श्रीमद्भागवत गीता के अध्याय 1.अर्जुन विषाद योग 2.सांख्य योग 3.कर्मयोग 4.ज्ञानकर्मसंन्यास योग 5.कर्मसंन्यास योग 6.आत्मसंयम योग 7.ज्ञान विज्ञानयोग 8.अक्षरब्रह्म योग 9. राजविद्याराजगुह्य योग 10विभूतियोग 11.विश्वरूप दर्शन योग 12.भक्ति योग 13.क्षेत्रक्षेत्रज्ञविभाग योग 14.गुणत्रय विभागयोग 15.पुरुषोत्तम योग 16.दैवासुरसम्पद्विभाग योग 17.श्रद्धात्रय विभाग योग 18.मोक्षसंन्यास योग श्रीमदभागवतगीता के अनुसार व्यक्ति के विनाश के कारण ध्यायतो विषयान्पुंस: सड्गेषूपजायते। सड्गात्सज्जायते काम:कामात् क्रोधो अभिजायते।। क्रोधात् भवति सम्मोह:,सम्मोहात् स्मृतिविभ्रम:। स्मृतिभ्रंशाद् बुद्धिनाशो,बुद्धिनाशात् प्रणश्यति ।। उक्त श्लोक के अनुसार विषयो का चिन्तन करने पहले उन विषयो में आसक्ति होती है फिर आसक्ति से काम उत्पन्न होता है कामभावना से मनुष्य में कोध्र उत्पन्न होता हैं क्रोध से मूढ़ता उत्पन्न होती है मूढ़ता बुद्धि में भ्रम उत्पन्न करती है स्मृति विभ्रम से बुद्धि का नाश होता है बुद्धि का नाश होने से प्राणी का विनाश होता है अर्थात् कस्मात् किं जायते?---संगात् -काम: कामात्-क्रोध: क्रोधात्-सम्मोह: सम्मोहात्-स्मृतिविभ्रम: स्मृतिभ्रंशात्-बुद्धिनाश: बुद्धिनाशात्-विनाश:भवति श्रीमदभागवतगीता के अनुसार स्थितप्रज्ञ के लक्षण क्या है? प्रजहाति यदा कामान् सर्वान् पार्थ मनोगतान्। आत्मन्येवात्मना तुष्ट:स्थितप्रज्ञस्तदोच्यते।। जिस समय पुरुष मन में रहने वाली संपूर्ण कामनाओ का त्याग कर देता है आत्मा से ही आत्मा में संतुष्ट रहता है अन्य सांसारिक पदार्थों से नही, उस काल में वह मनुष्य स्थिर बुद्धि वाला कहलाता है दु:खेष्वनुद्धिग्नमना: सुखेषु विगतस्पृह:। वीतराभयक्रोध: स्थितधीर्मुनिरुच्यते ।। दुखों की प्राप्ति में जिसका मन क्षोभरहित है सुखों की प्राप्ति में जिसकी आसक्ति छूट गई है।जो अनुराग भय एवं क्रोध से मुक्त हो गया है ऐसा मुनि स्थिरबुद्धि कहा जाता है किसकी बुद्धि( प्रज्ञा)स्थिर मानी गई है? य: सर्वत्रानभिस्नेहस्तत्तत्प्राप्य शुभाशुभम् । नाभिनन्दति देष्टि तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।। यदा संहरते चायं कूर्मो अंगानीव सर्वश:। इन्द्रियाणीन्द्रियार्थेभ्यस्तस्य प्रज्ञा प्रतिष्ठिता।। श्रीमद् भागवत गीता में में श्रीकृष्ण अर्जुन को कहते हैं कि प्रत्येक शुभ अशुभ वस्तु को प्राप्त करके जो स्नेह रहित है ।न तो उस वस्तु को पाकर खुश होता है न उससे द्वेष करता है।उसकी बुद्धि आत्म स्वरूप में स्थिर है ऐसा मानना चाहिए। जिस काल में स्थितप्रज्ञ कछुए के अंगों के समान अपनी इंद्रियों के विषयो को सब ओर से समेट लेता है तो उसकी बुद्धि आत्म स्वरूप में स्थिर हुई है ऐसा मानना चाहिए । ↗ विदुरनीति महाभारत का उद्योग पर्व ↖ (Click here) सांख्यदर्शन में मोक्ष,जीवनमुक्त और विदेहमुक्त क्या है?
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