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मंगलवार, 18 दिसंबर 2018
सांख्यकारिका , सांख्यदर्शन के 25 तत्त्व
उत्पत्ति के मूल में है स्वयं किसी पदार्थ से उत्पन्न नही है। जैसे मूलप्रकृति 2. विकृति--जो तत्व किसी का केवल कार्यरूप है किसी का कारण नही है 16तत्वो का समूह विकृति है जिसमे पाँच ज्ञानेन्द्रिय,पाँच कर्मेन्द्रिय,मन और पञ्च महाभूत शामिल है। 3.प्रकृति और विकृति--कुछ तत्व कारणरूप और कार्यरूप है इसके अन्तर्गत 7तत्व सम्मिलित है महत्,अहंकार, 5तन्मात्राए(शब्द,स्पर्श,रूप,रस,गंध) 4.न प्रकृति न विकृति- जो न कारण है न कार्य है। जैसे पुरुष प्रकृति का स्वरूप*-सांख्य दर्शन में प्रकृति के सम्बन्ध में प्रकृति के ज्ञान, प्रकृति का स्वरूप,प्रकृति की अवस्थाएँ तथा प्रकृति के अस्तित्व के प्रमाण का विश्लेषण किया गया है। सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति का ज्ञान अनुमान के माध्यम से होता है जब हम विश्व के मूल कारण की खोज करते है विश्व में दो प्रकार की वस्तुएँ है स्थूल पदार्थ,सूक्ष्म पदार्थ मिट्टी पानी पवन स्थूल पदार्थ कहे जाते है जबकि इन्द्रिय मन अहंकार आदि सूक्ष्म पदार्थ है अत:विश्व का मूल कारण वही हो सकता है जो दोनो प्रकार के पदार्थो को धारण करने का सामर्थ्य रखता हो अब प्रश्न यह उठता है कि वह तत्व कौनसा है ? क्या वह कारण महाभूत है ?यह कारण महाभूत नही हो सकते है क्योकि महाभूतो से सूक्ष्म पदार्थ उत्पन्न नही हो सकते है क्या वह कारण पुरुष है?नही वह कारण पुरुष भी नही हैक्योंकि पुरुष शुद्ध चैतन्य स्वरूप है जबकि विश्व में मिट्टी आदि स्थूल पदार्थ भी है इसलिए विश्व का मूल कारण पुरुष भी नहीं है।सांख्य के अनुसार प्रकृति ही वह कारण जो स्थूल और सूक्ष्म दोनो प्रकार के पदार्थो का आधार बनने में सक्षम है।जिसका काज्ञान अनुमान के माध्यम से होता है। सांख्य के अनुसार प्रकृति को कई नामों से जाना जाता है अव्यक्त अर्थात विश्व रूपी कार्य की अव्यक्त अवस्था, प्रधान अर्थात् विश्व का मूल कारण ,अजा अर्थात नित्य और शाश्वत,अनुमानगम्य ,प्रसवधर्मिणी अर्थात् परिणाम को जन्म देने वाली सांख्य दर्शन के अनुसार प्रकृति के तीन गुण हैं सत्व,रजस, तमस ये तीनो गुण पृथक पृथक होते हुए भी मिलकर कार्य करते है।जैसे दीपक में तेल, बत्ती, ज्वाला परस्पर भिन्न होकर भी मिलकर प्रकाश उत्पन्न करने का कार्य करते है। सांख्यकारिका में प्रकृति के गुणो के सम्बन्ध में कहा गया है- सत्वं लघु प्रकाशकमिष्टमुपष्टम्भकं चलञ्च रज: । गुरु वरणकमेव तम,प्रदीपवच्चार्थतो वृति:।। उपर्युक्त पद्य के अनुसार सत्व गुण शुद्धता का प्रतीक है जिससे आनन्द और ज्ञान की प्राप्ति होती है यह गुण हल्का,श्वेत वर्ण का है ।रजस गुण अशुद्धि का प्रतीक हैं क्रोध,द्वेष,विषाद जैसी दु:खात्मक प्रवृत्तियो की उत्पत्ति का कारण है।रक्त वर्ण का है।तमस गुण अन्धकार तथा अज्ञान का प्रतीक है। मोह ,प्रमाद ,आलस्य और मूर्च्छा आदि पैदा करने वाला है।भारी होने के कारण यह अधोगामी है उसका रंग काला माना गया है प्रकृति की दो अवस्थाएँ मानी गई है 1साम्यावस्था 2 वैषम्यास्था संस्कृत विषय से संबंधी Topics आप अपने Blog sanskrit jeeva पर प्राप्त कर सकते है
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3 टिप्पणियां:
Great
धन्यवाद✍️
आप सभी इसी प्रकार उत्साहवर्धन करते रहे।
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