Shobha Srishti यह" संस्कृत विषय एवं प्रेरणासम्बंधित ब्लॉग है, Motivational and Education Category blog
▼
रविवार, 25 नवंबर 2018
बुधवार, 21 नवंबर 2018
"अभिज्ञान-शाकुन्तलम्" नाटक के" पंचम सर्ग" की कथावस्तु-------महाकवि कालिदास
b>"अभिज्ञान-शाकुन्तलम्" नाटक के" पंचम सर्ग" की कथावस्तु-------------शार्ड्गरव,शारद्वत और गौतमी शकुंतला को लेकर हस्तिनापुर राजा दुष्यन्त के पास पहुंचते हैं।राजा के आदेशानुसार वे महल में प्रवेश करते हैं।राजा दुष्यंत उनका अभिनंदन करते हैं उसके पश्चात शार्ड़्गरव ने निवेदन किया कि आप ने कण्व द्वारा पालित उनकी पुत्री शकुन्तला के साथ गांधर्व विवाह किया था उसे ऋषि कण्व ने स्वीकार कर लिया है। इस समय शकुंतला गर्भवती हैं इसलिए कणव ने इसे आप के पास भेजा है इस संदर्भ में शार्ड़्गरव विवाहित स्त्री के संबंध में लोक व्यवहार का वर्णन करते हुए कहता है विवाहित स्त्री भले ही वह श्रेष्ठ चरित्र वाली क्यों न हो किन्तु वह सदैव अपने पिता के घर में रहती है तो उसके संबंध में लोग अनेक प्रकार की आशंका करने लगते हैं अतः बधू के बंधुजन विवाहित स्त्री को उसके पति के पास ही रखना चाहते हैं अतः आप इसे स्वीकार कीजिये ।लेकिन राजा दुष्यंत दुर्वासा के साथ के प्रभाव के कारण पूर्व में शकुंतला के साथ विवाह की घटना को पूर्ण रूप से भूला चुके थे इस कारण वह शकुन्तला को अपनी पत्नी मानने से इनकार कर देते हैं। तब वह समझ जाती है कि दुर्वासा के शाप के प्रभाव के कारण राजा दुष्यंत ने विवाह की घटनाओं को भुला दिया है तब वह अपनी अगूंठी को दिखाने के लिए निकालती है लेकिन उसके हाथ में अंगूठी नहीं थी गौतमी कहती हैं कि अवश्य ही तेरी अंगूठी शचीतीर्थ के जल की वन्दना करते हुए गिर गई है। अंगूठी के अभाव में राजा को पूर्व की बात स्मरण नही होने से राजा दुष्यंत शकुंतला अपनी बात पर अडिग रहता है । तब गौतमी और दोनों ऋषि कुमार शकुंतला को वहीं छोड़कर चले जाते हैं।पुरोहित राजा को उपाय बताता है। कि संतानोत्पत्ति तक यह मेरे घर पर रहे, साधुओं ने बताया है कि आपका पहला पुत्र चक्रबर्ती होगा, शकुन्तला का पुत्र यदि इन गुणों से संपन्न होगा तो आप इन्हें अंतःपुर में प्रविष्ट करा दें, यदि नहीं तो फिर इनका पिता के पास जाना ही उचित है। वह रोती हुई पुरोहित के पीछे पीछे जाती है तभीआकाश से एक अप्सरा आकर उसे उडा ले जाती हैं इसकी सूचना पुरोहित आकर राजा दुष्यन्त को देता है। यही पंचम अंक समाप्त होता है। पंचम सर्ग के महत्त्वपूर्ण पद्य---------- भवन्ति नम्रास्तरव: फलागमै नवाम्बुभिर्दूरविलम्बिना घना: अनुद्धता सत्पुरुषा:सम्रद्धिभि: स्वभाव एवैष परोपकारिणाम् फलों के आने पर वृक्ष नम्र हो जाते हैं अर्थात फलों के भार से नीचे झुक जाते हैं ।नये जल से पूर्ण होने पर बादल दूर दूर तक नीचे लटक जाते हैं।सज्जन पुरुष भी समृद्धि पाकर सुशील एवं विनम्र हो जाते हैं यह परोपकारियो का स्वभाव होता है। भानु:सकृद्युक्ततुरंग एव रात्रिन्दिवं गन्धवह:प्रयाति। शेष सदैवाहितभूमिभार: षष्ठांशवृत्तेरपि: धर्म: एष:।। लोकरक्षक सूर्य एक बार में ही अपने अश्व को जोतकर निरन्तर चलता रहता है वायु रात दिन बहती हैं शेष नाग सदैव पृथ्वी के भाग को उठाए रहने वाले हैं उपज के षष्ठ भाग से निर्वाह करने वाले राजा का भी यही कर्तव्य है औत्सुक्यमात्रमवसाययति प्रतिष्ठां क्लिश्नाति लब्धपरिपालनवृत्तिरेनम् । नातिश्रमापनयनाय तथा श्रमाय राज्य स्वहस्तधृतदण्डमिवातपत्रम्। जिस प्रकार स्वयं अपने हाथ से छत्ते का दण्डा पकड़ने से जितना आराम नही होता है अपितु पकड़ने वाले को थका अधिक देता है उसी प्रकार राज्य प्राप्ति होने पर सुख प्राप्ति की अपेक्षा दु:ख ही अधिक मिलता है। सतीमपि ज्ञातिकुलैकसंश्रयां जनो अन्यथा भर्तृमतीं विशंकड़्ते। अत: समीपे परिणेतुरिष्यते , प्रिया अप्रिया वा प्रमदा स्वबन्धुभि: विवाहित स्त्री यदि सर्वदा पितृ- गृह में ही रहती है तो भले ही वह श्रेष्ठ चरित्र ही क्यों न हो लोग उसके संबंध में भिन्न भिन्न प्रकार की शंका करने लगते हैं अत:वधूके परिजन विवाहित स्त्री को उसके पति के पास ही रखना चाहते हैं चाहे वह अपने पति के लिए प्रिय हो अथवा अप्रिय हो ।अर्थात प्रत्येक परिस्थिति में उसका वहां रहना ही अच्छा है । इदमुपनतमेवं रुपक्लिष्टकान्ति प्रथमपरिगृहीतं स्यान्न वेत्य व्यवस्यन्। भ्रमर इव विभाते कुन्दमन्तस्तुषारं न च खलु परिभोक्तुम नैव शक्नोमि हातुम ।। शकुंतला को बड़े ध्यान से देखकर राजा दुष्यन्त अपने मन में विचार करता हुअा कहता है कि गर्भवती के रूप में प्राप्त हुए इस निर्दोष शोभा वाली सुन्दरी को मैंने कभी अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया था अथवा नहीं इस प्रकार किसी निर्णय पर नहीं पहुंचता हुआ मैं उसी प्रकार न तो इसका भोग कर सकता हूं ,न ही छोड़ सकता हूँ जिस प्रकार एक भम्रर ओस से भरे कुंद- पुष्प का रस न तो ग्रहण कर सकता है और नहीं उसे छोड़ सकता है मय्येव विस्मरणदारुणचित्तवृतौ वृतं रह: प्रणयमप्रतिपद्यमाने । भेदाद्भुवो: कुटिलयोरतिलोहिताक्ष्या भग्नं शरासनमिवातिरुषा स्मरस्य।। राजा दुष्यंत जब शकुंतला के याद दिलाने पर भी उसे अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार नही करता है तो उससे क्रुद्ध होकर बोलती हुई शकुंतला की मुखाकृति व उसकी चेष्टाओ को देखकर मन में विचार करता है कि मेरे ऊपर अत्यंत क्रोध करते हुए लाल नेत्रों वाली इस शकुंतला ने अपने कुटिल भौहों को चढ़ा लिया है इससे ऐसा प्रतीत हो रहा है कि मानो इसने कामदेव के धनुष को ही तोड़ डाला है । स्त्रीणामशिक्षित पटुत्वमानुषीषु संदृश्यते किमुत या:प्रतिबोधवत्य:। प्रागन्तरिक्षगमनात्स्वमपत्यजात- मन्यैर्द्विजै: परभृता: खलु पोषयन्ति।। राजा दुष्यंत स्त्री जाति की स्वाभाविक चतुराई का वर्णन करते हुए कहता है कि स्त्रियों में जो मनुष्य जाति से भिन्न स्त्रियाँ है अर्थात जो पशु पक्षियों की स्त्री याेनि में उत्पन्न हुई है।उनमें भी स्वाभाविक चतुराई देखी जाती है फिर सभी विषयों में बुद्धि रखने वाली मानवी स्त्रियों के विषय में तो कहना ही क्या है? अर्थात वे तो न जाने कितनी चालाक व तुरंत बुद्धि वाली होंगी ।राजा इस संदर्भ में कोयल का उदाहरण देता हुआ कहता है कोयल अपने बच्चों के उडने में समर्थ होने तक अपने बच्चों का पालन पोषण को कौवो से कराती हैं। यदियथा वदति क्षितिपस्तथा त्वमसि किं पितुरुत्कलया त्वया। अथ तु वेत्सि शुचि व्रतमात्मन: पतिकुले तव दास्यमपि वरम् ।। प्रस्तुत कथन शार्ड़गरव मुनि का है वह शकुंतला से कहता है राजा जैसा कहते हैं यदि तू वैसी ही है तो तुम्हें पिता के कुल से क्या प्रयोजन है ?अर्थात तुम पतित आचरण वाली हो तो तुम्हारे पिता कण्व भी तुमसे से संबंध रखना उचित नहीं समझेंगे। आगे कहते हैं यदि तू अपने आचरण को पवित्र समझती है तो पति के परिवार में तुझे दासता करना भी उचित है अर्थात तुझे दासी बन कर भी अपने पति के पास ही रहना चाहिए। कुमुदान्येव शशांक: सविता बोधयति पंड्कजान्येव। वशिनां हि परपरिग्रहसंश्लेषपराड़्मुखी वृत्ति: ।।-- राजा दुष्यंत शकुंतला को पत्नी के रूप में स्वीकार नहीं करता है वह कहता है कि चंद्रमा कुमुदिनियों को ही विकसित करता है कमलों को नहीं,सूर्य कमलो को ही विकसित करता है ,कुमुदिनियो को नहीं है, क्योंकि जितेन्द्रिय पुरुषों की मनोवृत्ति सदा पराई स्त्री के स्पर्श से विमुख रहती है । अर्थात जितेन्द्रिय पुरुष पराई स्त्री को स्पर्श करने की इच्छा नहीं करते है राजा के कहने का भाव यह है कि मैं भी शकुंतला को कभी स्वीकार नहीं करूंगा क्योंकि मेरे लिए यह पर स्त्री है,जिसे स्पर्श करना पाप है।
मंगलवार, 20 नवंबर 2018
"शुकनासोपदेश" कादम्बरी का महत्त्वपूर्ण अंश (पार्ट -1)
"शुकनासोपदेश कादम्बरी का महत्त्वपूर्ण अंश":- शुकनासोपदेश कादम्बरी कथा का एक अत्यंत भव्य अंश है, जो बाणभट्ट की उद्दात कल्पना ,उनकी वर्णन शक्ति और राजसभाओ के जीवन के उनके अनुभव काप्रत्यक्ष प्रमाण है। बाणभट्ट द्वारा रचित कादम्बरी की कथा में उज्जयिनी के राजा तारापीड़ के मंत्री शुकनास द्वारा तारापीड़ के पुत्र चन्द्रापीड़ को युवराज बनने के अवसर पर युवावस्था, राजलक्ष्मी अादि से उत्पन्न दोषो से दूर रहने का जो सारगर्भित उपदेश दिया गया, वही शुकनासोपदेश है जो बहुत ही शिक्षाप्रद है। मंत्री शुकनास द्वारा दिया गया उपदेश इस प्रकार है ;----- अपरिणामोपशमो दारुण लक्ष्मीमद:-------मंत्री शुकनास चन्द्रा पीड़ को कहते हैलक्ष्मी का मद वृद्धावस्था में भी शांत नहीं होता है वह इतना भयानक होता है,अर्थात यौवन का मद वृद्धावस्था में स्वयं शांत हो जाता है मदिरा पीने वाले का भी कालांतर में शांत हो जाता है परंतु धन संपत्ति से उत्पन्न जो मद है वह जीवन पर्यन्त शान्त होने वाला नही है। अविनयानामेकैकमप्येषामायानम् किमुत समवाय: -------मंत्री शुकनासकहते हैं ।हे! राजकुमार तुम्हें विशेष सावधान रहना चाहिए क्योंकि जन्म- सिद्धऐश्वक्य, प्रभुत्व, नूतन युवावस्था, अनुपम सौंदर्य यह सब महान अनर्थ के कारण है और यह सब तुम्हारे पास है इनमें से अगर एक भी किसी के पास है तो वह अनर्थ उत्पन्न करने में पूर्ण समर्थ है फिर यदि समूह रूप में हो तो उस व्यक्ति को पूर्णतः नष्ट भ्रष्ट कर सकते हैं अतः इससे आपको बहुत सावधान रहना चाहिए। अनुज्झितधवलतापि सरागैव भवति यूनां दृष्टि:-------मंत्री शुकनास युवावस्था के दोषों पर चर्चा करते हुए कहते हैं कि युवावस्था में शास्त्रों के जल से धुली हुई निर्मल बुद्धि भी कलुषित हो जाती है।कहने का तात्पर्य यह है कि युवावस्था का इतना वेग तथा प्रभाव रहता है कि मनुष्य उसके दोषो के कारण अपने गंतव्य से भटक जाता है चाहे वह कितना ही बुद्धिमान क्यों नही हो? इस अवस्था में उपभोग्य विषयो में आसक्ति स्वाभाविक होती है । अपहरति च वात्येव शुष्कपत्रं समुद् भूतरजो भान्तिरतिदूरमात्म इच्छया यौवनसमये पुरुषम् प्रकृति--------युवावस्था में पुरुष की प्रकृति उसे आंधी तथा तूफान के सामान कहीं से कहीं उठाकर फेंक देती हैं ।अर्थात उनको अपने उद्देश्य से भ्रष्ट कर देती है।अर्थात जैसे अंधड़ सूखे पत्ते को दूर उडा ले जाता है वैसे ही युवा मन उसे रजोगुण के चक्कर में फँसाकर गलत विषयो की और खींच कर पथभ्रष्ट कर देता है।यहां मानव प्रकृति की उपमा बवडर से तथा पुरुष की सूखे पत्ते से की गई है।
इन्द्रियहरिणहारिणी च सततमतिदुरन्तेयमुपभोग मृगतृष्णिका------राजकुमार को शुकनास विशेष सावधानी बरतने हेतु बता रहे है कि जिस भाँति मरुस्थल में मध्याह के समय सूर्य की निरन्तर किरणो मे जल का भ्रम पैदा करने वाली मरीचि प्यासे हिरणों को पुन:-पुन: आकृष्ट कर अन्तत: उन्हे नष्ट कर देती है उसी प्रकार शब्द स्पर्श आदि विषयो के उपभोग की कामना नवयुवको को बार-बार अपनी और खींचती है और उन्हे जीर्ण बनाकर नष्ट कर देती है। भाव यह है कि विषयो की तृष्णा का परिणाम हमेशा दुखद ही होता है। उम्मीद है कि आप सभी को शुकनासोपदेश में संग्रहित विषय वस्तु के बारे में कुछ जानकारी प्राप्त हुई होगी शेष जानकारी अगले पोस्ट में प्राप्त होगी ब्लाँग पर आने के लिए धन्यवाद
शनिवार, 17 नवंबर 2018
"किरातार्जुनीयम् महाकाव्य" के "प्रथम सर्ग" के प्रश्नोत्तर
"किरातार्जुनीयम् महाकाव्य" का" प्रथम सर्ग"------भारवि द्वारा रचित" किरातार्जुनीयम्" महाकाव्य में कुल** 18** सर्ग है जिसमें प्रथम सर्ग का अपना विशिष्ट महत्त्व है। इस सर्ग में एक किरात या वनेचर का उल्लेख प्राप्त होता है जिसे धर्मराज युधिष्ठिर अपना गुप्तचर बनाकर दुर्योधन की शासन व्यवस्था का ज्ञान प्राप्त करने के लिए दुर्योधन के समीप हस्तिनापुर भेजते है, वह एक ब्रह्मचारी का वेष बनाकर जाता है,ताकि कोई उसे पहचान न ले ।वह दुर्योधन कि शासन व्यवस्था के संबंध में जानकर द्वैतवन में वापस लौटता है ,जहाँ युधिष्ठिर अपने सभी भाईयो तथा अपनी पत्नी द्रौपदी सहित वनवास का समय व्यतीत कर रहे थे वह वहाँ आकर दुर्योधन के शासन संचालन की प्रशंसा करता है वह विना किसी भय के वास्तविक सूचना युधिष्ठिर को देना अपना कर्तव्य मानता है जिससे प्रभावित होकर युधिष्ठिर उसे पारितोषिक प्रदान करता है यह घटना प्रथम सर्ग में वर्णित है। किरातार्जुनीयम् प्रथम सर्ग के महत्त्वपूर्ण प्रश्न--------- 1. महाकवि भारवि का वास्तविक नाम था ?-----दामोदर। 2. महाकवि भारवि का स्थिति काल माना जाता है?------600ई. के लगभग। 3.भारवि के माता पिता का नाम ?-----भारवि की माता का नाम सुशीला पिता का नाम श्रीधर था। 4.भारवि की पत्नी का नाम था ?-----रसिकवती या रसिका 5. भारवि भारत के किस भाग में रहने वाले थे?------दक्षिण भारत में 6.महाभारत में धर्मराज किसे कहा गया है? युधिष्ठिर को 7.धूतक्रीडा में पराजित पांडव कहाँ निवास करते हैं ?------द्वैतवन में 8.ब्रह्मचारी का वेष धारण कर के कौन हस्तिनापुर गया था?------वनेचर 9.दुर्योधन के वृतांत को ज्ञात करने के लिए गुप्तचर वनेचर को युधिष्ठिर ने कहाँ भेजा ? हस्तिनापुर 10"कुरुणाम् अधिपस्य"यह शब्द किसके लिए प्रयुक्त हुआ है ?---------दुर्योधन के लिए 11.हितकारी और मन को अच्छे लगने वाले वचन कैसे होते हैं?-------दुर्लभ 12.सब संपत्तियां निश्चित रूप से सदा प्रेम कब करती हैं?-------राजाओं और अमात्यो के अनुकूल होने पर। 13.राजा लोगों का चरित्र कैसा होता है? स्वभाव से ही समझ में नहीं अाने वाला । 14. वनेचर के अनुसार दुर्योधन जुए के बहाने से जीती हुई पृथ्वी को अब किसके द्वारा जीतने की इच्छा कर रहा है?---------नीति के द्वारा 15.दुर्जनो की मित्रता की अपेक्षा किस से विरोध करना कुछ अच्छा माना जाता है?----सज्जनों से 16.किसके द्वारा बताई गई प्रजापालन की पद्धति अच्छी मानी गई है?------मनु महाराज के द्वारा । 17.दुर्योधन अन्याय के आचरण को कैसे रोकता है?------दंड विधान से अर्थात दमन कर के 18. वनेचर के अनुसार कार्य समाप्ति पर दुर्योधन अपनी कृतज्ञता कैसे प्रकट करता है?--------अपने अनुजीवियों को धन देने से 19.नदियों व नहरों के जल से सिंचाई करने वाले लोगों को क्या कहा गया है ?------------नदीमातृक । 20जिन देशों के लोग केवल वर्षा के जल पर ही आश्रित रहते हैं, उन्हे क्या कहते हैं?------देवमातृक 21.अपने और पराए लोगों के कार्यों को दुर्योधन कैसे जानता है?----सच्चरित्र वाले गुप्तचरों के द्वारा। 22.दुर्योधन का कार्य उद्योग किस की तरह प्रतीत होता है?---------विधाता की भाँति 23.दुर्योधन की आज्ञा को अन्य राजा लोग किस भाँति धारण करते हैं?--------माला कीभाँति 24.दुर्योधन यज्ञों में किसके द्वारा अग्नि को तृप्त करता है?----------हवि के द्वारा 26.दुर्योधन की धान्य संपत्ति का कारण क्या था?----------अधिक जल का होना 27. किसके साथ शत्रुता रखने का परिणाम हमेशा दुखदायी होता है?-------अपने से अधिक बलवान से । 28.शमेन सिद्धि: मुनयों: न भभृत: यह कथन किसका है ?------द्रौपदी का । 29. द्रौपदी के कथनानुसार शांति के द्वारा सिद्धि किसे प्राप्त होती है? ---------मुनियों को 30. दुर्योधन की सफलता को सुनकर युधिष्ठर के सामने किसने क्रोध पूर्ण वाणी में कहना प्रारम्भ किया?-------द्रौपदी ने 31. द्रौपदी के कथनानुसार स्वाभिमानी लोगों के लिए पराभव कैसा होता है ?-------उत्सव के समान 32.मद स्त्रावी हाथी के द्वारा फेंकी गई माला की तरह यह समग्र पृथ्वी किसने अपने हाथ से फेंक दी?--------युधिष्ठिर ने 33किसके द्वारा कहा गया उपदेश वचन तिरस्कार की तरह होता है?------स्त्री जन के द्वारा कहा गया । 34असुरक्षित शरीर वालों के अंदर घुस कर प्राण ले लेते हैं ?-----तीखे बाण 35किरातार्जुनीयम् के प्रथम सर्ग के अनुसार शत्रुकृत दुर्दशा से किसे परम वेदना का अनुभव होता है?--------द्रौपदी को।
गुरुवार, 15 नवंबर 2018
"भारवे: अर्थगौरवम्" किरातार्जुनीयम् का प्रथम सर्ग
भारवे: अर्थगौरवम्---"भारवेरर्थगौरवम्" यह उक्ति संस्कृत साहित्य रूपी जगत में महाकवि भारवि की काव्य शैली को वैशिष्टय प्रदान करती है।जिसका अर्थ है स्वल्प शब्दों द्वारा गंभीर भावों की अभिव्यक्ति भारवि से पूर्ववर्ती कवियों में भावपक्ष अथवा रसनिरुपण के प्रतिअधिक रुचि थी लेकिन भारवि के युग में कविता में कला पक्ष के प्रति अभिरुचि बढ़ने लगी ।इस प्रकार स्पष्ट रूप से भारवि कला पक्ष के कवि माने जाते है वे अलंकृत काल के प्रवर्तक महाकवि है उनका सर्वाधिक ध्यान अर्थगाम्भीर्य पर रहा है यही कारण है कि उनके सम्बन्ध में "भारवेरर्थगौरवम्"इस उक्ति को प्रसिद्धि प्राप्त हुई है। मल्लिनाथ नेभारवि के वचन को" नारिकेलफलसम्मित" तथा" रसगर्भनिर्भरसार" बताया है जिसका तात्पर्य है कि वे बाहर से नारियल के समान कठोर और अन्दर से मुलायम एवम् सारयुक्त है किरातार्जुनीयम् के प्रथम सर्ग की महत्त्वपूर्ण सूक्तियाँ 1. नहि प्रियं वक्तुमिच्छन्ति मृषा हितैषिण:---अर्थात स्वामी का कल्याण चाहने वाले सेवक कभी भी अप्रिय लगने वाली और मिथ्या बात नहीं कह सकते हैंवे सदा सत्य ही बोलेंगे चाहे वह कितना ही कटु क्यों नही हो, क्योंकि वे जानते हैं कि उनके स्वामी का हित किस बात में निहित है। 2.हितं मनोहारि च दुर्लभं वच:---------अर्थात संसार में ऐसे वचन दुर्लभ होते हैं जो प्राणी के लिए हितकारी भी हो और मनोहर भी लगे वस्तुत:भलाई की बातें कड़वी होती है तथा मन को अच्छे लगने वाले वचन क्षणिक आनंददायक होते हैं लेकिन एेसे मनोहारी वचन व्यक्ति का किसी भी प्रकार हित नही कर सकते है। 3स किसखा साधु न शास्ति यो अधिपं अर्थात जो अपने प्रभु या स्वामी को उचित उपदेश नही देता वह किसखा अर्थात बुरा मित्र है।सच्चा मित्र अथवा स्वामी भक्त सेवक वही होता है जो बिना किसी भयके अपने मित्र या स्वामी को उचित बात बताए, भले ही वह कितनी कटु क्यों न हो। यह एक सेवक का परम् कर्तव्य है 4.क्व भूपतीनां चरितम् क्व जन्तव:---अर्थात कहाँ तो राजाओं का चरित्र और कहाँ सामान्य प्राणी दोनों में महान अंतर है।राजाओ का चरित्र एक दुरुह विषय है जो जनसामान्य की समझ से बाहर है। 5.वरं विरोध अपि समं महात्मभि:-------दुर्जनो की मित्रता की अपेक्षा सज्जनों से शत्रुता अधिक अच्छी है क्योकि इससे दुर्जन को ही लाभ होता है।सत्पुरुषों से स्पर्धा में व्यक्ति को दान दयादि गुणो का आश्रय लेना होता है दिखावटी तौर पर ही सहीअच्छे कार्य करने पड़ते हैं जिससे उसका यश सर्वत्र फैलने लगता है जबकि दुर्जन व्यक्ति से मित्रता करने से व्यक्ति के व्यक्तित्व का पतन होने लगता है इसीलिए दुर्जन व्यक्ति की मित्रता भी हानिकारक है 6.अहो दुरन्ता बलवद्विरोधिता----------अपने से अधिक शक्तिशाली के साथ शत्रुता दुखदायक होता है।संसार में ही देखा गया है कि वह व्यक्ति विजयी होता है जो अपने से कम शक्तिशाली के साथ युद्ध करे ।स्वयं से अधिक शक्तिशाली के साथ विरोध करने वाला सदा पराजित होता है। 7व्रजन्ति ते मूढधिय पराभवं भवन्ति मायाविषु ये न मायिन:--------------वे मूर्ख बुद्धि वाले लोग पराजय को प्राप्त करते हैं, जो कपटी लोगों के साथ कपट व्यवहार नही करते हैं कहने का आशय है कि जो व्यक्ति जिस प्रकार का है उससे उसी प्रकार का व्यवहार करना चाहिए यही नीति है नीति शतक में भी कहा गया है" शठे शाठ्यं समाचरेत्" अर्थात दुष्ट के साथ दुष्टता ही करनी चाहिए 8विचित्ररुपा: हि खलु चित्तवृतय:---------- प्रत्येक व्यक्ति की चित्तवृतियाँ भिन्न भिन्न होती है कहने का आशय यह है कि इस संसार में मनुष्यों के स्वभाव में भिन्नता पाई जाती है किसी व्यक्ति का स्वभाव धीर है तो कोई अधीर स्वभाववाला है
कोई व्यक्ति बिना किसी कारण क्रोध करता है तो कोई व्यक्ति हर परिस्थिति में शांत रहना जानता है 9.शमेन सिद्धि मुनयो न भूभृत:---------------शांति के द्वारा मुनियो को ही सिद्धि प्राप्त होती है राजाओं को नहीं।भावार्थ यह है कि क्रोध का परित्याग कर शान्ति धारण और अपने शत्रु पर आक्रमण नही करना यह राजाओं को शोभा नहीं देता। उन्हें तो अपने शत्रु का विनाश करने के लिए क्रोध करना ही पड़ता है तभी उन्हें युद्ध में सफलता प्राप्त होती है शांत चित्त होकर बैठने से कोई लाभ नहीं है। 10. पराभवो अप्युत्सव एव मानिनाम्---------------जिनकी शक्ति और सम्पत्ति शत्रु के द्वारा नष्ट न होकर दैवीय कोप से नष्ट हुई हो, तो उनके लिए इस प्रकार की परिवर्तित दशा एक प्रकार से उत्सव के समान ही है कहने का आशय यह है कि विपत्ति तो आती जाती रहती है यह सृष्टि का चक्र है किन्तु यह जब किसी शत्रु द्वारा दी गई हो,तो वह हमे व्यथित करने वाली होती है। दुर्योधन द्वारा दी गई विपत्ति से यहां द्रौपदी चिंतित दिखाई देती है। मुझे उम्मीद है कि आप सभी के लिए यह पोस्ट ज्ञानवर्द्धक और परीक्षा की दृष्टि से उपयोगी रहेगी सधन्यवाद।
रविवार, 11 नवंबर 2018
बाणभट्ट की कादम्बरी
बाणभट्ट कृत" कादम्बरी "--*कादम्बरी* बाण भट्ट का ही नहीं अपितु संपूर्ण संस्कृत साहित्य का सर्वोत्कृष्ट गद्य काव्य है।इसकी कथा काल्पनिक है इसके दो भाग हैं पूर्व भाग और उत्तर भाग। पूर्व भाग की रचना स्वयं बाणभट्ट ने की थी। उत्तर भाग की रचना उनकी मृत्यु के पश्चात उनके पुत्र पुलिंद भट्ट अथवा भूषण भट्ट द्वारा की हुई मानी जाती है। कादम्बरी के संबंध में महत्त्वपूर्ण प्रश्न इस प्रकार है
कादम्बरी के महत्त्वपूर्ण प्रश्न |
1 संस्कृत गद्य काव्य कासर्वश्रेष्ठ काव्य कौन सा है ---कादम्बरी 2.कादम्बरी किस श्रेणी का काव्य हैं ?--------कथा श्रेणी का 3.कादम्बरी कितने भागों में विभक्त है?---तीन भागों में कथामुख ,पूर्व भाग ,उत्तरभाग
गुरुवार, 8 नवंबर 2018
अग्नि सूक्त, विष्णु सूक्त ,इन्द्र सूक्त के महत्वपूर्ण प्रश्न
महत्त्वपूर्ण प्रश्न---------------------------------------------- (1).अग्नि सूक्त का छंद है?-------गायत्री छंद
(2)इंद्र सूक्त का छंद है?----त्रिष्टुप छंद
(3)विष्णु सूक्त का छंद है?------त्रिष्टुप छंद
(4)विष्णु शब्द का अर्थ है?---तीनो लोको को प्रकाशित करने वाला अथवा व्यापक
(5)'त्रिविक्रम 'शब्द प्रयुक्त है--विष्णु देव के लिए
(6)उरुक्रम और उरुगाय विशेषण किस देवता के लिए प्रयुक्त हुआ है ----- विष्णु के लिए
(7)परम पद के अधिष्ठाता के रूप में माने जाने वाले देवता है ----विष्णु
(8)पुराणों के अनुसार किसके लोक को गोलोक कहते है?----विष्णु लोक को
(9)तीन प्रकार से अथवा तीन पग में ब्रह्मांड को नापने वाले देव हैं?----विष्णु
(10)प्रथम मण्डल के 154 वे सूक्त में किसकी स्तुति है?---विष्णु देवता की
(11)प्रथम मंडल के154वे सूक्त में कितने मंत्रों में विष्णु देवता की स्तुति की गई है?-----6मंत्रों में
(12)पुरोहित: , कविक्रतु: ,जातवेदा: विशेषण किस देवता के है?----अग्नि देवता
(13) कविक्रतु: शब्द का अर्थ है?------ अतीत और अनागत यज्ञादि कर्मों को जानने वाला
(14) चित्रश्रवस्तम: विशेषण है?-----अग्नि देवता का
(15).मरुतों की सहायता पाने के कारण किसे मरुत्वान कहा गया है?----इन्द्र
(16)मघवा किसका पर्याय है?------इन्द्र का
(17)इन्द्र का प्रिय पेय है?---- सोमरस
(18)इन्द्र ने किसके द्वारा गुफा में रोकी गई गायों को बंधन से मुक्त कराया ?----बल नामक असुर द्वारा
(19) वह कौन सा देव है जिसने दास वर्ण को वश में कर के गुफा में डाल दिया था?-------इन्द्र
(20)इन्द्र ने शम्बर नामक असुर को कितने वर्षों में खोजा था?----40वी शरद में(40 वर्षों में)
(21) सात जल धाराओं को प्रवाहित करने वाले देव हैं ?-----इन्द्र
(22)स्वर्ग में जाते हुए रौहिण नामक असुर को किसने मारा?-----इन्द्र ने
सोमवार, 5 नवंबर 2018
संस्कृत साहित्य के महत्वपूर्ण प्रश्न ,प्रतियोगी परीक्षाओ में आने वाले प्रश्न
संस्कृत साहित्य के महत्वपूर्ण प्रश्न------------- "ईशवास्योपनिषद्" किस वेद का उपनिषद है? शुक्लयजुर्वेद वेद में सबसे अधिक सूक्तों में किस देवता की स्तुति की गई है ? इंद्र देवता इन्द्र को किस का देवता माना जाता है? --विद्युत का इन्द्र का प्रमुख अस्त्र है?-------वज्र इन्द्र का वज्र किसने बनाया है ?------------त्वष्टा इन्द्र के पिता है?---------द्यौ: इंद्र की पत्नी का नाम है?-----------शचि कांपती हुई पृथ्वी को स्थिर करने वाला देवता माना जाता है ?-----------------इन्द्र देव शतक्रतु, वज्र बाहू, यह विशेषण किस देवता के लिए प्रयुक्त हुआ है ?------------इंद्र के लिए इन्द्र ने किस दैत्य को मारकर जल को बहाया? वृत्र अपनी रक्षा हेतु युद्ध में ही मित्र और शत्रु दोनों किस देवता को बुलाते हैं ?----------इंद्र देवता प्रभाव एवं विस्तार की दृष्टि से अग्नि का वेद में कौन से स्थान है?---------------द्वितीय स्थान अग्नि की स्तुति कितने सूक्तों में की गई है?----200सूक्त " शोचिषकेश" विशेषण विशिष्ट देवता है?----- अग्नि देव शोचिषकेश का अर्थ है?------ज्वालाओ क समान केश वाला "सुशिप्र" यह विशेषण किस देवता के लिए प्रयुक्त हुआ है? ---------------इंद्रदेव के लिए "रत्न धातमम्" का अर्थ है?---रत्नों को धारण करने वाला 'रत्नधातमम्' यह विशेषण किस देवता का है? अग्नि देवता का
शनिवार, 3 नवंबर 2018
गीता का द्वितीय अध्याय,महत्त्वपूर्ण प्रश्न
1गीता के द्वितीय अध्याय में कुल श्लोक कितने हैं ----72 श्लोक
2.गीता की द्वितीय अध्याय में वर्णित विषय है?-- --सांख्य योग
गीता का द्वितीय अध्याय,महत्त्वपूर्ण प्रश्न |