"कुमार संभव" कालिदास द्वारा रचित प्रथम महाकाव्य हैं। यह "श्रृंगार रस" प्रधान महाकाव्य है।इसमें शिव- पार्वती के संयोग से उत्पन्न कार्तिकेय द्वारा देवताओं को कष्ट देने वाले तारकासुर वध की कथा ली गई है।
कथा का सर्गानुसार विवेचन इस प्रकार हैं -
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कथा का सर्गानुसार विवेचन इस प्रकार हैं -
प्रथम सर्ग में हिमालय का बहुत सहज और सुन्दर वर्णन किया गया है इसी सर्ग में हिमालय का मेना से विवाह,पार्वती का जन्म, पार्वती की सुन्दरता,नारद द्वारा पार्वती के विवाह की चर्चा,पार्वती द्वारा तपस्या करने का वर्णन किया गया है।द्वितीय सर्ग में तारकासुरके अत्याचारों से दु:खी देवता ब्रह्मा के पास आते है तथा तारकासुर का वध करने के लिए कहते है तब ब्रह्माजी बताते है कि शिव-पार्वती के संयोग से उत्पन्न पुत्र ही तारकासुर का वध कर सकता है अत:शिव -पार्वती का विवाह आवश्यक है।इन्द्र कामदेव को बुलाते है। कामदेव वसन्त के साथ उपस्थित होते है। तृतीय सर्ग मेंइन्द्र के आदेश से कामदेव शिव के पास पहुँचते हैं और सम्मोहन अस्त्र का प्रयोग करते हैं ,शिव की समाधि भंग हो जाती है शिव के क्रोधित होने पर उनके तृतीय नेत्र के तेज से काम देव जलकर भस्म हो जाता है। 'चतुर्थ सर्ग 'में कामदेव की पत्नी रति अपने पति के जल कर भस्म होने पर विलाप करती है वह चिता बनाकर सती होना चाहती है,लेकिन उसी समय आकाशवाणी होती है कि तुम्हारा काम से पुनर्मिलन होगा । पंचम सर्ग -पार्वती पुन: पंञ्चाग्नि तप करती है शिव ब्रह्मचारी वेष धारण करके उसकी परीक्षा लेने आते हैं पार्वती की परीक्षा लेने के लिए वे शिवकी अनेक बुराइयां करते हैं पार्वती फिर भी अपने निश्चय पर अटल रहती है वह ब्रह्मचारी को प्रत्युत्तर देती है अंत में ब्रह्मचारी के रूप में आए शिव अपना असली स्वरूप प्रकट करते हैं और पार्वती को आशीर्वाद देते हैं। षष्ठ सर्ग में शिवऔर पार्वती के परस्पर विवाह के इच्छुक सप्तर्षि हिमालय के पास जाते हैं ,और शिव के लिए पार्वती का हाथ माँगते हैं। सप्तम सर्ग में शिव की बारात का विस्तृत वर्णन कवि कालिदास ने बहुत ही सुन्दर पद्योंं के माध्यम से किया है पार्वती का विवाह शिव के साथ सम्पन्न होने का वर्णन इसी सर्ग में है। अष्टम सर्ग -शिव पार्वती की प्रणय लीलाओं का वर्णन हैं वे एक मास तक ससुराल में ही रहते हैं । 'नवम सर्ग' भगवान शंकर का पुन: कैलाश आना। दशम सर्ग में कुमार स्कंद का जन्म होता है ।एकादश सर्ग में कुमार की बाल लीलाओं का वर्णन हुआ है। द्वादश सर्ग में कुमार का सेनापतित्व वर्णन।त्रयोदश सर्ग में सेनापत्यभिषेकनामकम् ।चतुर्दश सर्ग देवसेना का आक्रमण के लिए प्रस्थान करनेका वर्णन है।पंचदश सर्ग में युद्ध का वर्णन है। षोड़श सर्ग में देवासुर सैन्य संघर्ष का वर्णन हैं। "सप्तदश सर्ग" में शिव पार्वती पुत्र स्कन्द(कार्तिकेय)तारकासुर का वध करते है।
b> नोट: कुछ आचार्य मानते है कि कालिदास का यह महाकाव्य अष्टसर्गात्मक ही है आगे के सर्गो का प्रणयन किसी अन्य कवि ने किया है । इसका प्रमुख कारण **प्रसिद्ध टीकाकार मल्लिनाथ की टीका** का कुमार सम्भवम् के अष्ट सर्गो पर ही आधारित होना है। लेकिनविद्वानों का यह कथन उपर्युक्त नहीं है।क्योंकि आगे के नौ सर्गो के बिना यह महाकाव्य अधूरा सा प्रतीत होता है।दूसरा कारण है कि अग्रिम सर्गो की भाषा शैली भी प्रारंभिकअाठ सर्गो से भिन्न नहीं है। अत: सम्पूर्ण कृति ही कालिदास द्वारा रचित मानना उचित प्रतीत होता है।
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