूमि में जाने के लिए तैयार होता है।उसी समय भीमसेन और अर्जुन दुर्योधन के माता पिता को प्रणाम करने के लिए आते हैं भीम और दुर्योधन के बीच वाक् युद्ध होता है अर्जुन भीम को समझा कर पुन: युद्धभूमि में अपने साथ ले जाते हैं। कर्ण वध की सूचना पाकर अश्वत्थामा का दुर्योधन के पास आना आदि घटनाएं इस अंक में होती है। षष्ठ अंक** दुर्योधन युद्ध के डर से एक तालाब में छिप जाता है किन्तु उसे कृष्ण खोज निकालते हैं।श्रीकृष्ण युधिष्ठिर के पास संदेश भेजते हैं कि भीम एवं दुर्योधन का गदा युद्ध का आरंभ हो गया है और इस युद्ध में भीम की विजय निश्चित है। इससे बीच नाटकीय कथा वस्तु में नवीन परिवर्तन होता है एक राक्षस, जो दुर्योधन का मित्र है वह चार्वाक मुनि का रूप धारण कर युधिष्ठिर के पास आता है और कहता है कि गदायुद्ध में भीमसेन मारे गए हैं ।यह सुनकर द्रौपदी और युधिष्ठिर अतिशोक से व्याप्त मरने के लिए तैयार हो जाते है। इसी बीच रक्त से लथपथ भीम का आगमन होता है युधिष्ठिर उसे दुर्योधन समझते हैं और शस्त्र धारण करते है द्रौपदी छिप जाती है लेकिन भीम उसे पकड़ लेते हैं।युधिष्ठिर उसे दुर्योधन मान कर युद्ध करना चाहते हैं लेकिन उन्हें वास्तविकता का ज्ञान हो जाता है। तवब प्रसन्न होकर भीम सेन द्रौपदी की वेणी सजाता है उसी समय कृष्ण और अर्जुन मंच पर आ जाते हैं और भरतवाक्य के साथ नाटक का सकुशल समापन होता है।
विशेष इस नाटक का नायक भीमसेन धीरोद्धत नायक है।
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