गुरुवार, 18 अक्टूबर 2018

सौन्दरनन्दम् #अश्वघोष की रचनाए

यह अश्वघोष का दूसरा महाकाव्य है जिसमें 18 सर्ग है।         इस महाकाव्य में राजा नंद और सुन्दरी कीकथा का वर्णन है।नन्द गौतम बुद्ध का सौतेला भाई था।वह अत्यंत सुन्दर और विलासी प्रकृति का था।वह अपनी पत्नी सुंदरी पर अत्यंत आसक्त था ।इसलिएगौतम बुध्द ने नंद को सांसारिकविषयों से अलग कर बौद्ध धर्म की दीक्षा दी।                                   सौन्दरनन्द का सर्गानुसार विषय विवेचन इस प्रकार है।          प्रथम सर्ग---

गौतम बूद्ध की जन्म भूमि कपिल वस्तु का वर्णन है,इस महाकाव्य के प्रथम सर्ग में मंगलाचरण के स्थान पर गौतम का ही उल्लेख है।   
  द्वितीय सर्ग-राजा शुद्धोदन का वर्णन,गौतम और नन्द के जन्म का वर्णन ।                       

  तृतीय सर्ग-इसमें गौतम की बुद्धत्व प्राप्ति काउल्लेख है      

चतुर्थ सर्ग-नंद और सुन्दरी केप्रणय व्यवहार मेंडूबे होने पर गौतम काभिक्षा लेने आना,विना भिक्षा लिए लौट जाना,जब नंद को इस बात का आभास होता है,तो वह गौतम से क्षमा याचना के लिए जाते हैं इन सभी प्रसंगों का उल्लेख यहाँ हुआ है । 

पंचम सर्ग  मेंबुद्ध द्वारा नंद को दीक्षा नन्द का साधुवेष  धारण करना।

षष्ठ सर्ग में अपने प्रियतम के लौटने पर प्रतीक्षा करती हुई नंद की पत्नी का करुण विलाप है।          

  सप्तम सर्ग में सुंदरी के वियोग में नंद का विलाप ।

अष्टम सर्ग में तथा नवम सर्ग में एक साधु श्रमण नन्द  को उपदेश देता है नन्द से कहता है कि आप उच्च मार्ग को अपनाकर फिर विषय वासना में लिप्त होना चाहते हैं,जोसर्वथा त्याज्य है।

दशम ससर्गर्ग मेंभगवान बुद्ध अपने योग्य विद्या के बल से नंद को उड़ाकर स्वर्ग  ले जाकर अनुपम सुंदरियों के दर्शन कराते हैं ।   

एकादश सर्ग में आनंद नामक भिक्षु अप्सरा की प्राप्ति के लिए तपस्या करने वाले नंद का उपहास करते हैं

द्वादश सर्ग मेंनंद बुद्ध के पास जाकर निर्वाण प्राप्ति का उपाय पूछते हैं,बुद्ध उसे विवेक का उपदेश देते हैं   

  त्रयोदश सर्ग में बुद्ध नंद को शील एवं संयम का पाठ पढ़ाते हैं।

 चतुर्दशर्ग में इंद्रियो पर विजय के लिए आवश्यक कर्तव्यो का वर्णन  

पंचदश सर्ग में मानसिक शुद्धि का प्रतिपादन किया गया है।  

 षोड़श सर्ग में चार आर्य सत्यो की व्याख्या।

सप्तदश सर्ग मेंनंद को अमृतत्व की प्राप्ति का वर्णन  

अष्टम सर्गष्टमें  नन्दज्ञान उपदेशों से कृतार्थ होकर गुरु के पास पहुंचता है तथा शांतचित्त से आशीर्वाद प्राप्त करता है। *********** ** *

महत्वपूर्ण तथ्य

  कुछ विद्वान इसे बुद्धचरित से पूर्व की रचना मानते है ,किन्तुसौन्दरनन्दम् की विकसित काव्य शैली को देखकर इसे बुद्धचरित के बाद की रचना मानना ही उचित प्रतीत होता है।इसके पूरे सर्ग संस्कृत भाषा में ही उपलब्ध होते हैं।डॉक्टर हरप्रसाद शास्त्री ने नेपाल में प्राप्त पांडुलिपियों के आधार पर इसे प्रकाशित कराया था।डॉक्टर बिमला   चरणलाहा ने इसका बांग्ला भाषा में अनुवाद प्रकाशित किया था।    ।    

इसका प्रामाणिक संस्करण डॉक्टर जॉनसन ने 1928 में प्रकाशित किया

 यह ग्रंथ चीनी एवम् तिब्बती भाषा में उपलब्ध नहीं होता        

नोट: इस महाकाव्य में रस शान्त,श्रृंगार और करुण है।

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