/> नमस्कार आप सभी का स्वागत है Sanskrit jeeva पर आज हम न्याय वैशेषिक दर्शन पर आधारित ग्रंथ तर्कसंग्रह से सम्बन्धित चर्चा कर रहे है
दोस्तो जैसा कि आप सभी को विदित है कि तर्कसंग्रह के रचनाकार अन्नमभट्ट है इसी ग्रंथ से सम्बन्धित कुछ पोस्टे पूर्व में लिखी जा चुकी है जिन्हे आपनीचे दिए जा रहे लिंक पर Click कर के पढ़ सकते हैं
तर्कसंग्रह -अन्नमभट्ट प्रणीत ग्रंथ/न्याय वैशेषिक दर्शन
न्याय वैशेषिक दर्शन में सात(7) पदार्थ माने गए हैं। 1द्रव्य,2 गुण 3कर्म, 4 सामान्य, 5 विशेष, 6समवाय 7अभाव
आइये हम इस पोस्ट के अंदर नौ द्रव्यो के बारे में जान लेते है
तर्कसंग्रह (न्याय वैशेषिक दर्शन) के अनुसार सात पदार्थ |
तर्कसंग्रह के अनुसार नौ द्रव्य और उनके लक्षण |
पृथिवी-- गन्धवती पृथिवी तर्कसंग्रह के अनुसार नौ द्रव्यों में पृथिवी की गणना होती है। पृथिवी में गंध का गुण होता है। गंधत्व पृथ्वी का सामान्य लक्षण है
पृथ्वी के दो भेद होते हैं 1.नित्य पृथिवी 2.अनित्य पृथिवी
नित्य पृथिवी परमाणुरुप में होती है क्योंकि परमाणु का कभी विनाश नही होता है अनित्य पृथ्वी कार्यरूप है क्योकि कार्य हमेशा नही रहता है।
अनित्य पृथ्वी के पुनः तीन भेद किए गए ।
> 1शरीररूप,2 इंद्रिय रूप और 3विषय रूप
हमारा शरीर शरीर रूप पृथ्वी है इसी तरह नाक केअग्र भाग में रहने वाला घ्राणेन्द्रिय इन्द्रिय रूप पृथ्वी है और मिट्टी पत्थर आदि विषयरूप पृथ्वी है अर्थात अनित्य पृथ्वी शरीर ,इन्द्रिय और विषय के रूप में रहती है।
जल तर्कसंग्रह में जो नौ द्रव्य बताए गए हैं उनमें जल नामक पदार्थ की भी गणना की गई है।जिसमें "शीतलता स्पर्श "नामक गुण समवाय संबंध से रहता है वह जल है
प्रथम तो जल के भी दो भेद किये गये हैं 1नित्य,2अनित्य
अनित्य जल को पुनः तीन भागों में विभक्त किया गया है।1. शरीर रूप 2 इन्द्रिय रूप 3 विषय रूप शरीर रूप में यह वरूण लोक में रहता है ऐसा पुराणो में वर्णित है। जीभ के अग्रभाग में विद्यमान रसनेन्द्रिय इन्द्रिय के रूप में पाये जाने वाला जल का भेद है ,नदी नाले समुद्र में रहने वाला जल विषय रूप है
तेज(अग्नि)-तर्क संग्रह के अनुसार नौ द्रव्यो में तेज की गणना होती है इसका सामान्य लक्षण है "उष्णस्पर्शवत्तेज" जिसका स्पर्श उष्ण(गर्म) होता है। जैसे अग्नि,चन्द्र,सूर्य आदि क्योकि इनमे तेज समवाय सम्बन्ध से रहता है। यह नित्य और अनित्य दो प्रकार का है नित्य तेज परमाणुरूप और अनित्य तेज कार्यरूप होता है। यह भी अनित्य रूप में शरीर, इन्द्रिय,और विषय केभेद से पुन:तीन प्रकार का होता है।
विषयरूप तेज के चार प्रकार |
span style="background-color: lime; font-size: large;">विषय रूप अग्नि के भी चार प्रकार बताए गए है।1भौम तेज2 दिव्य तेज3औदर्य तेज 4 आकरज तेज
वायु - रूप रहित,और स्पर्शवान होती है इसका कोईरूप नही है,लेकिन इसे त्वचा इन्द्रिय से महसूस कर सकते है
वायु के दो भेद है नित्य और अनित्य है।नित्य वायु परमाणु रूप होती है अनित्य वायु
अनित्य वायु के पुन:तीन भेद है शरीर रूप में वायु वरूणलोक में रहता है जैसा कि पुराणादि में वर्णित है इंद्रिय रूप में हमारी चमडी (त्वचा) के रूप में,विषय रूप में आंधी तूफान चक्रवात तथा हमारे शरीर में रहने वाले प्राणवायु है हमारे विभिन्न प्रकार की क्रिया को करने के कारण एवं विभिन्न स्थानों में रहने के कारण यह प्राणवायु पांच प्रकार की होती है प्राण, अपान, समान, उदान, व्यान
आकाश-तर्क संग्रह में बताए गए नौ द्रव्यों में आकाश भी सम्मिलित हैइसमें "शब्द गुण" समवाय संबंध से रहता हैआकाश एक और व्यापक है जबकि पृथ्वी आदि महाभूतों में अनेकत्व और अव्यापकत्व दिखाई देता है। आकाश नित्य है, अनित्य नहीं है
काल- नौ द्रव्यो में छठवां तत्व काल हैंजो किसी वस्तु के अतीत,वर्तमान,भविष्य के ज्ञान का कारण है आकाश के सामान सर्वत्र रहने से एवं सभी पदार्थों में व्यवहार का कारण होने से व्यापक एवम् नित्य है।लौकिक व्यवहार में हम क्षण, घड़ी, दिन, रात, पक्ष ,मास, बर्ष आदि काल के अनेक भेदो का प्रयोग करते हैं परन्तु व्यवहार हेतु का एक मात्र आधार होने से कारण एक ही माना गया है,और नित्य हैं
दिक्(दिशा)- प्राची, प्रतीची, वाची, उदीची आदि को जानने का जो एक मात्र कारण हैजिसके बिनाका प्राच्यादि का बोध नहीं हो सकता ऐसे असाधारण कारक को दिशा कहते हैं यह व्यापक और नित्य हैंदिशा आदि की जो दस भेद बताए जाते हैं वह केवल औपाधिक हैवस्तुत दिशा एक ही है एक होने के कारण वह व्यापक है।
आत्मा- आत्मा भी नौ द्रव्यो में गिना जाने वाला एक द्रव्य है जो ज्ञान का अधिकरण है अर्थात जो ज्ञान का आश्रय तत्व है,जिसमें चेतना विद्यमान हो वही आत्मा है न्याय शास्त्रियों के अनुसार आत्मा के दो भेद बताई गई है1 परमात्मा 2 जीवात्मा
परमात्मा वह है जो सब कुछ जानता है
जीवात्मा - जीवात्मा भी परमात्मा का ही अंश है, जो सब कुछ नहीं जानता परंतु बहुत कुछ अवश्य जानता है प्रत्येक शरीर में विद्यमान होने से यह अनंत माना गया है जीवात्मा और प्राणी पर्यायवाची हैं।यह प्रत्येक शरीर में विद्यमान होने के कारण व्यापक हैऔर व्यापक होने के कारण नित्य भी हैं।
मन सुख और दु:ख की प्राप्ति का जो इन्द्रिय के रूप में साधन /माध्यम है।वह इन्द्रिय ही मन है। मन प्रत्येक शरीर में स्थित होने से अलग अलग अनन्त है वह परमाणुरूप और नित्य है।
1 टिप्पणी:
24 गुण ko bhi explain kr digiye aapki post bht ...bdhiya h . trksangrh ko puri kr digiye please 🙏🏻
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