शुक्रवार, 12 जून 2020

Lockdown#कविता का शीर्षक:"वर्तमान परिस्थितियों में मजदूरो की व्यथा

कविता का शीर्षक:"वर्तमान परिस्थितियों में
 मजदूरो की व्यथा


अरे, मेरे मजदूर भाईयो की व्यथा आज बढ़ गई है।
 कोरोना की भयावहता उनके ही घर कर गई है।
जिनके हाथों में काम करते करते पड़ जाते थे छाले ।
आज  उन हाथों में न छाले रहे न ही काम रहा ।।
छालों ने भी कभी नहीं दिया इतना दर्द जितना
 आज बिन छालो के पा रहे हैं ।
 देखो, आज उनकी आंखों में बिन छालों के भी 
असहनीय दर्द के आंसू आ रहे हैं।
 आज वह रोटी के लिए दूसरों के मुंह ताक रहे हैं 
और बिन खाये पीये ही दिन काट रहे है।।
सोते जागते वर्तमान की चिन्ता सता रही है।
देखो, एक श्रमदाता की गर्भवती पत्नी प्रसव पीडा़ से
 कराह रही है ।
हम तुम जैसै लोग आने वाले बच्चे के भविष्य के
 सपनो से सने है।
 जबकि उस धरती पुत्र का यही सपना है 
कि उसका आने वाला लाल काल का ग्रास न बने ।।
दूसरो के रहने के लिए ठिकाना बनाते है
 पर आज अपना ठिकाना ढूंढ रहे है।
जो आए थे गांव से शहरों की और बेहतर
 जिंदगी का सपना सजाने के लिए।
  वह लौट रहे हैं आज शहरों से गांव की ओर
 अपनी जिंदगी  बचाने के लिए
  अपने परिजनों के संग हाथों में अपने बचे कुचे सामान का बीड़ा लिए और दिल में समुद्र सी अथाह पीड़ा लिए।।         
कुछ तो अपने घर पहुंच गए ,कुछ ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।
देखकर उनकी कुर्बानी मेरे अंतर्मन ने मुझे झकझोर दिया।।

हे ईश्वर ,मेरे भारत के कर्मवीर सपूतों पर दया का हमेशा हाथरखना
 जब छूटने लगे साथ सभी का, फिर भी अपने साथ रखना।  उनकी दो वक्त की रोटी कभी ना छिने यह ध्यान रखना।
 जोड़ने पड़े न कभी हाथ अमीरों की दहलीजो पर उन्हे
उनके अमूल्य आत्मसम्मान का मान रखना।

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धन्यवाद
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