Shobha Srishti✍️

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A place of Motivation and sanskrit to the  learners and the students

6 टिप्‍पणियां:

Unknown ने कहा…

न हि एवंविधम् अपरिचितम् इह जगति किञ्चिदस्ति यथा इयमनार्य
Please explain the meaning of this line

Shobha Sharma ने कहा…

प्रश्न पूछने के लिए आपका धन्यवाद,
आपके द्वारा प्रस्तुत कथन बाणभट्ट द्वारा रचित "कादंबरी" के शुकनासोपदेश से संग्रहित है जिसमें चंद्रापीड़ का अमात्य शुकनास चंद्रापीड़ को उसके राज्याभिषेक से पूर्व उपदेश देता है इस कथन में वह लक्ष्मी के स्वभाव के संबंध में कहता है की निश्चय ही संसार में ऐसी कोई वस्तु परिचय की उपेक्षा करने वाली नहीं है जैसी कि यह नीच स्वभाव वाली दुष्टा लक्ष्मी है अमात्य शुकनास चन्द्रापीड़ से लक्ष्मी के दोषों पर चर्चा करते हुए कहता है कि यह लक्ष्मी क्षीरसागर में मंदराचल के द्वारा किए गए मंथन से उत्पन्न "भंवर"संस्कार से युक्त होने के कारण चंचल स्वभाव वाली है इसने परिजात के पल्लवो से आसक्ति, चंद्रकला से कुटिलता, उच्चैश्रवा अश्व से चंचलता, कालकूट से सम्मोहन शक्ति, मदिरा से मादकता और कौस्तुभ मणि से क्रूरता को ग्रहण किया है। यह प्राप्त हो जाने पर भी बहुत मुश्किल से पाली जाने वाली है। लक्ष्मी किसी व्यक्ति के परिचय कुलीनता, विद्वता आदि को नहीं देखती। चंचला होने के कारण है यह एक स्थान पर टिक नहीं पाती है

Unknown ने कहा…

Please explain the above line in English.
Thank you

Unknown ने कहा…

Please explain the above line in English.
Thank you

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Hindinewsadda ने कहा…

Mam how can I contact you ?

Unknown ने कहा…

Exam ke liye mahakbya khandkabya ki yuktiyan sanskrit se mil sakti he kya