उत्तररामचरितम् की प्रमुख सूक्तियाँ---उत्तररामचरितम् भवभूति की अंतिम व सर्वश्रेष्ठ कृति मानी जाती है इसमे भवभूति ने करुणरस की जो सरिता बहायी है एक ओर वह सभी रसिक जनो के ह्रदय को विदीर्ण करती है दूसरी ओर उनके आँखो से निकलने वाले आँसू उनके अन्त:करण को पावन कर देते है।
क्षेमेन्द्र ने सुवृत्ततिलक में भवभूति के शिखरिणी की प्रशंसा में उसे निर्रगलतरंगिनी कहा है
प्रथम अंक की प्रमुख सूक्तियाँ
अपिग्रावा रोदित्यपि दलति वज्रस्य ह्रदयम्। चित्रवीथी प्रसंग में लक्ष्मण राम एवं सीता से वनवास की स्मृतियो को स्मरण करते हुए कहते है कि जनस्थान (दण्कारण्य)मेंआपके चरितो से पत्थर भी रो पड़े थे और वज्र का भी ह्रदय फट गया था
एते हि ह्रदयमर्मच्छिद: संसारभावा:
प्रस्तुत कथन में राम सीता से कहते है कि ये सांसारिक भाव ह्रदय के मर्मस्थल को भेदने करने वाले है।
इयं गेहे लक्ष्मीरियममृतवर्तिर्नयनयो:। प्रस्तुत पंक्ति में राम सीता की प्रशंसा करते है कि यह सीता घर में लक्ष्मी है,यह नेत्रों के लिए अमृत की शलाका है । दुर्जन: असुखमुत्पादयति दुर्जन दु:ख उत्पन्न करता है। यह कथन सीता का है राम लक्ष्मण के समक्ष। तीर्थोदकं च वहिश्च नान्यत:शुद्धिर्महत:। राम सीता के परिपेक्ष्य में कहते हैं कि तीर्थ जल और अग्नि ये अन्य पदार्थों से शुद्धि के योग्य नहीं है।अर्थात् इनकी पवित्रता के संबंध में संदेह करना भी पाप के समान है
नैसर्गिकी सुरभिण:कुसुमस्य सिद्धा मूर्ध्नि स्थितिर्न चरणैरवताडनानि।। श्रीराम सीता को लक्ष्य कर लक्ष्मण से कहते हैं कि सुगंधित पूर्ण का सिर पर रखा जाना स्वाभाविक सिद्ध है न कि पैरों से कुचला जाना।
सत्तां केनापि कार्येण लोकस्याराधनं व्रतम् जब दुर्मुख नामक गुप्तचर श्रीराम को सीता के संबंध में फैले लोकापवाद को कहता है तो श्री राम सीता को त्यागने का निर्णय लेते हैं वे कहते हैं चाहे जो भी हो जनता को प्रसन्न रखना ही राजा का परम कर्तव्य हैं। सन्तापकारिणो बन्धुजनविप्रयोगा भवन्ति । सीता राम लक्ष्मण के सम्मुख कहती हैं कि बंधुजनों का वियोग बहुत दुखदायी होता है। ते हि नो दिवसा गता:। श्रीराम लक्ष्मण और सीता से कहते हैं कि हमारे पुराने दिन बीत गये है।
विशेष-यह अंक संस्कृत की सभी प्रतियोगी परीक्षाओ की
दृष्टि से महत्त्वपूर्ण है इसका अध्ययन सभी विद्यार्थियो के
लिए आवश्यक है।
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