Shobha Srishti यह" संस्कृत विषय एवं प्रेरणासम्बंधित ब्लॉग है, Motivational and Education Category blog
रविवार, 28 अक्टूबर 2018
गुरुवार, 25 अक्टूबर 2018
संस्कृत साहित्य के महत्वपूर्ण प्रश्न------
1."स्वप्नवासवदत्ता" नाटक में कितने अंक हैं?--6अंक
2.स्वप्नवासवदत्ता नाटक का नायक किस कोटि का है?-धीर ललित कोटि ।
3."मृच्छकटिकम् "प्रकरण में कितने अंक है? --10अंक
4."स्वप्नवासवदत्ता" किसकी कृति है--भास की ।
5.स्वप्नवासवदत्ता का कथानक किस प्रकार का है?--ऐतिहासिक
6.उदयन के पिता का नाम है?--शशांक
7. वासवदत्ता किस कोटि की नायिका है?स्वकीया। वासवदत्ता के पिता का नाम क्या है? --प्रद्योत
8 स्वप्नवासवदत्ता नाटक का सहनायिका कौन है?--पद्मावती
9पद्मावती के भाई का नाम क्या है?--दर्शक
10.स्वप्नवासवदत्ता नाटक के अनुसार उदयन की राजधानी कहां थी?--कौशाम्बी
11.वास वदत्ता की माता का नाम क्या है?--अंगारवती
12.स्वप्नवासवदत्ता नाटक का विदूषक कौन है? --वसन्तक
13.उदयन के प्रधानमंत्री का नाम क्या है?--यौगन्धरायण
14."चक्रारपंक्तिरिव गच्छति भाग्यपंक्ति:"यह सूक्ति किस नाटक में है?--स्वप्नवासवदत्ता
15. "क:कं शक्तो रक्षितुं मृत्युकाले" यह सूक्ति किस नाटक में है?--स्वप्नवासवदत्ता
16. भास के नाटकों में कितने नाटक महाभारत की कथा पर आधारित है?-- 7नाटक
17.भास के नाटकों में कितने नाटक रामायण कथा पर आधारित है?--2 नाटक
18.स्वप्नवासवदत्ता का वह अंक, जिसमें उदयन को वासवदत्ता के दर्शन होते है? --पञ्चम अंक
19.स्वप्नवासवदत्ता नाटक में यौगन्धरायण वासवदत्ता को किसके पास न्यास के रूप में रखता है ?--मगध देश की राजकुमारी पद्मावती के पास।
20. उदयन के राज्य पर आक्रमण कौन करता है?-- आरुणि
21.आरुणि द्वारा राज्य को छीन लेने पर उदयन कहाँ निवास करता है? --लावाणक नामक ग्राम में
22. वासवदत्ता के जलने की मिथ्या खबर फैलाता है?--अमात्य यौगन्धरायण ।
23. भास को कविता कामिनी का हास किसने कहा है?-- जयदेव ने
24. 1909 में किस विद्वान ने सर्वप्रथम भास के नाटकों को खोज निकाला था?--डाँक्टर गणपति शास्त्री।
1."स्वप्नवासवदत्ता" नाटक में कितने अंक हैं?--6अंक
2.स्वप्नवासवदत्ता नाटक का नायक किस कोटि का है?-धीर ललित कोटि ।
3."मृच्छकटिकम् "प्रकरण में कितने अंक है? --10अंक
4."स्वप्नवासवदत्ता" किसकी कृति है--भास की ।
5.स्वप्नवासवदत्ता का कथानक किस प्रकार का है?--ऐतिहासिक
6.उदयन के पिता का नाम है?--शशांक
7. वासवदत्ता किस कोटि की नायिका है?स्वकीया। वासवदत्ता के पिता का नाम क्या है? --प्रद्योत
8 स्वप्नवासवदत्ता नाटक का सहनायिका कौन है?--पद्मावती
9पद्मावती के भाई का नाम क्या है?--दर्शक
10.स्वप्नवासवदत्ता नाटक के अनुसार उदयन की राजधानी कहां थी?--कौशाम्बी
11.वास वदत्ता की माता का नाम क्या है?--अंगारवती
12.स्वप्नवासवदत्ता नाटक का विदूषक कौन है? --वसन्तक
13.उदयन के प्रधानमंत्री का नाम क्या है?--यौगन्धरायण
14."चक्रारपंक्तिरिव गच्छति भाग्यपंक्ति:"यह सूक्ति किस नाटक में है?--स्वप्नवासवदत्ता
15. "क:कं शक्तो रक्षितुं मृत्युकाले" यह सूक्ति किस नाटक में है?--स्वप्नवासवदत्ता
16. भास के नाटकों में कितने नाटक महाभारत की कथा पर आधारित है?-- 7नाटक
17.भास के नाटकों में कितने नाटक रामायण कथा पर आधारित है?--2 नाटक
18.स्वप्नवासवदत्ता का वह अंक, जिसमें उदयन को वासवदत्ता के दर्शन होते है? --पञ्चम अंक
19.स्वप्नवासवदत्ता नाटक में यौगन्धरायण वासवदत्ता को किसके पास न्यास के रूप में रखता है ?--मगध देश की राजकुमारी पद्मावती के पास।
20. उदयन के राज्य पर आक्रमण कौन करता है?-- आरुणि
21.आरुणि द्वारा राज्य को छीन लेने पर उदयन कहाँ निवास करता है? --लावाणक नामक ग्राम में
22. वासवदत्ता के जलने की मिथ्या खबर फैलाता है?--अमात्य यौगन्धरायण ।
23. भास को कविता कामिनी का हास किसने कहा है?-- जयदेव ने
24. 1909 में किस विद्वान ने सर्वप्रथम भास के नाटकों को खोज निकाला था?--डाँक्टर गणपति शास्त्री।
रविवार, 21 अक्टूबर 2018
कुमारसम्भवम् महाकाव्य
"कुमार संभव" कालिदास द्वारा रचित प्रथम महाकाव्य हैं। यह "श्रृंगार रस" प्रधान महाकाव्य है।इसमें शिव- पार्वती के संयोग से उत्पन्न कार्तिकेय द्वारा देवताओं को कष्ट देने वाले तारकासुर वध की कथा ली गई है।
कथा का सर्गानुसार विवेचन इस प्रकार हैं -
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कथा का सर्गानुसार विवेचन इस प्रकार हैं -
प्रथम सर्ग में हिमालय का बहुत सहज और सुन्दर वर्णन किया गया है इसी सर्ग में हिमालय का मेना से विवाह,पार्वती का जन्म, पार्वती की सुन्दरता,नारद द्वारा पार्वती के विवाह की चर्चा,पार्वती द्वारा तपस्या करने का वर्णन किया गया है।द्वितीय सर्ग में तारकासुरके अत्याचारों से दु:खी देवता ब्रह्मा के पास आते है तथा तारकासुर का वध करने के लिए कहते है तब ब्रह्माजी बताते है कि शिव-पार्वती के संयोग से उत्पन्न पुत्र ही तारकासुर का वध कर सकता है अत:शिव -पार्वती का विवाह आवश्यक है।इन्द्र कामदेव को बुलाते है। कामदेव वसन्त के साथ उपस्थित होते है। तृतीय सर्ग मेंइन्द्र के आदेश से कामदेव शिव के पास पहुँचते हैं और सम्मोहन अस्त्र का प्रयोग करते हैं ,शिव की समाधि भंग हो जाती है शिव के क्रोधित होने पर उनके तृतीय नेत्र के तेज से काम देव जलकर भस्म हो जाता है। 'चतुर्थ सर्ग 'में कामदेव की पत्नी रति अपने पति के जल कर भस्म होने पर विलाप करती है वह चिता बनाकर सती होना चाहती है,लेकिन उसी समय आकाशवाणी होती है कि तुम्हारा काम से पुनर्मिलन होगा । पंचम सर्ग -पार्वती पुन: पंञ्चाग्नि तप करती है शिव ब्रह्मचारी वेष धारण करके उसकी परीक्षा लेने आते हैं पार्वती की परीक्षा लेने के लिए वे शिवकी अनेक बुराइयां करते हैं पार्वती फिर भी अपने निश्चय पर अटल रहती है वह ब्रह्मचारी को प्रत्युत्तर देती है अंत में ब्रह्मचारी के रूप में आए शिव अपना असली स्वरूप प्रकट करते हैं और पार्वती को आशीर्वाद देते हैं। षष्ठ सर्ग में शिवऔर पार्वती के परस्पर विवाह के इच्छुक सप्तर्षि हिमालय के पास जाते हैं ,और शिव के लिए पार्वती का हाथ माँगते हैं। सप्तम सर्ग में शिव की बारात का विस्तृत वर्णन कवि कालिदास ने बहुत ही सुन्दर पद्योंं के माध्यम से किया है पार्वती का विवाह शिव के साथ सम्पन्न होने का वर्णन इसी सर्ग में है। अष्टम सर्ग -शिव पार्वती की प्रणय लीलाओं का वर्णन हैं वे एक मास तक ससुराल में ही रहते हैं । 'नवम सर्ग' भगवान शंकर का पुन: कैलाश आना। दशम सर्ग में कुमार स्कंद का जन्म होता है ।एकादश सर्ग में कुमार की बाल लीलाओं का वर्णन हुआ है। द्वादश सर्ग में कुमार का सेनापतित्व वर्णन।त्रयोदश सर्ग में सेनापत्यभिषेकनामकम् ।चतुर्दश सर्ग देवसेना का आक्रमण के लिए प्रस्थान करनेका वर्णन है।पंचदश सर्ग में युद्ध का वर्णन है। षोड़श सर्ग में देवासुर सैन्य संघर्ष का वर्णन हैं। "सप्तदश सर्ग" में शिव पार्वती पुत्र स्कन्द(कार्तिकेय)तारकासुर का वध करते है।
b> नोट: कुछ आचार्य मानते है कि कालिदास का यह महाकाव्य अष्टसर्गात्मक ही है आगे के सर्गो का प्रणयन किसी अन्य कवि ने किया है । इसका प्रमुख कारण **प्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ की टीका** का कुमार सम्भवम् के अष्ट सर्गो पर ही आधारित होना है। लेकिनविद्वानों का यह कथन उपर्युक्त नहीं है।क्योंकि आगे के नौ सर्गो के बिना यह महाकाव्य अधूरा सा प्रतीत होता है।दूसरा कारण है कि अग्रिम सर्गो की भाषा शैली भी प्रारंभिकअाठ सर्गो से भिन्न नहीं है। अत: सम्पूर्ण कृति ही कालिदास द्वारा रचित मानना उचित प्रतीत होता है।
b>सौन्दरनन्द महाकाव्य अश्वघोष की रचनाए 👈click here
गुरुवार, 18 अक्टूबर 2018
सौन्दरनन्दम् #अश्वघोष की रचनाए
यह अश्वघोष का दूसरा महाकाव्य है जिसमें 18 सर्ग है। इस महाकाव्य में राजा नंद और सुन्दरी कीकथा का वर्णन है।नन्द गौतम बुद्ध का सौतेला भाई था।वह अत्यंत सुन्दर और विलासी प्रकृति का था।वह अपनी पत्नी सुंदरी पर अत्यंत आसक्त था ।इसलिएगौतम बुध्द ने नंद को सांसारिकविषयों से अलग कर बौद्ध धर्म की दीक्षा दी। सौन्दरनन्द का सर्गानुसार विषय विवेचन इस प्रकार है। प्रथम सर्ग---
गौतम बूद्ध की जन्म भूमि कपिल वस्तु का वर्णन है,इस महाकाव्य के प्रथम सर्ग में मंगलाचरण के स्थान पर गौतम का ही उल्लेख है।
द्वितीय सर्ग-राजा शुद्धोदन का वर्णन,गौतम और नन्द के जन्म का वर्णन ।
तृतीय सर्ग-इसमें गौतम की बुद्धत्व प्राप्ति काउल्लेख है
चतुर्थ सर्ग-नंद और सुन्दरी केप्रणय व्यवहार मेंडूबे होने पर गौतम काभिक्षा लेने आना,विना भिक्षा लिए लौट जाना,जब नंद को इस बात का आभास होता है,तो वह गौतम से क्षमा याचना के लिए जाते हैं इन सभी प्रसंगों का उल्लेख यहाँ हुआ है ।
पंचम सर्ग मेंबुद्ध द्वारा नंद को दीक्षा नन्द का साधुवेष धारण करना।
षष्ठ सर्ग में अपने प्रियतम के लौटने पर प्रतीक्षा करती हुई नंद की पत्नी का करुण विलाप है।
सप्तम सर्ग में सुंदरी के वियोग में नंद का विलाप ।
अष्टम सर्ग में तथा नवम सर्ग में एक साधु श्रमण नन्द को उपदेश देता है नन्द से कहता है कि आप उच्च मार्ग को अपनाकर फिर विषय वासना में लिप्त होना चाहते हैं,जोसर्वथा त्याज्य है।
दशम ससर्गर्ग मेंभगवान बुद्ध अपने योग्य विद्या के बल से नंद को उड़ाकर स्वर्ग ले जाकर अनुपम सुंदरियों के दर्शन कराते हैं ।
एकादश सर्ग में आनंद नामक भिक्षु अप्सरा की प्राप्ति के लिए तपस्या करने वाले नंद का उपहास करते हैं
द्वादश सर्ग मेंनंद बुद्ध के पास जाकर निर्वाण प्राप्ति का उपाय पूछते हैं,बुद्ध उसे विवेक का उपदेश देते हैं
त्रयोदश सर्ग में बुद्ध नंद को शील एवं संयम का पाठ पढ़ाते हैं।
चतुर्दश सर्ग में इंद्रियो पर विजय के लिए आवश्यक कर्तव्यो का वर्णन
पंचदश सर्ग में मानसिक शुद्धि का प्रतिपादन किया गया है।
षोड़श सर्ग में चार आर्य सत्यो की व्याख्या।
सप्तदश सर्ग मेंनंद को अमृतत्व की प्राप्ति का वर्णन
अअष्टम सर्गष्टमें नन्दज्ञान उपदेशों से कृतार्थ होकर गुरु के पास पहुंचता है तथा शांतचित्त से आशीर्वाद प्राप्त करता है। *********** ** *
महत्वपूर्ण तथ्य
कुछ विद्वान इसे बुद्धचरित से पूर्व की रचना मानते है ,किन्तुसौन्दरनन्दम् की विकसित काव्य शैली को देखकर इसे बुद्धचरित के बाद की रचना मानना ही उचित प्रतीत होता है।इसके पूरे सर्ग संस्कृत भाषा में ही उपलब्ध होते हैं।डॉक्टर हरप्रसाद शास्त्री ने नेपाल में प्राप्त पांडुलिपियों के आधार पर इसे प्रकाशित कराया था।डॉक्टर बिमला चरणलाहा ने इसका बांग्ला भाषा में अनुवाद प्रकाशित किया था। ।
इसका प्रामाणिक संस्करण डॉक्टर जॉनसन ने 1928 में प्रकाशित किया
यह ग्रंथ चीनी एवम् तिब्बती भाषा में उपलब्ध नहीं होता
नोट: इस महाकाव्य में रस शान्त,श्रृंगार और करुण है।
मंगलवार, 16 अक्टूबर 2018
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