प्रकृति की सता#poem on lockdown |
इस महामारी ने अहम से आसमान मे
उडने वालो को भी जमीन पर ला दिया।
जो भूल गये थे घर का रास्ता
उसे घर का आंगन याद दिला दिया
जो आज तक नियम कानूनो को
जो आज तक नियम कानूनो को
अपने हाथ की कटपुतली समझते रहे।
आज कुदरत की मार ने उन्हे जंजीरो मे लिपटा दिया।
प्रकृति पर अत्याचार कर प्रभुत्व समझने वाले
आज कुदरत की मार ने उन्हे जंजीरो मे लिपटा दिया।
प्रकृति पर अत्याचार कर प्रभुत्व समझने वाले
दानवो को नही पता कि खुद उसका अस्तित्व कितना है।
प्रकृति से अपने को ऊँचा समझा...
प्रकृति से अपने को ऊँचा समझा...
तो बेशक उसका अस्तित्व मिटना है।
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