Mrichchhkatikam important points
Mrichchhkatikam संस्कृत साहित्य में रूपको के अन्तर्गत प्रकरण विधा है।जिसके रचयिता शूद्रक है।इसके 10अंक है। जिसमे दरिद्र चारुदत्त और वसन्तसेना की प्रणय कथा वर्णित है।इस प्रकरण मे तत्कालीन सामाजिक,आर्थिक परिस्थितियो का वर्णन बहुत स्वाभाविक रूप मे हुआ है।
Mrichchhkatikam से संबधित महत्त्वपूर्ण तथ्यों का वर्णन नीचे किया जा रहा है आप इनका अध्ययन अवश्य करे ताकि संस्कृत की किसी भी प्रतियोगी परीक्षा मे पूछे जाने वाले प्रश्नो के सही उत्तर आसानी से दे सके।
मृच्छकटिकम् रुपको के 10 प्रकारों में प्रकरण माना जाता है।
मृच्छकटिकम् का नायक चारुदत्त एक दरिद्र ब्राह्मण है और गणिका वसन्तसेना नायिका है। दोनो का निवासस्थान उज्ज़यिनी है। चारुदत्त का मित्र और प्रकरण का विदूषक मैत्रय है और चारुदत्त की सेविका का नाम रदनिका है। प्रतिनायक शकार है जो राजा पालक का साला है। वह वसन्तसेना को पाना चाहता है जबकि वसन्तसेना उसे पसन्द नही करती है। चारुदत्त की पत्नी धूता है जो इस प्रकरण की कुलजा नायिका है। वसन्तसेना प्रथम अंक मे अपने आभूषणो को चारुदत्त के घर मे छिपाती है
तीसरे अंक मे शर्विलक नामक चौर आभूषणो को चुरा लेता है न्यास के रूप मे रखे आभूषणो के चोरी होने से दुःखी चारुदत्त को देखकर धूता पत्नी अपने रत्नावली आभूषण को वसन्तसेना के लिए देती है जिसे वसन्तसेना अस्वीकार करती है।रोहसेन चारुदत्त का पुत्र है जो स्वर्ण से बनी शकिटा (गाडी) के लिए जिद करता है तो वसन्तसेना उसे अपने आभूषण गाडी बनाने के लिए देती है। मृच्छकटिकम्(Mrichchhkatikam)प्रकरण#शूद्रक कुमारसंभव महाकाव्य#कालिदास का कुमारसंभव
मदनिका शर्विलक की प्रमिका हैऔर वसन्तसेना की सेविका है जिसे दासत्व से मुक्त करने के लिए शर्विलक चारुदत के यहाँ चोरी करता है। धूतकर संवाहक चारुदत्त का पुराना सेवक है जो चारुदत्त के निर्धन होने पर जुआरी बन जाता है जुए में हारने पर वसंतसेना अपने आभूषणों को देकर उसे ऋण से मुक्त कराती है। यह संवाहक बाद में बौद्ध भिक्षु बन जाता है जो शकार द्वारा गला धोटकर मूर्छित वसन्तसेना के प्राणों की रक्षा करता है।शकार वसंतसेना को मरी हुई समझकर उसकी मृत्यु का आरोप चारुदत्त पर लगाता है।
शर्विलक के मित्र का नाम आर्यक है। जिसेेेे राजा पालक बंदी बनाता है। लेकिन वह कैद से छूट जाता है राजा पालक को हराकर स्वयं राजा बनता है ।
चारुदत्त को वसंतसेना की मृत्यु के अपराध में मृत्युदंड की सजा सुनाई जाती है तब संवाहक वसंतसेना को लेकर उसी स्थान पर पहुंचता है जहां चारुदत्त्त को फांसी दी जा रही थी अंत में चारुदत्त निर्दोष साबित होता है और शकार को दोषी माना जाता है राजा आर्यक शकार को दंड देते हैं। लेकिन चारुदत्त उसे क्षमा कर देता है। प्रकरण का सखद अंत होता है चारुदत्त और वसंतसेना का मिलन होता है वसंतसेना को वधू शब्द से सुशोभित किया जाता है
याद रखे
मृच्छकटिकम् का अंगी प्रधान रस -श्रॄंगार रस ।
श्लोको की संख्या -380 ।
प्राकृत भाषा के सात प्रकारों का प्रयोग हुआ है।
संस्कृत बोलने वाले पात्रों की कुल संख्या-6
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