शुक्रवार, 18 जनवरी 2019

कुमारसम्भव महाकाव्य की प्रसिद्ध सूक्तियाँ


महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य कुमारसम्भव में बहुत ही सुन्दर सूक्तियो का प्रयोग किया है जो उनके महाकाव्य की शोभा को बढा़कर दुगुना करने में सफल रही है उनके द्वारा तपस्या करती पार्वती के मुख से जो कहलवाया गया है वह उनकी वाक्पटुता का साक्षी है, पार्वती की परीक्षा लेने आए ब्रह्मचारी रूप में शिव के माध्यम से जो कथन कहे गए है वह महाकवि कालिदास की विदत्ता के पर्याय है।                                              यह भी पढ़े    संस्कृत नाट्य साहित्य में कालीदास का स्थान**                                                                                                                            अभिज्ञान शाकुन्तलम् महाकाव्य के पंचम सर्ग की कथावस्तु                                                                                                                            कुमारसम्भव महाकाव्य महाकाव्य की प्रसिद्ध सूक्तियाँ-(1)शरीरमाद्यं खलु धर्मसाधनम् ।(2) पर्याप्तपुष्पस्तबकानम्रा संचारिणी पल्लविनी लतेव। (3)वागर्थाविव सम्पृक्तौ वागर्थप्रतिपत्तये ।(4)फलानुमेया:प्रारम्भा:संस्कारा:प्राक्तना इव ।(5)श्रद्धेव साक्षाद् विधिनोपपन्ना। (6)अपवाद इवोत्सर्गा व्यावर्तयितुमीश्वर:।(7)आसीत् महाक्षितामाद्य:प्रणवछन्दसामिव। (8)मार्गं मनुष्येश्वरधर्मपत्नी श्रुतेरिवार्थ स्मृतिरन्वगच्छत् ।(9)कठिना:खलु स्त्रिय:।(10)प्रियेषु सौभाग्यफला हि चारुता। (11)न धर्मवृद्धेषु वय:समीक्ष्यते। (12)न रत्नमन्विष्यति मृग्यते हि तत्। (13)क्लेन फलेन हि पुनर्नवतां विधत्ते ।              

ये सभी सूक्तियाँ ज्ञान की भंडार है इनमे जीवन के वास्तविक अनुभव की झलक स्पष्ट दिखाई देती है महाकवि कालिदास  द्वारा प्रयुक्त ये सभी सूक्तियाँ महाकाव्य में उत्कर्ष को बढा़ने वाली है।

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