Shobha Srishti यह" संस्कृत विषय एवं प्रेरणासम्बंधित ब्लॉग है, Motivational and Education Category blog
बुधवार, 26 जून 2019
मंगलवार, 25 जून 2019
वेद और वैदिक साहित्य- संहिता,ब्राह्मण,आरण्यक,उपनिषद
संस्कृत वैदिक साहित्य Important questions वेदत्रयी में किसकी गणना नही होती है?-- अथर्ववेद की अथर्ववेद की शाखाएँ कितनी है?-9 अथर्ववेद के देवता?--सोम वैशम्पायन महर्षि किस वेद से सम्बन्धित है? --यजुर्वेद महर्षि पतंजलि के अनुसार यजुर्वेद की कितनी शाखाएँ है?--शतम् अर्थात् सौ महर्षि पतंजलि Rigveda की कितनी शाखाएँ मानते है?--एकविंशति अर्थात् इक्कीस "सविता/सूर्य" देवता का सम्बन्ध किस वेद से है?--सामवेद से यजुर्वेद का विभाजन कितने भागों में हुआ है?--2 1.शुक्ल यजुर्वद 2.कृष्ण यजुर्वेद शुक्ल यजुर्वेद की कितनी शाखाएँ प्रचलित है?-- 2 शाखाएँ 1.वाजसनेयी (माध्यन्दिन ) शाखा 2.काण्व शाखा सामान्यत सामवेद की कितनी शाखाएँ है?--कुल तीन 1कौथुमीय 2.राणायनीय 3जैमिनीय महर्षि पतंजलि ने सामवेद की कितनी शाखाएँ बताई है?-एक सहस्त्र अर्थात् एक हजार देवदर्श,चारणवैद्य शाखाएँ किस वेद की है?--अथर्ववेद गोपथ ब्राह्मण का सम्बन्ध किस वेद से है?--अथर्ववेद गोपथ ब्राह्मण मे कुल कितने अध्याय है?--11 शुक्ल यजुर्वेद का ब्राह्मण है?--शतपथ ब्राह्मण कृष्ण यजुर्वेद की कितनी शाखाएँ है?--4 किस वेद का कोई भी आरण्यक नही है?--अथर्ववेद का Rigveda के ब्राह्मण कितने है?-- 2 1ऐतरेय ब्राह्मण 2कौषीतकि ब्राह्मण सबसे प्राचीन आरण्यक कौनसा है?* शतपथ ब्राह्मण ईश,मुण्डक उपनिषद का सम्बन्ध किस वेद से है?--अथर्ववेद बाष्कल उपनिषद का सम्बन्ध किस वेद से है?--Rigveda आंगिरसवेद,अथर्वांगिरसवेद,ब्रह्मवेद,क्षत्रवेद,महीवेद, भैषज्यवेद किस वेद को कहते है?--अथर्ववेद को पूर्वाचिक और उत्तरार्चिक रूप में किस वेद का दो प्रकार से विभाजन है?-सामवेद का पूर्वाचिक में 650 मंत्र,उत्तरार्चिक में 1225 मंत्र है सुमन्तु महर्षि का सम्बन्ध किस वेद से है?--अथर्ववेद से
रविवार, 16 जून 2019
Exam preparation --net/jrf2019(sanskrit)
Exam preparation --net/jrf2019(sanskrit) संस्कृत में पूछे जायेंगे ये प्रश्न : वे सभी परीक्षार्थी जो June 2019 में आयोजित Net/jrf परीक्षा की तैयारी कर रहे है उन्हे Best of luck आप सभी इस परीक्षा में उत्तीर्ण हो और आप का भविष्य अच्छा बने। Sanskrit jeeva मेरे इस ब्लाँग के माध्यम से मैने कुछ प्रयास संस्कृत विषय के विद्यार्थियो के लिए किए ताकि मैं आप सभी की कुछ मदद कर सकूँ और अपने गुरुजनो से प्राप्त ज्ञान को सार्थक कर सकूँ । क्योकि मैं सीखने और सिखाने को ही सफलता का मूल मंत्र मानती हूँ कोई भी अपने आप में पूर्ण नही होता है ।यह यात्रा जीवन भर चलती है। Practice ही आत्मविश्वास भरती है।आत्मविश्वास की ही जीत होती है। आप सभी अपनी मेहनत और योग्यता पर विश्वास कीजिए ।आपने जितनी भी तैयारी की है उस तैयारी को अभ्यास के लिए दिए जाने वाले प्रश्नो को हल कर जाँचिए । क्योकि अभ्यास कार्य के दौरान बहुत से ऐसे प्रश्न जिनके बारे में हम 100% काँन्फिडेंट नही होते है उनका सही उत्तर हमारे Mind में बैठ जाता है ,दूसरे बहुत से नये प्रश्न हमारे सामने आते है जो परीक्षा में पूछे जा सकते है। हमारी पेपर साँल्व करने की स्पीड क्या है वह हमें मालूम होती है,उसमें सुधार करने से परीक्षा में समय पर पेपर पूरा कर पायेंगे क्योकि परीक्षार्थियो के लिए समयप्रबन्ध भी अनिवार्य तत्त्व है। इन सभी बातो को ध्यान में रखकर आप अपने लक्ष्य में सफलता अवश्य प्राप्त करेंगे। अभी जितना भी समय आपके पास है उसका सदुपयोग करें किसी भी प्रकार के तनाव से दूर रहे परीक्षा के नजदीकी दिनो में अपने मनोबल को बनाये रखना भी परीक्षा की तैयारी का महत्त्वपूर्ण अंग है ।शान्तचित से कार्य करें ,मस्त रहें। योगा, एक्सरसाइज करे जिससे आप अपनी तैयारी पर अच्छी तरह Focus कर पायेंगे इनसे Memory power increase होता है, जिससे आप Smart work कर पाते है। अपनी मेहनत पर भरोसा रखिए सफलताएँ आपकी झोली में होगी । Important articles *** दशरूपकम् के अनुसार नाटक की पाँच अवस्थाएँNet/jrf/M.A.syllabus के अनुसार संस्कृत साहित्य के महत्त्वपूर्ण प्रश्न first grade/second grade/net-jrf के लिए काव्य के गुण (आचार्य मम्मट के अनुसार) महाभारत का स्वरूप :साहित्य जगतको देन
table align="center" cellpadding="0" cellspacing="0" class="tr-caption-container" style="margin-left: auto; margin-right: auto; text-align: center;">शनिवार, 8 जून 2019
दशरूपकम् के अनुसार नाटक की पाँच अवस्थाएँ# net/jrf/M.A. syllbus के अनुसार
दशरूपकम् के अनुसार नाटक की पाँच अवस्थाएँ-- दशरूपकम् के प्रथम प्रकाश में धनंजय ने नाटक की पाँच अर्थप्रकृति और पाँच अवस्थाएँ बताई है जो किसी भी काव्य में कथावस्तु के सम्यक प्रकार के संयोजन के लिए अनिवार्य है पिछली पोस्ट में हमने पाँच अर्थप्रकृतियो के बारे में जाना। इस पोस्ट में हम नाट्यशास्त्रीय पाँच अवस्थाओं के बारे में जानेंगे। इन पंच अर्थप्रकृति और पंच अवस्थाओ के संयोजन से नाट्यशास्त्र की पंच सन्धियों का निर्माण होता है। जो कथावस्तु के विभाजन को सरल और सम्यक बनाती है।
नाट्यशास्त्र की पंच अवस्थाएँ ---- अवस्था पञ्चकार्यस्य प्रारब्घस्य फलार्थिभि: ।
आरंभ यत्नप्राप्त्याशानियताप्ति फलागमा:।। उपरोक्त श्लोकानुसार फल या प्रयोजन सिद्धि के लिए प्रारंभ किए गए कार्य कीआरम्भ,यत्न,प्राप्त्याशा,नियताप्ति,फलागम ये पाँच अवस्थाएँ होती है।
आइये हम इनके बारें मे जान लेते है--- आरम्भ --"औत्सुक्यमात्रमारम्भ:फल लाभाय भूयसे" ।
अभीष्ट फल प्राप्ति के लिए उत्सुकता की उत्पत्ति होना ही आरंभ कहा गया है। उदाहरण के रूप में रत्नावली नाटिका के प्रारम्भ में उदयन का मंत्री यौगन्धरायण कहते है कि मैं अपने प्रयत्नो और दैव के सहयोग से अपने स्वामी के लिए किए
जाने रहे कार्य में अवश्य सफलता प्राप्त करूँगा उनका इस प्रकार का दृढ.निश्चय करना ही आरम्भ है।
प्रयत्न--
"प्रयत्नस्तु तद्प्राप्तौव्यापारोअतित्वरान्वित"
फलप्राप्ति के लिए निरन्तर अनेक साधनो और उपायो के द्वारा कार्य में लगे रहना ही प्रयत्न कहलाता है। जैसे रत्नावली नाटिका में सागरिका उदयन से मिलना चाहती है लेकिन मिलन का उपाय नही निकलने पर वह उदयन का चित्र बनाने लगती है ।इस प्रकार का प्रयास ही प्रयत्न कहलाता है।
प्राप्त्याशा--"उपायापायाभ्यां प्राप्त्याशा प्राप्तिसंभव:।"
उपाय के होने पर भी बिघ्न की आशंकाओं से जब फल प्राप्ति में निश्चित्ता नही होती है तो वह अवस्था "प्राप्त्याशा" कहलाती है।जैसे रत्नावली नाटिका में उदयन द्वारा वेश परिवर्तन कर रत्नावली से मिलन के उपाय सोचने पर भी विदूषक कहता है कि कही वासवदत्ता द्वारा इस कार्य में बाधा उपस्थित नही कर दी जाएँ। इस प्रकार कार्य की सिद्धि में विघ्नोकी आशंका होना ही "प्राप्त्याशा" नामक अवस्था कहलाती है। नियताप्ति--"अपायाभावत:प्राप्तिर्नियताप्ति:सुनिश्चिता "
विघ्नो के समाप्त होने पर जब फल प्राप्ति के सम्बन्ध में कोई आशंका नही रहे अर्थात् प्राप्ति निश्चित हो जाए, वह अवस्था नियताप्ति कहलाती है।उदाहरण के रूप में जब रत्नावली नाटिका में वासवदत्ता रत्नावली को बंदी बना लेती तब विदूषक राजा उदयन से कहता है कि वासवदत्ता की प्रसन्नता ही रत्नावली की प्राप्ति का उपाय है अर्थात् रत्नावली से विवाह करना चाहते है तो आपको अपनी पत्नी वासवदत्ता को प्रसन्न करना चाहिए उसकी अनुमति से ही आपका यह कार्य सिद्ध हो सकता है क्योंकि रानी वासवदत्ता के प्रसन्न होने पर आपके और रत्नावली के मिलन की सारी बाधाएं दूर हो जाएंगी ।
फलागम--"समग्रफलसम्पत्ति:फलयोगो यथोदित:"समग्र फल की प्राप्ति होना ही 'फलागम' नामक अवस्था कहलाती है।प्रत्येक नाटक में धर्म अर्थ काम इन तीनों में से जो भी प्रयोजन नाटक का हो उसकी संपूर्ण रूप में प्राप्ति ही फलागम है। जैसे रत्नावली नाटक के अंत में राजा उदयन को रत्नावली की प्राप्ति और चक्रवर्तित्व की प्राप्ति होती है यही नाटक की फलागम अवस्था है।
उम्मीद है आप सभी के लिए यह पोस्ट ज्ञानवर्धक होगी संस्कृत साहित्य और व्याकरण से जुड़ी जानकारी के लिए आप सभी हमारे Blog पर Visit करे हमारे द्वारा लिखी गई पोस्टे आप की Exam preparation में सहायक होंगी ।
धन्यवाद✍️🙏 यह भी पढे़ दशरूपकम्/नाटक की अर्थप्रकृतियाँ वेदांगो का परिचय
मंगलवार, 4 जून 2019
अर्थप्रकृतियाँ कितनी है? #दशरूपकम् # धनञ्जय
Hello friends welcome strugglealwaysshine.blogspot.com पर एक बार फिर आप से कहना चाहती हूँ अगर आप संस्कृत विषय में रुचि रखते है या आप NET/SET/JRF/COLLAGE LECTURER,SECOND GRAD,FIRST GRADE ki preparation kar rahe to "sanskrit jeeva "इस Blog ko Follow करना मत भूलिए।
आज हम दशरूपककार धनंजय द्वारा अपने नाटक शास्त्रीय ग्रन्थ दशरूपक में बताई "अर्थप्रकृति" के सम्बन्ध में जानेंगे।
धनञ्जय ने अपने ग्रंथ दशरूपकम् में कथावस्तु का
विभाजन पाँच संधियों के आधार पर किया है। उनके
अनुसार अर्थ प्रकृति और अवस्थाओ के संयोग को
संधि कहते है। ये संधियाँ ही कथावस्तु का आधार होती हैं अत:इन संधियो को समझने से पूर्व इस Post में
अर्थप्रकृति के बारें जानेंगे।
अर्थप्रकृति किसे कहते है अर्थप्रकृति में अर्थ का अभिप्राय प्रयोजन अथवा फल है प्रकृति का अर्थ फल या प्रयोजन की सिद्धि में कारण या हेतु है।इस प्रकार हम कह सकते है कि फल या प्रयोजन की प्राप्ति के लिए जो
उपाय है वही अर्थप्रकृति कहे जाते है।
ये क्रमश: बीज, बिन्दु,पताका,प्रकरी,कार्य पाँच होती है।
इन पाँचो में से बीज,बिन्दु,कार्य ये तीन आवश्यक
अर्थप्रकृतियाँ मानी गई है।जबकि पताका ,प्रकरी समस्त रूपकों में अनिवार्य नही है।जिस रूपक मेॆ नायक को
सहायता की आवश्यकता नही होती है वहाँ इन दोनो की अनुपस्थिति होती है। अर्थप्रकृति कितने प्रकार की होती है।
उपरोक्त कारिका के अनुसार धनंजय ने अपने ग्रंथ
अर्थप्रकृति |
" दशरूपकम्" में पाँच अर्थप्रकृतियाँ बतायी है।
(1)बीज (2)बिन्दु (3)पताका (4)प्रकरी (5)कार्य
बीज---स्वल्पोछिष्टस्तु तद्हेतुर्बीजं विस्तार्यनेकधा: । जो किसी नाटक के आरम्भ में अल्परूप में निर्दिष्ट तत्व है लेकिन प्रयोजन अथवा फल प्राप्ति में मुख्य कारण बनता है ।वह बीज नामक अर्थप्रकृति कहलाती है
यह बीज अनेक प्रकार से विस्तृत रूप धारण करता है जिस प्रकार बीज देखने मे छोटा होता है लेकिन यही समय के साथ अनेक शाखाओ के रूप में विस्तृत रूप से फैलता है और हमें फल प्रदान करता है उसी प्रकार किसी नाटकादि में कोई
कथन या कोई छोटा सा विचार जो नाटक के फल की प्राप्ति का प्रारम्भिक कारण है वह "बीज "नामक अर्थप्रकृति होती है ।उदाहरण के रूप में रत्नावली नाटक में दैव(भाग्य)अनुकूल
होने पर सभी कार्य सिद्ध होते है।यह कथन यौगन्धरायण को अपने स्वामी उदयन के लिए कार्य प्रारम्भ करने की
प्रेरणा देता है।
बिन्दु---अवान्तरार्थविच्छेदेबिन्दुच्छेदकारणम् । किसी अवान्तर कथा के द्वारा जब मुख्य कथा मे
बाधा उत्पन्न होती हैतब मुख्य कथा को फिर जोड़ने
वाला तथा आगे बढा़ने वाला जो उपाय किया जाताहै
वह बिन्दु है यह बिन्दु जल में तेल के समान होता है।
उदाहरण- रत्नावली नाटिका में वासवदत्ता द्वारा कामदेव की पूजा के प्रसंग से मुख्य कथा में विच्छेद होने पर पर उदयन केआगमन की सूचना दीजाती है सागरिका यह सुनकर
कहती है कि यही राजा उदयन है जिनके लिए मेरे पिता
मुझे दे रहे है। उसके ह्रदय में राजा उदयन के प्रति आसक्ति उत्पन्न होती है।जिससे मुुख्य कथा को गति मिलती है। पताका---सानुबन्धं पताकारव्यम् -
वह प्रासंगिक कथा जो मुख्यकथा के साथ दूर तक
चलती है।वह पताका कहलाती है जैसे रामायण में
सुग्रीव की कथा। पताका के नायक को पताका नायक
कहते है।यह सहनायक होता है जो मुख्य उद्देश्य की प्राप्ति
में नायक की सहायता करता है। प्रकरी--- प्रकरी च प्रदेशभाक् ।
वह प्रासंगिक कथा जो दूर तक नही चलती है
जैसे रामायण में शबरी वृतान्त
कार्य--कार्यत्रिवर्गस्तच्छेदद्वमेकानुबन्धि च। धर्म,अर्थ,काम ये तीनो किसी भी नाटकादि के मुख्य
फल माने गए है इन तीनो में से एक,दो या तीनो फलो की प्राप्ति होना हो कार्य है। उदाहरण रत्नावली नाटिका में
रत्नावली की प्राप्ति।
इस प्रकार धनंजय ने अपने दशरूपकम् के प्रथम प्रकाश में पाँच अर्थ प्रकृतियाँ बतायी है।
👉 यह भी पढ़े ** तर्कसंग्रह
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