व्याकरणअनुवाद विधि/भंडारकर विधि शिक्षा
. संस्कृत की प्राचीन शिक्षण विधियों में से इस विधि के जनक श्री रामकृष्ण भंडारकर महोदय माने जाते हैं उन्हीं के नाम पर इस विधि का नाम भंडारकर का विधि पड़ा है ।
इस विधि के चार सोपान है--
1सर्वप्रथम व्याकरण पाठ की उदाहरण सहित व्याख्या की जाती है नियमों का अभ्यास कराया जाता है नवीन शब्दों से अभ्यास कराया जाता है
2संस्कॄत वाक्यों का अंग्रेजी में अनुवाद कराया जाता है।
3 पुनः वाक्यो का अंग्रजी भाषा से संस्कृत भाषा में अनुवाद कराया जाता है।
4 अनुवादो के अभ्यास हेतु शब्दकोष से नये नये शब्दो का बोध कराया जाता है।
व्याकरण अनुवाद विधि या भंडारकर विधि के गुण
. इस विधि में व्याकरण पाठ का पर्याप्त अभ्यास कराया जाता है रटने की प्रवृत्ति के स्थान पर अभ्यास पर अधिक बल दिया जाता है जिससे यह एक मनोवैज्ञानिक विधि कही जा सकती है।
.इसमेंं स्थूल से सूक्ष्म,ज्ञात से अज्ञात,सरल से कठिन शिक्षण सूत्रो का अनुसरण होता है।
.इसमें छात्रो मे स्वाध्याय की आदत विकसित होती है।
.इस विधि के द्वारा एक बड़े समूह को सरलता सेेेे पढ़ाया जा सकता है। अतः इससे समय,शक्ति और धन की बचत होती है।
.भाषाओं के शब्दकोष का ज्ञान होता है।
. यह विधि सामान्य बालक के लिए भी उपयोगी है।
दोष
. अंग्रेजी भाषा पर भी ध्यान देने से यह पाश्चात्य शिक्षा से प्रभावित है।
.इस विधि में उच्चारण अभ्यास का अभाव, साहित्य का अभाव देखने को मिलता है।
.यह विधि नीरस और एकांगी है क्योंकि इसमें केवल व्याकरण एवम्अनुवाद पर बल दिया जाता है।
विशेष
संस्कृत भाषा शिक्षण की प्राचीन विधियों के बारे में आप सभी ने समझ लिया है ।मैं आशा करती हूँँ कि संस्कृत भाषा शिक्षण की विधियों पर लिखी जा रही posts आपके ज्ञानार्जन में सहायक होगी।
प्रोत्साहन के लिए आप सभी का बहुत-बहुत आभार
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