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आज हम महाभारत के महान चरित्र के रूप मे पहचाने जाने वाले नीति के वेत्ता ,धर्मनिष्ठ,सत्यभाषी महात्मा "विदुर" का चरित्र, उनके द्वारा बताई गई "नीति" के बारे में जानेंगे
दोस्तो, "विदुरनीति "महाभारत का बहुत ही महत्वपूर्ण और प्रेरणादायी अंश है जो महाभारत के उद्योग पर्व केअध्याय 33 से अध्याय 40 में है।
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विदुर चरित्र#विदुरनीति
विदुर धृतराष्ट्र और पाण्डु के भाई थे। वे महाराज विचित्रवीर्य की दासी के गर्भ से उत्पन्न हुए थे । महर्षि माण्डव्य के शाप से इन्हे शूद्रयोनि में जन्म लेना पड़ा था।ये बडे ही बुद्धिमान,नीतिज्ञ,भगवद्भक्त और सदाचारी थे। ये धृतराष्ट्र के मन्त्री थे धृतराष्ट्र हर कार्य में इनकी सलाह आवश्यक मानते थे। पाण्डव और कौरवो के प्रति उनकी समान सहानुभूति थी लेकिन दुर्योधन के पाण्डवो पर अत्याचारो को देखकर इनकी सहानुभूति पाण्डवो के प्रति बढ़ गई ।विदुर साक्षात् धर्म के अवतार थे। वे जानते थे कि पाण्डवो पर कितनी विपत्तियाँ क्यो नही न आवे लेकिन अंत में विजय पाण्डवो की ही होने वाली है "यतो धर्मस्ततो जय:।" ये पाण्डवो को हर संकट से बाहर रखने का प्रयत्न करते थे हर संकट की समय से पूर्व पहचान जाने पर पाण्डवो को प्रत्यक्ष अथवा अप्रत्यक्ष रूप में सावधान करने का कार्य करते थे जब इनको दुर्योधन द्वारा पाण्डवो को लाक्षाग्रह मे जलाकर मारने की युक्ति का आभास हुआ तो विदुर जी ने वरणावत जा रहे पाण्डवो को सचेत करने के लिए म्लेच्छ भाषा में ही युधिष्ठिर को उन सभी पर आने वाली विपत्ति की सूचना दे दी और साथ ही बचने का उपाय भी समझा दिया इतना ही नही पहले से ही सुरंग बनवा दी उनकी सूझबूझ और दूरदर्शिता के कारण ही सभी पाण्डव सकुशल बच निकले ।ये समय समय पर धृतराष्ट्र को दुर्योधन के मोह से बाहर निकालने का प्रयत्न करते रहते थे।धूतक्रीडा का भी इन्होने प्रबल विरोध किया अगर धृतराष्ट्र उनकी सच्ची, हितपूर्ण,धर्मयुक्त सलाह को मान लेते तो महाभारत के युद्ध का वीभत्स ,विनाशक परिणाम कभी सामने नही आता ।विदुरजी ज्ञानी और तत्वदर्शी होने के साथ साथ अनन्य भगवद्भक्त भी थे। इसी कारण श्रीकृष्ण जब पाण्डवो के दूत बनकर हस्तिनापुर आए तो उन्होने दुर्योधन के यहाँ भोजन करने मना कर दिया और विदुर जी के यहाँ भोजन किया अत: श्री कृष्ण भी उनके प्रति बहुत ही अनुराग रखते थे। विदुरनीति अध्याय 34 का सार ----जुए में पराजित पाण्डवों के वनवास चले जाने पर धृतराष्ट्र चिन्तित रहने लगे ।एक समय धृतराष्ट्र को रात को नींद नही आई तब उन्होने रात में ही विदुर जी को बुलाकर उनसे शान्ति का उपाय पूछा। उस समय विदुरजी जी ने धृतराष्ट्र धर्म औरनीति का जो सुंदर उपदेश दिया वह विदुर नीति के नाम से उद्योग पर्व के तैंतीस से चालीस तक आठ अध्यायों में संग्रहित है। |
विदुर नीति के 34 वे अध्याय का सार |
विदुर जी धृतराष्ट्र को कहते है कि मैं कुरु वंशियों के लिए
हितकर बात बताऊंगा वे धृतराष्ट्र से कहते है कि आप
कपटपूर्ण व अनुचित साधन वाले कामों पर आसक्त न हो। यदि
कोई कार्य उचित उपायो से सिद्ध न हो तो ग्लानी नहीं करनी चाहिए
धीर पुरुष को विचार करके कार्य करना चाहिए जल्दी में कोई कार्य आरंभ नहीं करना चाहिए।
लाभ,हानि,कोश,दण्ड को जानने वाले राजा का ही राज्य
टिक सकता है।धर्म और अर्थ का ज्ञानी ही राज्य पर अधिकार रख सकता है।
अविनयशीलता सम्पत्ति को नष्ट कर देती है
लोभ से प्राणी का विनाश होता है।
कल्याण के इच्छुक को पचने योग्य व हितकारी वस्तु ही खानी चाहिए
वृक्ष के कच्चे फल को तोड़ने से बीज भी नष्ट हो जाता है। राजा को शांत वृति से कर ग्रहण करना चाहिए।
मनुष्य को कर्म फल को सोचकर कर्म करना चाहिए नित्य असंभव को करने पुरुषार्थ व्यर्थ जाता है।
निष्फल क्रोध व प्रसन्नता वाले राजा को प्रजा नहीं चाहती हैं।
कोमल सृष्टि वाले राजा से प्रजा प्रेम करती है।
जो राजा शक्तिहीन होने पर भी शक्ति संपन्न दिखाई देता है उसका विनाश नहीं होता है।
दृष्टि मन वचन कर्म से प्रजा को प्रसन्न रखने वालों से प्रजा प्रसन्न रहती है
भयभीत प्रजा राजा का परित्याग कर देती हैं।
अन्याय में स्थित राजा का राज्य नष्ट हो जाता है।
धर्म पालक राजा का ऐश्वार्य बढ़ता है और अधर्मी राजा की भूमि सिकुड़ जाती है।
राज्य की रक्षा का उपाय किया जाना चाहिए।
राज्य लक्ष्मी परमात्मा को नहीं छोड़ती है।
पागल व बातूनी से भी तत्व की बात ग्रहण करनी चाहिए ।
राजा लोग गुप्तरुपी नेत्रों से देखते हैं।
आसानी से दूध देने से वाली गाय को कष्ट नहीं होता
स्वयं झुकी हुई लकड़ी को लोग को और नहीं झुकाते हैं।
धीर पुरुष को बलवान के सामने झुक जाना चाहिए
कुल की रक्षा सदाचार से होती है। अनाज आदि की रक्षा तौल से होती है।
चरित्रहीन का कुल श्रेष्ठ नहीं होता है।
ईर्ष्या करने वाले का रोग असाध्य होता है
धनी मध्यम व निर्धन के भोजन में क्रमश मांस, दूध-दही तथा तेल की अधिकता होती हैं।
दरिद्र लोग सदा स्वादिष्ट भोजन करते हैं ।धनवानों में भोजन करने की शक्ति नहीं होती ।
धीरता युक्त राजा की राज्य लक्ष्मी अत्यंत सेवा करती है ।
वशीभूत आत्मा "मित्र "व अनियंत्रित आत्मा "शत्रु" है।
इन्द्रीय रूपी शत्रुओ को न जीतने वाला राजा सदा पराजित होता हैं
पापियों के साथ कभी मेल नही करना चाहिए।
पांच विषयों की ओर दौडने वालों को भी विपत्तियां जकड़ लेती हैं
गुणवान पुरुषों का बल केवल क्षमा है।
वाणी पर नियंत्रण बहुत कठिन माना गया है।
दूषित शब्दों वाली वाणी अनर्थ का कारण बनती है।कटु।
वचनोंसे किया गया घाव नहीं भरता है।वाणी रूपी कांटे को
निकालना संभव नहीं है।
जिस प्रकार अनसूया ,आर्जव,शौच दुष्टो के गुण नहीं हो सकते है।उसी प्रकार आत्मज्ञान ,अचंचलता आदि गुण अधम पुरुष
में नहीं पाए जाते। देवता जिसे पराजित करना चाहते हैं उसकी बुद्धि हर लेते हैं।
देवता जिसकी विजय चाहते है उसे बुद्धियुक्त कर देते है।
विशेष- विदुर नीति के चौंतीस वे अध्याय में कुछ 86 श्लोक हैं
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