मनुस्मृति- सप्तम अध्याय। मनु ने मनुस्मृति के सप्तम अध्याय में राजा के प्रभुत्व और उसकी राज व्यवस्था में दंड नीति की महत्ता ,काम, क्रोध से उत्पन्न दोषो की चर्चा तथा राज्यव्यवथा मे मंत्रियो गुप्तचरो और दूतो की भूमिका का वर्णन किया है मनुस्मृति के सप्तम अध्याय के अनुसार राजा पृथ्वी पर ईश्वर के प्रतिनिधि के रूप में कार्य करता है। राजा मे 8 देवताओं का अंश माना गया है जिनमें यम कुबेर सूर्य अग्नि चंद्रमा कुबेर इन्द्र,वरुण शामिल है। इसमे बताया गया है कि राजा के बालक होने पर भी उसका अपमान नहीं करना चाहिए क्योंकि वह पृथ्वी पर मनुष्य रूप में देवता होता है । मनुस्मृति के अनुसार राजा के साथ अज्ञानता के कारण ईर्ष्याभाव नहीं रखना चाहिए। क्योंकि जिसके प्रति वह कुपित होता है उसके विनाश का शीघ्र मन राजा बना लेता है है। मनुस्मृति में राजा की तुलना अग्नि से करते हुए कहा गया है कि जिस प्रकार लापरवाही करने पर अग्नि घर को नष्ट कर देती है उसी प्रकार राजा अपने विरोधियों का पशु,धनधान्य सहित सर्वनाश कर देता है जिस राजा की प्रसन्नता में कमलवासिनीलक्ष्मी का वास होताा है पराक्रम में विजय तथा क्रोध में मृत्यु का वास होताा है वही राजा सभी प्रकार से तेजस्वी होता है। दंड के संबंध में कहा गया है कि राजा के निमित्त तथा सभी प्राणियों की रक्षा करने वाले करने के लिए तेजमय तथा पुत्रतुल्य दंड को ईश्वर ने रचा है। मनुस्मृति में दंड की महत्ता पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि दंड ही चारों आश्रमोंं के धर्म का प्रतिनिधि है ।दंड के कारण ही सभी प्राणी अपने अपने धर्म के अनुसार आचरण करते हैं दंड ही राजा है ,परम पुरुष है ,प्रजा पर शासन करनेे वाला है राजा का कर्त्तव्य है कि है वह देश काल के अनुसार पूरी तरह विचार करते हुए अन्याय करने वालेे को उचित दंड दे आगे दंड नीति की प्रयोग के परिणाम पर प्रकाश डालते हुए कहा गया है कि जो राजा दंड का प्रयोग नियम से सही ढंग से करता है वह धर्म धन तथा काम से वृद्धि पाता है परंतु धर्म से पलायित राजा अपने कुटुंब सहित इससे नष्ट हो जाते है तत्पश्चात किला राष्ट्र तथा चराचर समस्त लोक का नाश कर डालता है तथा अन्तरिक्ष वासी मुनि और देवताओं को भी पीड़ित करता है दुःख पहुंचाता है। इसलिए राजा को न्याय पूर्वक व्यवहार करना चाहिए जो राजा न्याय का पोषक होता है ।उस राजा की यश पताका इस लोक में जल मेंं तेल के बिंदुु की भाँति फैलती है। जो राजा न्याय का पोषण नही करता है तथा अपने हृदय के अधीन नहीं रहता है उसका यश संसार मे जल मे गिरी हुई तेल की बूँदो की तरह सिकुड जाता है। शेष विषयो के बारे अगली पोस्ट में चर्चा करेंगे । please like share and comments धन्यवाद आप सभी का ।
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें