गुरुवार, 8 अक्टूबर 2020

संस्कृत शिक्षण की विधियाँ(sanskrit teaching methods) संस्कृत शिक्षण की नवीन विधियाँ # विश्लेषणात्मक विधि#हरबर्टीय पंचपदी विधि#मूल्यांकन विधि#

  संस्कृत शिक्षण की विभिन्न विधियाँ

 "विश्लेषणात्मक विधि " यह विधि पूर्ण से अंश के प्रति  शिक्षण सूत्र परआधारित है ।

जैसा कि नाम से स्पष्ट होता है इस विधि में शिक्षक पहले तो पाठ के संपूर्ण अंशो को वर्गीकृत करता है फिर एक- एक अंश को ग्रहण कर उसका विश्लेषण करता है।

 संस्कृत शिक्षण में  यह विधि विशेष रूप से व्याकरण शिक्षण और कथा शिक्षण में प्रयुक्त होती है। उदाहरण के तौर पर समझ सकते है कि "संधि प्रकरण" का ज्ञान छात्रों को देना है  तो शिक्षक सर्वप्रथम संधि के सभी प्रकारों के बारे में बताता है। तत्पश्चात सभी प्रकारो के अंतर्गत आने वाली सभी संधियों को एक-एक करके समझाता है।

 इसी प्रकार संस्कृत में कक्षा शिक्षण कराते समय शिक्षक इस विधि के माध्यम से सर्वप्रथम संपूर्ण कथा का सार संक्षेप में सुनाता है  उसके पश्चात वह कथा मे आने वाली घटनाओ को क्रमबद्धरूप में प्रस्तुत  करता है । सभी पात्रों का एक-एक कर के वर्णन करता है। जिससे कथावस्तु छात्रों को अच्छी प्रकार से समझ में आती है।

विश्लेषणात्मक विधि के गुण

 इस विधि के माध्यम से शिक्षण कराने पर कठिन अंशों को समझाना आसान होता है, जिससे छात्र पढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं।

 विश्लेषणात्मक विधि के दोष

 सभी प्रकार की विधाओं के शिक्षण में यह विधि प्रयुक्त नहीं की जा सकती।  

हरबर्टीय पंचपदी विधि  प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री एवं मनोवैज्ञानिक हरबर्ट  महोदय के सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए उनके शिष्यों रेन और शिलर ने पंच पदों से युक्त इस शिक्षण विधि को प्रस्तुत किया। 

पूर्व में हरबर्ट महोदय ने चार सोपानो से युक्त शिक्षण की एक प्रणाली प्रस्तुत की। जिसके चार सोपान निम्नलिखित है

1 स्पष्टता

2 सम्बद्धता(तुलना)

3 व्यवस्था(सामान्यकीरण)

4 विधि(प्रयोग)


 इसी शिक्षण प्रणाली में संशोधन करते हुए 4 पदों में एक पद और जोड़ते हुए इस विधि को प्रस्तुत किया जिसे हरबर्टीय पंचपदी विधि कहते हैं । 

हरबर्टीय  पंचपदी विधि के पांच सोपान 

1 प्रस्तावना

2 विषयोपस्थापना

3 तुलना

4 सामान्यीकरण

5 प्रयोग

 प्रस्तावना छात्रों के पूर्व ज्ञान को नवीन ज्ञान से जोड़ने के लिए शिक्षक छात्रों से कुछ प्रश्न पूछता है। जिसमें अंतिम प्रश्न समस्यात्मक होता है उस समस्या प्रश्न के आधार पर ही शिक्षक नवीन ज्ञान नवीन  की भूमिका तैयार करता है इन प्रस्तावना  प्रश्नों को पूछने का मुख्य उद्देश्य  यह ज्ञात करना है कि छात्र किसी विषय में कहां तक जानकारी रखते हैं और कहां से उन्हें नवीन जानकारी देनी है।  

प्रस्तावना प्रश्नों को तैयार करने के लिए शिक्षक किसी कथा को छात्रों के सामने सुना सकता है और उसमें से प्रश्न पूछ सकता है या किसी मानचित्र को दिखा कर या किसी प्रत्यक्ष वस्तु का उदाहरण देकर प्रश्न पूछता है प्रस्तावना प्रश्न में अंतिम प्रश्न समस्यात्मक होना आवश्यक है।

प्रस्तावना प्रश्नो को तैयार करते समय छात्रों की योग्यताओं,उम्र,रुचियो को ध्यान रखना आवश्यक है।तब ही प्रस्तावना की सफलता की संभावना बढ़ती है।


 विषयोपस्थापन प्रस्तावना प्रश्न पूछने के पश्चात शिक्षक इस सोपान का अनुसरण करता है इस सोपान में उद्देश्य कथन के साथ विषय का प्रस्तुतीकरण किया जाता है कक्षाकक्ष मे पढ़ाने के लिए शिक्षक द्वारा कक्षा में की जाने वाली क्रियाओं को सम्मिलित रूप से प्रस्तुतीकरण कहते हैं।

 गद्य पद्य व्याकरण आदि विधाओं के लिए प्रस्तुतीकरण का ढंग एक जैसा नहीं होता  जैसे पद्य पाठ में सस्वर वाचन होता है जबकि गद्य में नहीं

 तुलना काठिन्य निवारण के लिए शिक्षक द्वारा दृश्य श्रव्य समग्री का प्रयोग करना ही इस सोपान के अन्तर्गत आता है।

सामान्यीकरण पढाये गये पाठ का सार ,निष्कर्ष,नियम को शिक्षक द्वारा निकलवाना सामान्यीकरण है।

 जैस व्याकरण पाठ को विभिन्न उदाहरणो द्वारा  स्पष्ट करने के पश्चात शिक्षक उससे संबंधित नियम को छात्रों के सामने रखता है।

 इसी प्रकार गद्य पद्य पाठ का सार बताना या छात्रों से पूछना इस सोपान के अंतर्गत आता है।

 सामान्यी करण का मुख्य उद्देश्य पढी हुई विषय वस्तु कोछात्रों के लिए स्पष्ट रूप से बोधगम्य बनाना है।


प्रयोग  पाठ पढ़ाने के अंत में शिक्षक द्वारा दिया गया कक्षा कार्य ,गृह कार्य या अभ्यास कार्य इस सोपान के अंतर्गत आता है। 

इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों द्वारा प्राप्त ज्ञान को परिपुष्ट करना है ।

 जिससे उनका ज्ञान चिरस्थायी हो और वह भविष्य में उसका प्रयोग करने में सक्षम बने

हरबर्टीय पंचपदी विधि के गुण

 यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित है।

 इस विधि द्वारा शिक्षण क्रमबद्ध होता है।

 इसमें शिक्षण बोधगम्य हो जाता है।

  विधि के दोष

 सभी विषयों के शिक्षण में उपयोगी नहीं है जैसे विज्ञान विषय का शिक्षण इस विधि से नहीं किया जा सकता है। 

यह विधि  संस्कृत शिक्षण की सभी विधाओं के लिए प्रभावशाली नहीं है। 

 मूल्यांकन विधि  यह हरबर्ट की पंचपदी विधि का विकसित रूप है इसमें शिक्षक शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रत्येक सोपान में कक्षानुरूप क्रियाकलापों का संयोजन कर मूल्यांकन करता है जिससे उसे अपने शिक्षण कार्य की सफलता के संबंध में  संदेह नहीं रहता  शिक्षण कार्य मेंसुधार की अपेक्षा रहने पर उसमें सुधार कर सकता है ।

मूल्यांकन विधि के सोपान इसमें छह सोपान है ।

उद्देश्यों का निर्धारण करना

  उद्देश्यों को व्यवहार में लिखना

 पाठ्य बिंदु 

शिक्षक कार्य 

छात्र कार्य 

मूल्यांकन

 मूल्यांकन विधि के गुण 

यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है।

इसमें शिक्षक और छात्र दोनों सक्रिय रहते हैं  शिक्षक छात्रों को  अभिप्रेरित करता है और पुनर्बलन  का अवसर मिलता है।

 


शिक्षक को अपने शिक्षण कार्य में सुधार की दिशा का ज्ञान होता है

शिक्षण के नवीनतम उपागम या नवीनतम विधियाँ

संस्कृत भाषा के शिक्षण को और अधिक सहज, सरल और प्रभावी बनाने के लिए आधुनिक युग में नए ढंग से शिक्षण कार्य किये जा रहे है जिसका उदेश्य संस्कृत भाषा को रटने की प्रवृति को दूर कर उसके सिद्धांतों को बोधगम्य बनाना, छात्रो में चिन्तन शक्ति का विकास करना है। यह सभी नवाचार संस्कृत शिक्षण की नवीनतम उपागम के अंतर्गत आते हैं।
  
संस्कृत शिक्षण के नवीनतम उपागम इस प्रकार है
 सूक्ष्म शिक्षण उपागम 
 समस्या समाधान उपागम
 प्रयोजना कार्य
 दल शिक्षण
 पर्यवेक्षण आधारित अध्ययन
 अभिक्रमित अनुदेशन 
संप्रेषण आधारित शिक्षण
 संग्रन्थन उपागम
निदानात्मक और उपचारात्मक परीक्षण

यहयह सभी नवाचार संस्कृत शिक्षण की नवीनतम उपागम के अंतर्गत आते हैं। सभी नवाचार संस्कृत शिक्षण की नवीनतम उपागम के अंतर्गत आते हैं।

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 धन्यवाद







 

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