रविवार, 27 दिसंबर 2020

Dosti#poem#दोस्ती

Poem on friendship
दोस्ती #dosti

दोस्ती#quotes पढ़ने के लिए

जिंदगी पर विचार#quotes पढ़ने के लिए


सोमवार, 14 दिसंबर 2020

Thought#आज का विचार#motivational#dosti#दोस्ती

दोस्ती ईश्वर का कितना अनमोल तोहफा है।
 इसकी कीमत आपका दिल जानता है।



Dosti#दोस्ती







शुक्रवार, 20 नवंबर 2020

Motivational poem#zindagi#quotes

 जिंदगी में बहुत कुछ सीखा है लेकिन अभी और सीखना बाकी है। 

बहुत तप  चुके अन्दर से हम अब शायद निखरना बाकी है। 

परिस्थितियां तो  हमें नहीं हरा पायी शायद अब उनका हारना बाकी है।

सपने तो बहुत देख चुके शायद अब सच होना बाकी है।

 थक कर बैठ नहीं सकते शायद अभी कुछ दूरी और चलना बाकी है।

हर पल  मुस्कुराना सीख चुके अब दुनिया मे छा जाना बाकी है।


विशेषदोस्तों, मैने कुछ समय पहले ही अपनी पुस्तक शोभा सृष्टि कविता संग्रह प्रकाशित करवायी है।जिसमे जीवन सेजुडी़ बातें जैसे माँ ,दोस्त,सपने,ख्वाहिशे, समय, मुस्कुराहट, जुनून,शिक्षक, कोरोना की भयावहता साथ ही अपनो कीएकता आदि बिषयो को कवितारूप में स्थान दिया है।

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मुझे उम्मीद है कि मेरा यह छोटा सा प्रयास

 सार्थक होगा आप सभी मेरा उत्साहवर्धन करेंगे 

धन्यवाद✍️🙏

गुरुवार, 8 अक्टूबर 2020

संस्कृत शिक्षण की विधियाँ(sanskrit teaching methods) संस्कृत शिक्षण की नवीन विधियाँ # विश्लेषणात्मक विधि#हरबर्टीय पंचपदी विधि#मूल्यांकन विधि#

  संस्कृत शिक्षण की विभिन्न विधियाँ

 "विश्लेषणात्मक विधि " यह विधि पूर्ण से अंश के प्रति  शिक्षण सूत्र परआधारित है ।

जैसा कि नाम से स्पष्ट होता है इस विधि में शिक्षक पहले तो पाठ के संपूर्ण अंशो को वर्गीकृत करता है फिर एक- एक अंश को ग्रहण कर उसका विश्लेषण करता है।

 संस्कृत शिक्षण में  यह विधि विशेष रूप से व्याकरण शिक्षण और कथा शिक्षण में प्रयुक्त होती है। उदाहरण के तौर पर समझ सकते है कि "संधि प्रकरण" का ज्ञान छात्रों को देना है  तो शिक्षक सर्वप्रथम संधि के सभी प्रकारों के बारे में बताता है। तत्पश्चात सभी प्रकारो के अंतर्गत आने वाली सभी संधियों को एक-एक करके समझाता है।

 इसी प्रकार संस्कृत में कक्षा शिक्षण कराते समय शिक्षक इस विधि के माध्यम से सर्वप्रथम संपूर्ण कथा का सार संक्षेप में सुनाता है  उसके पश्चात वह कथा मे आने वाली घटनाओ को क्रमबद्धरूप में प्रस्तुत  करता है । सभी पात्रों का एक-एक कर के वर्णन करता है। जिससे कथावस्तु छात्रों को अच्छी प्रकार से समझ में आती है।

विश्लेषणात्मक विधि के गुण

 इस विधि के माध्यम से शिक्षण कराने पर कठिन अंशों को समझाना आसान होता है, जिससे छात्र पढ़ने के लिए प्रेरित होते हैं।

 विश्लेषणात्मक विधि के दोष

 सभी प्रकार की विधाओं के शिक्षण में यह विधि प्रयुक्त नहीं की जा सकती।  

हरबर्टीय पंचपदी विधि  प्रसिद्ध शिक्षा शास्त्री एवं मनोवैज्ञानिक हरबर्ट  महोदय के सिद्धांतों का अनुसरण करते हुए उनके शिष्यों रेन और शिलर ने पंच पदों से युक्त इस शिक्षण विधि को प्रस्तुत किया। 

पूर्व में हरबर्ट महोदय ने चार सोपानो से युक्त शिक्षण की एक प्रणाली प्रस्तुत की। जिसके चार सोपान निम्नलिखित है

1 स्पष्टता

2 सम्बद्धता(तुलना)

3 व्यवस्था(सामान्यकीरण)

4 विधि(प्रयोग)


 इसी शिक्षण प्रणाली में संशोधन करते हुए 4 पदों में एक पद और जोड़ते हुए इस विधि को प्रस्तुत किया जिसे हरबर्टीय पंचपदी विधि कहते हैं । 

हरबर्टीय  पंचपदी विधि के पांच सोपान 

1 प्रस्तावना

2 विषयोपस्थापना

3 तुलना

4 सामान्यीकरण

5 प्रयोग

 प्रस्तावना छात्रों के पूर्व ज्ञान को नवीन ज्ञान से जोड़ने के लिए शिक्षक छात्रों से कुछ प्रश्न पूछता है। जिसमें अंतिम प्रश्न समस्यात्मक होता है उस समस्या प्रश्न के आधार पर ही शिक्षक नवीन ज्ञान नवीन  की भूमिका तैयार करता है इन प्रस्तावना  प्रश्नों को पूछने का मुख्य उद्देश्य  यह ज्ञात करना है कि छात्र किसी विषय में कहां तक जानकारी रखते हैं और कहां से उन्हें नवीन जानकारी देनी है।  

प्रस्तावना प्रश्नों को तैयार करने के लिए शिक्षक किसी कथा को छात्रों के सामने सुना सकता है और उसमें से प्रश्न पूछ सकता है या किसी मानचित्र को दिखा कर या किसी प्रत्यक्ष वस्तु का उदाहरण देकर प्रश्न पूछता है प्रस्तावना प्रश्न में अंतिम प्रश्न समस्यात्मक होना आवश्यक है।

प्रस्तावना प्रश्नो को तैयार करते समय छात्रों की योग्यताओं,उम्र,रुचियो को ध्यान रखना आवश्यक है।तब ही प्रस्तावना की सफलता की संभावना बढ़ती है।


 विषयोपस्थापन प्रस्तावना प्रश्न पूछने के पश्चात शिक्षक इस सोपान का अनुसरण करता है इस सोपान में उद्देश्य कथन के साथ विषय का प्रस्तुतीकरण किया जाता है कक्षाकक्ष मे पढ़ाने के लिए शिक्षक द्वारा कक्षा में की जाने वाली क्रियाओं को सम्मिलित रूप से प्रस्तुतीकरण कहते हैं।

 गद्य पद्य व्याकरण आदि विधाओं के लिए प्रस्तुतीकरण का ढंग एक जैसा नहीं होता  जैसे पद्य पाठ में सस्वर वाचन होता है जबकि गद्य में नहीं

 तुलना काठिन्य निवारण के लिए शिक्षक द्वारा दृश्य श्रव्य समग्री का प्रयोग करना ही इस सोपान के अन्तर्गत आता है।

सामान्यीकरण पढाये गये पाठ का सार ,निष्कर्ष,नियम को शिक्षक द्वारा निकलवाना सामान्यीकरण है।

 जैस व्याकरण पाठ को विभिन्न उदाहरणो द्वारा  स्पष्ट करने के पश्चात शिक्षक उससे संबंधित नियम को छात्रों के सामने रखता है।

 इसी प्रकार गद्य पद्य पाठ का सार बताना या छात्रों से पूछना इस सोपान के अंतर्गत आता है।

 सामान्यी करण का मुख्य उद्देश्य पढी हुई विषय वस्तु कोछात्रों के लिए स्पष्ट रूप से बोधगम्य बनाना है।


प्रयोग  पाठ पढ़ाने के अंत में शिक्षक द्वारा दिया गया कक्षा कार्य ,गृह कार्य या अभ्यास कार्य इस सोपान के अंतर्गत आता है। 

इसका मुख्य उद्देश्य छात्रों द्वारा प्राप्त ज्ञान को परिपुष्ट करना है ।

 जिससे उनका ज्ञान चिरस्थायी हो और वह भविष्य में उसका प्रयोग करने में सक्षम बने

हरबर्टीय पंचपदी विधि के गुण

 यह विधि मनोवैज्ञानिक सिद्धांत पर आधारित है।

 इस विधि द्वारा शिक्षण क्रमबद्ध होता है।

 इसमें शिक्षण बोधगम्य हो जाता है।

  विधि के दोष

 सभी विषयों के शिक्षण में उपयोगी नहीं है जैसे विज्ञान विषय का शिक्षण इस विधि से नहीं किया जा सकता है। 

यह विधि  संस्कृत शिक्षण की सभी विधाओं के लिए प्रभावशाली नहीं है। 

 मूल्यांकन विधि  यह हरबर्ट की पंचपदी विधि का विकसित रूप है इसमें शिक्षक शिक्षण उद्देश्यों की प्राप्ति के लिए प्रत्येक सोपान में कक्षानुरूप क्रियाकलापों का संयोजन कर मूल्यांकन करता है जिससे उसे अपने शिक्षण कार्य की सफलता के संबंध में  संदेह नहीं रहता  शिक्षण कार्य मेंसुधार की अपेक्षा रहने पर उसमें सुधार कर सकता है ।

मूल्यांकन विधि के सोपान इसमें छह सोपान है ।

उद्देश्यों का निर्धारण करना

  उद्देश्यों को व्यवहार में लिखना

 पाठ्य बिंदु 

शिक्षक कार्य 

छात्र कार्य 

मूल्यांकन

 मूल्यांकन विधि के गुण 

यह एक मनोवैज्ञानिक विधि है।

इसमें शिक्षक और छात्र दोनों सक्रिय रहते हैं  शिक्षक छात्रों को  अभिप्रेरित करता है और पुनर्बलन  का अवसर मिलता है।

 


शिक्षक को अपने शिक्षण कार्य में सुधार की दिशा का ज्ञान होता है

शिक्षण के नवीनतम उपागम या नवीनतम विधियाँ

संस्कृत भाषा के शिक्षण को और अधिक सहज, सरल और प्रभावी बनाने के लिए आधुनिक युग में नए ढंग से शिक्षण कार्य किये जा रहे है जिसका उदेश्य संस्कृत भाषा को रटने की प्रवृति को दूर कर उसके सिद्धांतों को बोधगम्य बनाना, छात्रो में चिन्तन शक्ति का विकास करना है। यह सभी नवाचार संस्कृत शिक्षण की नवीनतम उपागम के अंतर्गत आते हैं।
  
संस्कृत शिक्षण के नवीनतम उपागम इस प्रकार है
 सूक्ष्म शिक्षण उपागम 
 समस्या समाधान उपागम
 प्रयोजना कार्य
 दल शिक्षण
 पर्यवेक्षण आधारित अध्ययन
 अभिक्रमित अनुदेशन 
संप्रेषण आधारित शिक्षण
 संग्रन्थन उपागम
निदानात्मक और उपचारात्मक परीक्षण

यहयह सभी नवाचार संस्कृत शिक्षण की नवीनतम उपागम के अंतर्गत आते हैं। सभी नवाचार संस्कृत शिक्षण की नवीनतम उपागम के अंतर्गत आते हैं।

विशेष संस्कृत शिक्षण की विधियों से संबंधित पोस्ट पढ़ने के लिए संस्कृत शिक्षण की विधियाँ लेवल पर क्लिक करें

 धन्यवाद







 

बुधवार, 7 अक्टूबर 2020

Rpsc #reet exam#sanskrit teaching methods#sanskrit shikshan vidhiyan part 4

 संस्कृत शिक्षण की नवीन विधियाँ

 लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति के पश्चात से प्रारम्भ जाने वाली विधियां जो संस्कृत शिक्षण में सहायक है वे सभी संस्कृत शिक्षण की नवीन विधियों के अंतर्गत आती है ।

 संस्कृत शिक्षण की नवीन विधियाँ निम्नलिखित है

  

पाठ्यपुस्तक विधि 

 यह संस्कृत शिक्षण की लोकप्रिय विधि है

 इसमें संस्कृत का शिक्षण कक्षा के स्तर के अनुसार बनाई गई पाठ्य पुस्तक पर आधारित होता है।

इस विधि के प्रवर्तक  वेस्ट महोदय है।

 इस विधि के अंतर्गत किया जाने वाला शिक्षण का केंद्र बिंदु पाठ्य पुस्तक होती है।

  गद्य,पद्य, व्याकरण पाठ का शिक्षण पाठ्य पुस्तक के अनुसार होता है।

 पुस्तकों का मुख्य उद्देश्य यह है कि इन पुस्तकों का अध्ययन करके विद्यार्थी शिक्षक की सहायता के बिना भी स्वतंत्र रूप से संस्कृत का ज्ञान प्राप्त कर सकते है।

 छात्र शिक्षक  की अनुपस्थिति में भी अध्ययन कर सकते हैं अभ्यास कर सकते हैं जिससे छात्रों में स्वावलंबन की भावना का विकास होता है।

इसमे मातृभाषा के द्वारा नवीन शब्दो का अर्थ बतलाया जाता है।

 पाठ्यपुस्तक  विधि के गुण 

.यह विधि  संस्कृत शिक्षण की प्रक्रिया में नियमितता लाती है 

.छात्रों को शुद्ध उच्चारण के अभ्यास का अवसर मिलता है 

. मातृभाषा के द्वारा नवीन शब्दों का अर्थ बताने से छात्रों के शब्द भंडार में वद्धि होती है।

 संस्कृत विषय के प्रति अनुराग उत्पन्न करने की यह सरलतम विधि है।

पाठ्यपुस्तक विधि के दोष  यह यांत्रिक विधि है उसमें शिक्षण का केंद्र बिंदु पाठ्य पुस्तक होती है जो मानसिक  शक्तियों के विकास में सहायक नहीं है ।

छात्रों में समीक्षात्मक दृष्टिकोण का विकास नहीं हो पाता है। 

पाठयपुस्तको से प्राप्त ज्ञान केवल सैद्धांतिक होता है, व्यवहारिक नही


 प्रत्यक्ष विधि  यह विधि  निर्बाध पद्धति ,सुगम पद्धति, मातॄ विधि,प्राकृतिक विधि आदि नामों से भी जानी जाती है।

 

प्रत्यक्ष विधि का सर्वप्रथम प्रयोग अंग्रेजी शिक्षण में 1901 में फ्रांस में गुईन ने किया। जबकि संस्कृत भाषा शिक्षण में प्रत्यक्ष विधि का प्रयोग प्रो.व.पी वोकील महोदय ने अल्फ्रिनस्टोन नामक विद्यालय मुंबई में किया

प्रत्यक्ष विधि की मुख्य विशेषता यह है कि में जिस भाषा का शिक्षण कराना है उसका माध्यम भी वही भाषा होती है जैसे संस्कृत शिक्षण में प्रत्यक्ष विधि के माध्यम से संस्कृत की शिक्षा संस्कृत भाषा के माध्यम से ही दी जाती है  अन्य किसी भाषा को माध्यम नहीं बनाया जाता 

संस्कृत शिक्षण में इस विधि के माध्यम से शिक्षण कराते समय कक्षा में   संस्कृतमय वातावरण बनाया जाता है जिसे सुनकर  और बोलकर संस्कृत भाषा के प्रयोग की प्रत्यक्ष शिक्षा प्राप्त होती है छात्र और शिक्षक दोनों ही संस्कृत के माध्यम से अपने भावों को प्रकट करते हैं

प्रत्यक्ष विधि के गुण

 प्रत्यक्ष विधि संस्कृत शिक्षण की सर्वोत्तम विधि है

  छात्र और शिक्षक दोनों के मध्य संभाषण होने से वे सक्रिय रहते है। कक्षा में सजीव वातावरण का निर्माण होता है।

 इस विधि में श्रवण और वाचन कौशल के पर्याप्त अवसर प्राप्त होते है। 

छात्रों में संस्कृत माध्यम से अपने विचारों को  स्वतंत्र रूप से प्रकट करने की क्षमता का विकास होता है ।

यह विधि छात्रों में संस्कृत के प्रति अभिरुचि और अभिवृति को बढ़ाती है।

 प्रत्यक्ष विधि के दोष 

यह विधि प्रतिभाशाली छात्रों के लिए उपयुक्त है परंतु सामान्य और मंदबुद्धि वालों को के लिए उपयुक्त नहीं है 

प्राथमिक स्तर पर इस विधि से शिक्षणकार्य नहीं कराया जा सकता  है ।

प्रत्येक विद्यालय में प्रत्यक्ष विधि से पढा़या जाना संभव नहीं है क्योंकि प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव पाया जाता है।

 वर्तमान  में  संस्कृत भाषा लोक व्यवहार की भाषा नहीं होने के कारण कि इस विधि द्वारा संस्कृत शिक्षण की गति मंद रहती है।

 संस्कृत की प्रत्येक विधा को इस विधि के माध्यम से रुचिकर नहीं बनाया जा सकता जैसे पद्य पाठ पढ़ाते समय सौंदर्य अनुभूति  जैसे सूक्ष्म भावों को स्पष्ट करने में मातृभाषा अधिक सहायक है।

निष्कर्ष पाठ्यपुस्तक विधि संस्कृत शिक्षण की सबसे लोकप्रिय विधि है जबकि प्रत्यक्ष विधि संस्कृत शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि है।

विशेष  शेष नवीन शिक्षण विधियों के बारे में हम अगली पोस्ट में जानेंगे। उम्मीद करती हूं इस पोस्ट में जिन दो विधियों के बारे में बताया गया है । दोनों का अध्ययन परीक्षा की दृष्टि से बहुत आवश्यक है।

Read more   संस्कृत शिक्षण की विधियों से संबंधित पूर्व में लिखी गई पोस्ट पढ़ने के लिए नीचे दी जा रही लिंक पर क्लिक कीजिए

संस्कृत शिक्षण की प्राचीन विधियाँ -व्याकरण अनुवाद विधि याँ भण्डारक विधि

व्याकरण विधि,व्याख्या विधि,कथानायक विधि

पाठशाला विधि




रविवार, 4 अक्टूबर 2020

Rpsc#reet exam#sanskrit shikshan vidhiyansanskrit teaching methods part 3

 संस्कृत शिक्षण की प्राचीन विधियाँ

व्याकरणअनुवाद विधि/भंडारकर विधि शिक्षा 

 
1835 में लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति के साथ ही इस इस विधि का प्रारंभ हुआ.
.इस कारण पाश्चात्य शिक्षा का प्रभाव इस विधि पर दिखाई देता है।

.  संस्कृत की प्राचीन शिक्षण विधियों में से इस विधि के जनक श्री रामकृष्ण भंडारकर महोदय माने जाते हैं उन्हीं के नाम पर इस विधि का नाम भंडारकर का विधि पड़ा है ।

इस विधि के चार सोपान है--


 1सर्वप्रथम व्याकरण पाठ की उदाहरण सहित व्याख्या की जाती है नियमों का अभ्यास कराया जाता है नवीन शब्दों से अभ्यास कराया जाता है 

2संस्कॄत वाक्यों का अंग्रेजी में अनुवाद कराया जाता है।

3 पुनः वाक्यो का अंग्रजी भाषा से संस्कृत भाषा में अनुवाद कराया जाता है।

4 अनुवादो के अभ्यास हेतु शब्दकोष से नये नये शब्दो का बोध कराया जाता है।

  व्याकरण अनुवाद विधि या भंडारकर विधि के गुण

. इस विधि में व्याकरण पाठ का पर्याप्त अभ्यास कराया जाता है रटने की प्रवृत्ति के स्थान पर अभ्यास पर अधिक बल दिया जाता है जिससे यह एक मनोवैज्ञानिक विधि कही जा सकती है। 

.इसमेंं स्थूल से सूक्ष्म,ज्ञात से अज्ञात,सरल से कठिन शिक्षण सूत्रो का अनुसरण होता है।

.इसमें छात्रो मे स्वाध्याय की आदत विकसित होती है। 

.इस विधि के द्वारा एक बड़े समूह को सरलता सेेेे पढ़ाया जा सकता है। अतः इससे समय,शक्ति और धन की बचत होती है।

.भाषाओं के शब्दकोष का ज्ञान होता है।

. यह विधि सामान्य बालक के लिए भी उपयोगी है।

दोष 

. अंग्रेजी भाषा पर भी ध्यान देने से यह पाश्चात्य शिक्षा से प्रभावित है। 

.इस विधि में उच्चारण अभ्यास का अभाव, साहित्य का अभाव देखने को मिलता है।

 .यह विधि नीरस और एकांगी है  क्योंकि  इसमें केवल व्याकरण एवम्अनुवाद पर बल दिया जाता है। 

विशेष

संस्कृत भाषा शिक्षण की प्राचीन विधियों के बारे में आप सभी ने समझ लिया है ।मैं आशा करती हूँँ कि संस्कृत भाषा शिक्षण की विधियों पर लिखी जा रही posts आपके ज्ञानार्जन में सहायक होगी। 

प्रोत्साहन के लिए आप सभी का बहुत-बहुत आभार

शनिवार, 3 अक्टूबर 2020

Rpsc#reet exam#sanskrit teaching method#संस्कृत भाषा शिक्षण part 2

  संस्कृत भाषा शिक्षण की विधियां नमस्कार दोस्तों, पिछली पोस्ट में हमने जाना कि संस्कृत भाषा शिक्षण की तीन विधियाँ है- प्राचीन विधि, नवीन विधि और नवीनतम विधि 

 संस्कृत शिक्षण की प्राचीन विधियों में कुछ विधियाँ जैसे मौखिक एवं व्यक्तिगत शिक्षण विधि, पारायण विधि, वाद विवाद विधि, प्रश्नोत्तर विधि और सूत्र विधि,व्याकरण विधि,व्याख्या विधि, भाषण विधि,कक्षानायक विधि,कथा कथन विधि ये सभी सम्मिलितरूप से पाठशाला विधि कहलाती है।पिछली पोस्ट में हमने प्राचीन विधियों के अन्तर्गत आने वाली कुछ शिक्षण विधियों का अध्ययन कर लिया था।  शेष विधियों का अध्ययन इस पोस्ट में करने जा रहे है।

पिछला postपढने के लिए नीचे दी जा रही लिंक पर क्लिक कीजिए

संस्कृत भाषा शिक्षण प्राचीन विधियाँ

व्याकरण विधि  *व्याकरण *भाषा का प्राण तत्व है इसलिए किसी भाषा को पढ़ाने के लिए व्याकरण का ज्ञान दिया जाना आवश्यक है। प्राचीन समय में वेद अध्ययन के लिए व्याकरण का पठन-पाठन विशेष रूप से किया जाता था पतंजलि ने अपने महाभाष्य में लिखा है "रक्षार्थ वेदानाम् अध्येययम् व्याकरणम् " वेदो की रक्षा के लिए व्याकरण पढ़ना चाहिए। व्याकरण विधि में प्रारम्भ में कौमुदी के सूत्र, अमरकोश के श्लोक शब्द रूप, धातुरूप कण्थस्थ करवाकर उनकी व्याख्या औरउपयोग बताया जाता था।

 व्याख्या विधि  छात्रों में शंका समाधान के लिए शिक्षक इस विधि का अनुसरण करते थे ।

इस विधि के छह अंग है।

1.पदच्छेद

 2संशय

3 पदार्थोक्ति

4 वाक्ययोजना

5 आषेप

 6समाधान

 इन सभी पदो का अनुसरण करते हुए विषय की विस्तृत जानकारी दी जाती थी और भाषा पर अधिकार होता था

भाषण विधि अष्टाध्यायीमें प्रयुक्त भाषण शब्दों से भाषण विधि का आभास होता है विषय को स्पष्ट करने के लिए गुरु उदाहरणो एवं कथा आदि का सहारा लेते थे तथा लंबे-लंबे व्याख्यान व  भाषण देते थे।इससे छात्रों को किसी विषय पर स्पष्ट तथा विस्तृत जानकारी प्राप्त हो जाती थी।

 कथानायक विधि गुरु के स्वस्थ होने अथवाकिसी आवश्यक कार्य से बाहर जाने की स्थिति में मेधावी छात्र गुरुकुल के अन्य छात्रों को पढ़ाते थे या किसी विषय की पुनरावृत्ति करते थे  जिससे गुरुकुल में अध्ययन मैं किसी प्रकार की बाधा नहीं आती थी साथ ही मेधावी छात्र को  का ज्ञान भी परिपुष्ट होता था। मेधावी छात्रों को भावी शिक्षण प्रशिक्षण मिल जाता था।

  कथाकथन विधि विषय को रुचिकर बनाने के लिए तथा अधिक स्पष्ट करने के लिए उपनिषदों, हितोपदेश तथापंचतंत्र की कथाएं बीच-बीच में छात्रों को सुनाई जाती थी जिससे छात्रों का ज्ञान स्थाई हो जाता था  साथ ही विषय में विस्तृत ज्ञान प्राप्त होता। उपनिषदों, हितोपदेश पंचतंत्र आदि से उदाहरण प्रस्तुत करने पर छात्रों में इनके प्रति भी रुचि जागृत होती। 

 पाठशाला विधि के गुण
(अ )गुरुकुल और आश्रमों में रहने के कारण गुरु और शिष्य में मधुर संबंध स्थापित होते थे
 ( ))छात्रों में अनुशासन की भावना का विकास होता था
 ( )स्मरण शक्ति पर अत्यधिक बल  

पाठशाला विधि के दोष
 (अ)शिक्षण अध्यापक केंद्रित होने के कारण शिक्षण नीरस होता था
 (ब)यह विधि सामान्य, मंदबुद्धि छात्रों के लिए उपयोगी नहीं है
(स) छात्रों में सर्वांगीण विकास के लिए उपयुक्त नही
(द) रटने की प्रवृत्ति पर अधिक बल देने केकारण वर्तमान में सराहनीय नहीं रही। 
(य)व्याकरण के प्रयोग की समझ विकसित होने के स्थान पर रटने पर अधिक बल  

विशेष
संस्कृत शिक्षण की प्राचीन विधि में से हमने पाठशाला विधि की सभी विधियो के बारे मे जाना अब दूसरी विधि भंडारकर विधि/व्याकरण अनुवाद विधि का अध्ययन अगली पोस्ट में करेंगे

धन्यवाद








गुरुवार, 1 अक्टूबर 2020

Rpsc#reet exam#sanskrit teaching methods#संस्कृत भाषा क शिक्षण विधियाँ part1

Rpsc#reet exam#sanskrit teaching methods#संस्कृत भाषा शिक्षण की विधियाँ 

भूमिका -संस्कृत भाषा शिक्षण की कितनी विधियाँ है?कौनसी विधि किस पर अधिक बल देती है?उनके गुण दोष कौनसे है? इन सभी से संबंधित संबंधित महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर संस्कृत भाषा शिक्षण मे पूछे जाते है,इसलिए परीक्षा की दृष्टि से महत्वपूर्ण तो है ही ,इनका ज्ञान होने से संस्कृत भाषा शिक्षण को सहज और रुचिकर बनाया जा सकता है। 

संस्कत शिक्षण की विधियाँ-तीन भागो में बाँटा ज सकता है।

1प्राचीन विधियाँ
2 नवीन विधियाँ
3.नवीनतम विधियाँ

1प्राचीन विधि ○ वैदिक काल में प्रयोग लाई जाने वाली तथा पाश्चात्य शिक्षा पद्धति से पूर्व संस्कृत शिक्षा के लिए प्रयुक्त की जाने वाली विधियों को प्राचीन विधि के अंतर्गत रखा जाता है।  जिसका अध्ययन हम संक्षेप में कर रहे हैं ।


पाठशाला विधि जैसा कि नाम से विदित है यह पद्धति पाठशाला ,गुरुकुल ,आश्रमो,मठो तथा विद्यापीठो में संस्कृत शिक्षा के अध्ययन हेतु प्रयोग में ली जाती रही ।इसे पंडित प्रणाली या परंपरागत प्रणाली या विधि के नाम से जानते हैं । ○1835 तक यूरोपीय विद्वानों में इसी विधि से संस्कृत अध्ययन आरंभ किया लेकिन लॉर्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति के आने के पश्चात यह संस्कृत की प्राचीन पद्धति उपेक्षित हो गई ।इस पद्धति में शिक्षा का आरंभ उपनयन संस्कार के साथ होता था ।गुरु छात्रों को गायत्री मंत्र का उपदेश देता था इस मंत्र की दीक्षा के बाद ही उसकी शिक्षा आरंभ होती थी वह प्रतिदिन गुरू के सामने ब्रह्माञ्जलि बांधकर विद्या अध्ययन करता था अध्ययन के आरंभ में तथा अंत में वह गुरु को साष्टांग प्रणाम कर अपने दाहिने हाथ से उनके दाएं पैर के अंगूठे तथा अपने बाएं हाथ से गुरू के बाएं पैर के अंगूठे को स्पर्श करता था ओंकार के उच्चारण के पश्चात प्रतिदिन विद्या अध्ययन प्रारंभ करता क्योंकि यह मान्यता प्रचलित थी कि यदि वेद आरंभ
 और उसके अंत में ओंकार शब्द का उच्चारण नहीं किया जाता है तो उसकी विद्या धीरे-धीरे नष्ट होने लगती है ।
पाठशाला विधि में निम्नलिखित विधियों को समाहित किया गया है।
मौखिक एवं व्यक्तिगत शिक्षण विधि इस विधि में मौखिक रूप से कंठस्थीकरण पर ध्यान दिया जाता था गुरु वेद मंत्रों का उच्चारण करता था उसके पश्चात सभी शिष्य उनका अनुकरण करते थे उच्चारण संबंधी दोष होने पर गुरु उन्हें व्यक्तिगत रूप से छात्र को बताते थे । प्रतिदिन नवीन पाठ करने से पूर्व गत पाठ का मूल्यांकन किया जाता था। 
  लाभ- 1इस विधि से उच्चारण शुद्धध होता था
2 भाषा पर अधिकार होता था।
 
  पारायण विधि   बिना अर्थ समझे हुए वैदिक मंत्रों के सस्वर उच्चारण को पारायण कहते थे ○पारायण करने वाले छात्रों को पारायणिक कहा जाता था ।अच्छी स्मृति वाले छात्र जो बिना प्रयत्न के वैदिक पाठो को कंठस्थ कर लेते थे अकृच्छ कहलाते थे ।उच्चारण में अशुद्धि करने के आधार पर छात्रों को नाम दिया जाता था एक अशुद्धि करने वाले छात्रों को ऐकान्यिक, दो अशुद्धियाँ करने वाले छात्रो को द्वययनिक, तीन अशुद्धियाँ करने वाले को त्रयनयिक कहलाते थे। 
 पाठ के अनुसार पारायण संख्या निर्धारित होती है।
 पञ्चक अध्ययनम्= पाठ को 5 बार पढ़ना।
 पञ्चरूपम्=पाँच प्रकार से पढ़ना ।
पञ्च वारम् =शब्दोको पाँच बार कहना।
  पारायण विधि का लाभ= लाभ इस विधि में ज्ञान को स्मृति में संचित करने पर बल दिया जाता है प्राचीन काल में जहां वैदिक संस्कृति की महत्ता अधिक थी वहाँ यज्ञादि में वेद मंत्रो के कंठस्थीकरण में यह विधि सहायक थी। 
  
वाद विवाद विधि किसी विषय पर भाषण देना, उसकी व्याख्या करना उससे संबंधित सकारात्मक और नकारात्मक पहलू पर ध्यान आकर्षित करना वाद विवाद विधि के अंतर्गत आता है। शास्त्रार्थ एवं संवादइसी वाद विवाद का उदाहरण है दार्शनिक ग्रंथों  जैसेे न्याय शास्त्र सांख्य शास्त्र आदि के अध्ययन में इस विधि का का प्रयोग देखने को मिलता है  गार्गी संवाद भी उसी का उदाहरण है  इसके माध्यम से छात्रो मे अपनी बात को किस प्रकार सामने रखना है यह सिखाया जाता था
प्रश्नोत्तरविधि प्राचीन काल मे शिक्षक  इस विधि का प्रयोग पढाये हुए बिषय पर छात्रो के अर्जित ज्ञान, स्मृति को जानने के लिए करते थे।  गुरु संपूर्ण व्याख्यान के बीच में प्रश्न पूछा करते थे जिससे छात्रों में सक्रियता बनी रहती। गुरु शिष्य से संकेतों के आधार पर भी सही उत्तर निकलवाने का भी प्रयत्न करते थे जिससे छात्रों में स्व चिंतन ,निरीक्षण शक्ति एवं आत्मप्रेरणा का विकास होता था।
सूत्र विधि व्याकरण और दर्शन के गहनविषयों का शिक्षण सूत्र विधि से कराया जाता था व्याकरण में पहले सूत्र विधि से सूत्रो को रटाया जाता था उसके  पश्चात सूत्रों की व्याख्या के लिए भाष्य विधि तथा टीका विधि का अनुसरण किया जाता है पहले जहां  मौखिक स्मरण  को अधिक महत्त्व दिया जाता था लेकिन अब बालकों में रटने की प्रवृति के बजाय व्याकरण को समझने और उसके दैनिक जीवन में प्रयोग परअधिक बल दिया जाता है इसी कारण वर्तमान में यह सूत्र विधि अधिक प्रभावी नहीं है। 

निष्कर्ष दोस्तों आज हमने इस पोस्ट में संस्कृत शिक्षण की प्राचीन विधियों में से कुछ विधियों का अध्ययन किया है यह सभी विधियां मौखिक अभिव्यक्ति और स्मरण शक्ति पर अधिक बल देती है प्राचीन समय में जो बालक जितना अधिक विषय को मौखिक रूप से याद रखता था वह उतना ही प्रतिभाशाली माना जाता था। लेकिन वर्तमान में ये उतनी प्रासंगिक नही रही

शेष विधियो को अगली पोस्ट मेंजानेंगे

 धन्यवाद

गुरुवार, 25 जून 2020

कविता -बारिश कीबूँदे या अनमोल मोतियो का हार

 


ये आसमां आज इतना उदार लग रहा है इससे बरसती अनगिनत बूँदे
बूँदे नही ,अनमोल मोतियो का हार लग रहा है
यह असीम आसमां आज इन अनमोल मोतियो को
 क्यो डुलका रहा है।
लगता है किसी खुशी मे इन मोतियो को लुटा रहा है।
कही ये मोती पेडो के पत्तो पर है,कही किसी की पलको
पर कही किसी की मुट्ठी मे है, कही किसी के अलको पर
सच मे ये मोती मानो सभी को धनवान कर रहे है
क्यूँकि दिल का पूरा हर अरमान कर रहे है।
आज आसमां से बरस रहे इन मोतियो ने 
इस धरा का दुलहन सा श्रॄंगार किया है।
जैसे मन ही मन कोई बडा आभार किया है।
मस्तक पर  चिन्ता की लकीरे जो गहरी हो रही थी
 वो देखो सिमटसी गई है ।
वर्तमान हालातो से बेरंग हुई आज जिन्दगी 
इन्द्रधनुष सी बन गई है।

धन्यवाद
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शुक्रवार, 12 जून 2020

Lockdown#कविता का शीर्षक:"वर्तमान परिस्थितियों में मजदूरो की व्यथा

कविता का शीर्षक:"वर्तमान परिस्थितियों में
 मजदूरो की व्यथा


अरे, मेरे मजदूर भाईयो की व्यथा आज बढ़ गई है।
 कोरोना की भयावहता उनके ही घर कर गई है।
जिनके हाथों में काम करते करते पड़ जाते थे छाले ।
आज  उन हाथों में न छाले रहे न ही काम रहा ।।
छालों ने भी कभी नहीं दिया इतना दर्द जितना
 आज बिन छालो के पा रहे हैं ।
 देखो, आज उनकी आंखों में बिन छालों के भी 
असहनीय दर्द के आंसू आ रहे हैं।
 आज वह रोटी के लिए दूसरों के मुंह ताक रहे हैं 
और बिन खाये पीये ही दिन काट रहे है।।
सोते जागते वर्तमान की चिन्ता सता रही है।
देखो, एक श्रमदाता की गर्भवती पत्नी प्रसव पीडा़ से
 कराह रही है ।
हम तुम जैसै लोग आने वाले बच्चे के भविष्य के
 सपनो से सने है।
 जबकि उस धरती पुत्र का यही सपना है 
कि उसका आने वाला लाल काल का ग्रास न बने ।।
दूसरो के रहने के लिए ठिकाना बनाते है
 पर आज अपना ठिकाना ढूंढ रहे है।
जो आए थे गांव से शहरों की और बेहतर
 जिंदगी का सपना सजाने के लिए।
  वह लौट रहे हैं आज शहरों से गांव की ओर
 अपनी जिंदगी  बचाने के लिए
  अपने परिजनों के संग हाथों में अपने बचे कुचे सामान का बीड़ा लिए और दिल में समुद्र सी अथाह पीड़ा लिए।।         
कुछ तो अपने घर पहुंच गए ,कुछ ने रास्ते में ही दम तोड़ दिया।
देखकर उनकी कुर्बानी मेरे अंतर्मन ने मुझे झकझोर दिया।।

हे ईश्वर ,मेरे भारत के कर्मवीर सपूतों पर दया का हमेशा हाथरखना
 जब छूटने लगे साथ सभी का, फिर भी अपने साथ रखना।  उनकी दो वक्त की रोटी कभी ना छिने यह ध्यान रखना।
 जोड़ने पड़े न कभी हाथ अमीरों की दहलीजो पर उन्हे
उनके अमूल्य आत्मसम्मान का मान रखना।

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धन्यवाद
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मंगलवार, 9 जून 2020

संस्कृत में कारक प्रकरण #संस्कृत व्याकरण के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर#karak in sanskrit

 संस्कृत में कारक प्रकरण
 #संस्कृत व्याकरण के महत्वपूर्ण प्रश्न उत्तर
#karak in sanskrit

मोक्षाय हरिं भजति
○मुक्तये हरिं भजति
○काव्यं यशसे भवति
 उपरोक्त वाक्यों में कौन सी विभक्ति है?
चतुर्थी विभक्ति
○अगर किसी उद्देश्य, प्रयोजन से कोई कार्य किया जाता है 
तो उसमें चतुर्थी विभक्ति होती है
 "तादर्थ्ये चतुर्थी वाच्या" सूत्र के अनुसार

 भक्ति ज्ञानाय कल्पते, सम्पद्यते वा
  इस वाक्य में चतुर्थी  विभक्ति किस सूत्र से है?
  क्लृपि सम्पद्यमाने च सूत्रानुसार
 समर्थ अर्थ वाली धातुओं के प्रयोग  में चतुर्थी विभक्ति होती है।

 वाताय कपिला विद्युत्।( पीली बिजली 
आंधी की सूचक है।)
तापाय अतिलोहिनी। (लाल बिजली अत्यंत धूप
 कीसूचक है)
 इन वाक्यों में चतुर्थी विभक्ति किस सूत्र से हुई है?
 उत्पातेन ज्ञापिते वा सूत्रानुसार शुभ अशुभ को बताने में, 
पृथ्वी आदि के उत्पादों को सूचित करने में
 चतुर्थी विभक्ति होती है।

दैत्येभ्यो हरि अलम्। इस वाक्य  में चतुर्थी विभक्ति
 किस शब्द के कारण हुई है?
अलम्
 यहां अलम् शब्द का अर्थ निषेध न होकर पर्याप्त है क्योंकि निषेध अर्थ में अलम् का प्रयोग होने पर
 चतुर्थी के स्थान पर तृतीया विभक्ति आएगी

 सज्जना: दुष्टेभ्य: क्रुध्यति
हरये असूयति ईर्ष्यति वा 
उपर्युक्त वाक्यो में  किसकी सम्प्रदान संज्ञा हुई है?
 सज्जन और हरि की 
जिसकी सम्प्रदान संज्ञा होती है उसमे चतुर्थी वि. लगती है।

सः.........अभिक्रुध्यति(हरि:)
सः.............क्रुध्यति(हरि)
रिक्त वाक्यो की पूर्ति कीजिए
सः हरिम् अभिक्रुध्यति (क्रुधद्रुहोरूपसृष्टयोः कर्म सूत्र से)
सः हरये क्रुध्यति( क्रुधद्रुहेर्ष्यासूयार्थानां यं प्रति कोपः)

ध्यान रखने योग्य बात यह है कि क्रुध,द्रुह,ईष्य,असूय आदि धातुओ में  उपसर्ग लगने पर चतुर्थी विभक्ति के स्थान पर द्वितीय विभक्ति आएगी 

गोपी स्मरात् कृष्णाय हनुते, शलाघते, तिष्ठते, शपते 
इस वाक्य मे चतुर्थी वि.किस सूत्र से है?
श्लाघहनुड्.स्थाशपां ज्ञीप्समान सूत्र से

विप्राय गां प्रतिश्रॄणोति, आश्रॄणोति प्रति या आ उपसर्गपूर्वक 
श्रु  धातु के योग में जिससे प्रतिज्ञा की जाती है
 उसमें संप्रदान कारक  किस सूत्र से होता है?

प्रत्याड्. भ्यां श्रुवः पूर्वस्य कर्ता सूत्र से

 दोस्तों से पूर्व में भी संस्कृत कारक प्रकरण  से संबंधित पोस्टस लिखी जा चुकी है अधिक जानकारी और अभ्यास हेतु आप नीचे दी जा रही लिंक पर क्लिक कर उन्हें पढ़ सकते हैं 


सोमवार, 8 जून 2020

संस्कृत में कारक प्रकरण# संस्कृत व्याकरण के महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

संस्कृत में कारक प्रकरण# संस्कृत व्याकरण के महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर

/> ○भुव प्रभव:इस सूत्र से कौनसी विभक्ति होती है?
पंचमी विभक्ति

○"प्रकृत्यादिभ्य उपसंख्यानम्" इस वार्तिक से कौनसी विभक्तिका विधानहै?
तृतीया विभक्ति

○वारणार्थानामीप्सित: सूत्र से किस विभक्ति का विधान है
पंचमी विभक्ति

○ माता गुरुतरा .........(भूमि) रिक्त स्थान मे सही विभक्ति है?
भूमेः ,पंचमी वि.

○..............सुरेश: श्रेष्ठतर:(रमेश) रिक्त स्थान मे सही विभक्ति है?
रमेशात् ,पंचमी वि.
कारण---तरप्, ईयसुन प्रत्ययान्त  शब्दो से दो वस्तुओ व्यक्तियो की तुलना होती है। जिससे श्रेष्ठता बताई जाती है उसमें पंचमी विभक्ति लगती इसलिए रमेश में पंचमी विभक्ति लगी है

समुद्रातपुरी क्रोशे क्रोशम् अस्ति
○वनात् ग्रामो योजनं योजने वा अस्ति
○ इन दोनो विभक्तियो मे मार्गवाची,और दूरी वाले शब्दो में प्रथमा और सप्तमी वि.किस सूत्र से हुई है?
तद्युक्ताध्वनः प्रथमासप्तम्यौ सूत्र से

○ वृक्षात् पत्राणि प्रभवन्ति (वृक्षो से पत्ते निकलते है) यहाँ पंचमी वि. किस सूत्र से है?
भुव प्रभवः सूत्र से

शिक्षकात् व्याकरणं पठति  यहाँ शिक्षक कीअपादान संज्ञा किस सूत्रसे हुई है?
आख्यातोपयोगे सूत्रसे

○......निर्लीयते कृष्ण: (मातृ: )? रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए
मातुः

○भीत्रार्थानां भयहेतुः सूत्र से किस संज्ञा का विधान है?
अपादान संज्ञा का

मूषक: मार्जारात् विभेति
○आरक्षकाः चौरात् त्रायन्ते
○ दोनों विभक्तिओं में अपादान संञा होकर पंचमी किस सूत्र से हुई है?
भीत्रार्थानां भयहेतुः

○   जुगुप्सा, विराम ,प्रमादअर्थ वाली धातुओ से वाक्य में कौन सी विभक्ति होती है?
पंचमी विभक्ति

○कृष्णात् भिन्न इतरो वा,वनात् आरात्,  चैत्रात् पूर्वः फाल्गुन , ग्रामात् दक्षिणा, दक्षिणाहि ग्रामात्   इन सभी वायो में पंचमी विभक्ति विधायक सूत्र कौन सा है?
अन्यारादितरर्ते दिक्शब्दाचूत्तरपदाजाहियुक्ते सूत्र से  पंचमी विभक्ति है।

○"तिलेभ्य: प्रतियच्छति माषान् "वाक्य मे पंचमी विभक्ति किस सूत्र से है?

○"प्रतिनिधिप्रतिदाने च यस्मात्" सूत्र से प्रतिनिधि और प्रतिदान अर्थ में प्रति कर्मप्रवचनीय संज्ञक है अतः प्रति के योग में पंचमी विभक्ति होती है

कारक प्रकरण पर पूर्व मे भी जानकरी दी जा चुकी है इससे संबंधित अन्य अभ्यास हेतु  नीचे दी जा रही लिंक पर क्लिक करें

संस्कृत में कारक प्रकरण #karak in sanskrit#sanskrit grammar
संस्कृत में कारक प्रकरणkarak in sanskrit#sanskrit grammar
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शुक्रवार, 15 मई 2020

#poem on conditions in lockdown#मजदूरो की स्थिति


  कविता- लाँकडाउन और मजदूर जन

देखो, मेरे देश की इक तस्वीर जरा..
एक तरफ कोरोना की बडी जंग तो...
दूसरी तरफ मजदूर भाईयो की बेबसी ,बदहाली है।
जो गए थे शहरो की तरफ पैसा कमाने।
आज उनके पैरो मे पड़ गए छाले
 लेकिन हाथो मे न कमाई है।।

बनाते है जो बडी बडी महलो सी इमारते 
दूसरो के रहने को.. 
वो किराये के घर में रहने की भीजद्दोजहद कर रहे है
 ऐसी किस्मत क्यो उन्होने लिखाई है।।   

कविता- लाँकडाउन और मजदूर जन

चल पडे है अपने  गाँवो की और अपने पैरो के भरोसे
न ज्यादा शिकवा शिकायत किसी से
 लडते अपने आप आत्मसम्मान की अथक लडा़ई है।।

नही फिक्र अपने पथ के शूलो से, 
शूलो को भी फूल समझ कर चल पडे है।
इनके भीतर छिपे हिम्मत के जज्बे ने 
सच्चे कर्मवीर की परिभाषा हमे समझाई  है।।




विशेष  इस छोटी सी अपनी रचना के माध्यम से  हिन्दुस्तान के सभी कर्मवीर मजदूरो को,उनके हौसलो को सलाम करती हूँ आप ही हमारे हिन्दुस्तान की मजबूत नींव है।

रविवार, 19 अप्रैल 2020

Aaj ki quotes#प्रकृति की सता#poem on lockdown

प्रकृति की सता#poem on lockdown

इस महामारी ने अहम से आसमान मे
 उडने वालो को भी जमीन पर ला दिया।
जो भूल गये थे घर का रास्ता 
उसे घर का आंगन याद दिला दिया
जो आज तक नियम कानूनो को
 अपने हाथ की कटपुतली समझते रहे।
आज कुदरत की मार ने उन्हे जंजीरो मे लिपटा दिया।
 प्रकृति पर अत्याचार कर प्रभुत्व समझने वाले 
दानवो को नही पता कि खुद उसका अस्तित्व कितना है।
प्रकृति से अपने को ऊँचा समझा...
 तो बेशक उसका अस्तित्व मिटना है।

सोमवार, 6 अप्रैल 2020

लाँकडाउन:सकारात्मक पक्ष#lockdown

लाँकडाउन:सकारात्मक पक्ष


स्कूलो की छुट्टियाँ चल रही हैबच्चे अपने दादी या नानी के यहाँ है।कई सालो के बाद इतनी छुट्टियाँ मिली है।अपने हम उम्र ताऊजी,चाचाजी के बच्चो के साथ खेल रहे है।बहुत दिनो के बाद उनके साथ लड़ने झगड़ने का मौका मिला है।मै यह नही कह रही कि जो समय चल रहा है बहुत अच्छा है। मै जानती हूँ आप सब जानते है कि सम्पूर्ण विश्व में विपरीत परिस्थितियाँ बनी हुई है।लेकिन इस समय को मिलकर बेहतर बनाया जा सकता है। तनाव के वातावरण की बजाय खुशहाली फैलायी जा सकती है।  घर पर रहने का समय मिला है तो उदास होकर समय निकालने की वजह समय को मूल्यवान बनाने की सोचे। केवल आप ही नहीं है, जो इस समय घर पर रह रहे हो। व्यस्त से व्यस्त व्यक्ति भी आज अपने परिवार के साथ अपने घर पर हैं लेकिन लोगों की नजरिये का फर्क है कि कुछ लोग तो इस समय को यादगार बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं तो कुछ लोग सोच सोच कर ही बीमार हो रहे है कि है यह समय कब निकलेगा। यह समय दुनिया में बहुत बड़ा परिवर्तन लाने वाला है सकारात्मक परिवर्तन ।बहुत से लोग जो अपने घर को प्रतिदिन ढंग से देख भी नहीं पाते उन्हें अपने घर के कोने कोने का मालूम चल रहा है।वे अब तक अनजान बने बैठे थे कि घर में सभी कुछ अच्छा है किसी आवश्यक सुविधा का अभाव नही है।   लॉक डाउन का समय पूरा होगा तो अपने घर को पहले से बेहतर करने की कोशिश करेंगे। आज तक तो उन्होंने घर की महिलाओं की बातों पर शायद ध्यान नहीं दिया होगा कि उन्हें कितनी तकलीफ होती है सुविधाओं के अभाव में। जिस व्यक्ति नेआज तक किचन में चाय तक नहीं बनाई थी बस जब चाय पीने की इच्छा हुई अपनी पत्नी को आवाज लगा दी  चाहे वह किसी जरूरी काम में ही क्यो न लगी हुई हो। आज वह घर का खाना बनाने में अपनी पत्नी की मदद कर रहे है। अब जान पाएंगे कि एक महिला इतने लोगों की फरमाइशो को सालो से कैसे पूरा करती होगी और अभी तक कर रही है।  वो भी बिना किसी स्वार्थ के।अब तक उसकी थकान को कोई क्यू नही देख पाये जब कि एक महिला अपने घर के पुरुषो के काम से लौटते ही पानी का गिलास भी हाथ मे देती है,जल्दी से चाय बनाती है और पूछती है कि किसी तरह की परेशानी तो नही हुई आने जाने में ।आज का दिन कैसा रहा जब कि पुरुषो ने इतने सालो में कितने दिन पूछा होगा ? जरा सोच कर बताइए🤔🤔🤔। अब उम्मीद करते है कि बैठे बैठे अपनी पत्नी को आर्डर देना शायद बंद हो जाए और अपने छोटे-छोटे कामों को स्वयं करने की आदत का विकास हो। एक बडा परिवर्तन बच्चो के प्रति नजरिये को लेकर भी आने वाला है।  जो माता पिता बच्चों को नासमझ समझते हैं उन्हें बच्चों की समझदारी का एहसास होगा उन्हें भी पता चलेगा कि बच्चों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है  बच्चों की कीमत  उनकी उनकी क्लास में प्राप्त मार्क्स के आधार पर आंकना गलत है। वर्किंग पेरेन्ट्स को अपने बच्चो की योग्यताओं का, रुचियो़, उनकी उनकी आवश्यकताओं का पता चल पाएगा और जिससे भविष्य में वह अपने बच्चे की तुलना किसी और बच्चे से नहीं करेंगे और ना ही उनके क्लास में प्राप्त मार्क्स के आधार पर उनके भविष्य का निर्धारण करेंगे । माता पिता के साथ इस समय बिताए गए अच्छे पलो के परिणामस्वरूप  बच्चे अपने माता-पिता के और करीब आएंगे उनकी झिझक कम होगी जिससे भविष्य में किसी प्रकार की परेशानी या तनाव होने पर वे वे बेझिझक अपनी बात उनसे कह पाएंगे । हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिनों में स्टूडेंट्स की सुसाइड केसेज में कमी होगी। यह भी हमारे लिए किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं होगा।

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सारांश  यह थी 21 दिनों के लाँकडाउन के कुछ सकारात्मक पहलू शायद इन सभी से आप भी सहमत होंगे। अब हम सबको हर हर पल को डर-डर बिताने की बजाय अपने लिए ,अपने परिवार, अपने समाज ,देश और संपूर्ण विश्व के लिए बेहतर बनाने की सोच रखनी चाहिए ।


मिलकर जीत ही लेंगे हम यह जंग
 कोरोना को नहीं डालने देंगे अपने रंग में भंग ।
इतनी हिम्मत नहीं की है हमसे जीत पाएगा वो
 क्योंकि अपनों की सच्ची  दुआएं हैं हमारे संग।।

बुधवार, 1 अप्रैल 2020

लाँकडाउन:सकारात्मक पक्ष


स्कूलो की छुट्टियाँ चल रही हैबच्चे अपने दादी या नानी के यहाँ है।कई सालो के बाद इतनी छुट्टियाँ मिली है।अपने हम उम्र ताऊजी,चाचाजी के बच्चो के साथ खेल रहे है।बहुत दिनो के बाद उनके साथ लड़ने झगड़ने का मौका मिला है।मै यह नही कह रही कि जो समय चल रहा है बहुत अच्छा है। मै जानती हूँ आप सब जानते है कि सम्पूर्ण विश्व में विपरीत परिस्थितियाँ बनी हुई है।लेकिन इस समय को मिलकर बेहतर बनाया जा सकता है। तनाव के वातावरण की बजाय खुशहाली फैलायी जा सकती है।  घर पर रहने का समय मिला है तो उदास होकर समय निकालने की वजह समय को मूल्यवान बनाने की सोचे। केवल आप ही नहीं है, जो इस समय घर पर रह रहे हो। व्यस्त से व्यस्त व्यक्ति भी आज अपने परिवार के साथ अपने घर पर हैं लेकिन लोगों की नजरिये का फर्क है कि कुछ लोग तो इस समय को यादगार बनाने की कोशिश में लगे हुए हैं तो कुछ लोग सोच सोच कर ही बीमार हो रहे है कि है यह समय कब निकलेगा। यह समय दुनिया में बहुत बड़ा परिवर्तन लाने वाला है सकारात्मक परिवर्तन ।बहुत से लोग जो अपने घर को प्रतिदिन ढंग से देख भी नहीं पाते उन्हें अपने घर के कोने कोने का मालूम चल रहा है।वे अब तक अनजान बने बैठे थे कि घर में सभी कुछ अच्छा है किसी आवश्यक सुविधा का अभाव नही है।   लॉक डाउन का समय पूरा होगा तो अपने घर को पहले से बेहतर करने की कोशिश करेंगे। आज तक तो उन्होंने घर की महिलाओं की बातों पर शायद ध्यान नहीं दिया होगा कि उन्हें कितनी तकलीफ होती है सुविधाओं के अभाव में। जिस व्यक्ति नेआज तक किचन में चाय तक नहीं बनाई थी बस जब चाय पीने की इच्छा हुई अपनी पत्नी को आवाज लगा दी  चाहे वह किसी जरूरी काम में ही क्यो न लगी हुई हो। आज वह घर का खाना बनाने में अपनी पत्नी की मदद कर रहे है। अब जान पाएंगे कि एक महिला इतने लोगों की फरमाइशो को सालो से कैसे पूरा करती होगी और अभी तक कर रही है।  वो भी बिना किसी स्वार्थ के।अब तक उसकी थकान को कोई क्यू नही देख पाये जब कि एक महिला अपने घर के पुरुषो के काम से लौटते ही पानी का गिलास भी हाथ मे देती है,जल्दी से चाय बनाती है और पूछती है कि किसी तरह की परेशानी तो नही हुई आने जाने में ।आज का दिन कैसा रहा जब कि पुरुषो ने इतने सालो में कितने दिन पूछा होगा ? जरा सोच कर बताइए🤔🤔🤔। अब उम्मीद करते है कि बैठे बैठे अपनी पत्नी को आर्डर देना शायद बंद हो जाए और अपने छोटे-छोटे कामों को स्वयं करने की आदत का विकास हो। एक बडा परिवर्तन बच्चो के प्रति नजरिये को लेकर भी आने वाला है।  जो माता पिता बच्चों को नासमझ समझते हैं उन्हें बच्चों की समझदारी का एहसास होगा उन्हें भी पता चलेगा कि बच्चों से बहुत कुछ सीखा जा सकता है  बच्चों की कीमत  उनकी उनकी क्लास में प्राप्त मार्क्स के आधार पर आंकना गलत है। वर्किंग पेरेन्ट्स को अपने बच्चो की योग्यताओं का, रुचियो़, उनकी उनकी आवश्यकताओं का पता चल पाएगा और जिससे भविष्य में वह अपने बच्चे की तुलना किसी और बच्चे से नहीं करेंगे और ना ही उनके क्लास में प्राप्त मार्क्स के आधार पर उनके भविष्य का निर्धारण करेंगे । माता पिता के साथ इस समय बिताए गए अच्छे पलो के परिणामस्वरूप  बच्चे अपने माता-पिता के और करीब आएंगे उनकी झिझक कम होगी जिससे भविष्य में किसी प्रकार की परेशानी या तनाव होने पर वे वे बेझिझक अपनी बात उनसे कह पाएंगे । हम उम्मीद करते हैं कि आने वाले दिनों में स्टूडेंट्स की सुसाइड केसेज में कमी होगी। यह भी हमारे लिए किसी बड़ी उपलब्धि से कम नहीं होगा।
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सारांश  यह थी 21 दिनों के लाँकडाउन के कुछ सकारात्मक पहलू शायद इन सभी से आप भी सहमत होंगे। अब हम सबको हर हर पल को डर-डर बिताने की बजाय अपने लिए ,अपने परिवार, अपने समाज ,देश और संपूर्ण विश्व के लिए बेहतर बनाने की सोच रखनी चाहिए ।


मिलकर जीत ही लेंगे हम यह जंग
 कोरोना को नहीं डालने देंगे अपने रंग में भंग ।
इतनी हिम्मत नहीं की है हमसे जीत पाएगा वो
 क्योंकि अपनों की सच्ची  दुआएं हैं हमारे संग।।

रविवार, 29 मार्च 2020

कोरोना रूपी राक्षस से रण #कोरोना पर कविता #corona#lockdown

कविता का शीर्षक-"नही छोडेंगे इस रणको बीच मेंअधूरा
 
नहीं छोड़ेंगे इस रण को बीच मे अधूरा
 सब मिलकर जीत लेंगे इसे पूरा।
 यहाँ न किसी धर्म,जाति,संप्रदाय,
 अमीर,गरीबी का कवच काम नहीं आएगा
 यह रण तो हमारी एकता की मिसाल बन जाएगा ।
नहीं छोड़ेंगे इस रण को बीच में अधूरा 
सब मिलकर जीत लेंगे इसे पूरा। 
 यहां काम नहीं आएगी कोई राजनीतिक घृणा
 यह रण तो राजनीति के दलदल से दूर ले जाएगा।
नहीं छोड़ेंगे इस रण को बीच में अधूरा
 सब मिलकर जीत लेंगे इसे पूरा । 
 यहां काम नहीं आएगी आरोप-प्रत्यारोपो की झड़ी 
 यह रण तो भाईचारे और परोपकार से जीता जाएगा।
 नहीं छोड़ेंगे इस रण को बीच में अधूरा 
 सब मिलकर जीत लेंगे इसे पूरा 
 न हीं चलेगी यहां तलवारे,न ही धनुष बाण चलेंगे 
 न ही गिरने देंगे लहू की एक बूंद इस धरा पर
 यह रण तो इंसानियत की कसौटी पर लड़ा जाएगा। 
नहीं छोड़ेंगे इस रण को बीच में अधूरा 
 सब मिलकर जीत लेंगे इसे पूरा ।
 न हीं कर पाएगा अपनों को अपनों से दूर 
यह रण तो अपनेपन की पहचान कराएगा। 
 माना इतिहास में हुए थे रण अनेकों 
लेकिन यह रण सबसे अलग है देखो । 
यहाँ मानवता की जीत है, 
एक दूसरे से सच्ची प्रीत है
 भारतीयता की सुरीत है, 
जहां गा रहा हर कोई जागृति का गीत है।

 उम्मीद करती हूँ कोरोना रूपी राक्षस पर विजय की 
यह कविता आपको पसंद आएगी
 हमे पूर्ण विश्वास है हम इस भयावह परिस्थिति से जल्दी ही बाहर निकलेंगे 
बस तक हमे धैर्य के साथ २१दिन के 
लाँकडाउन के व्रत को पूरा करना है 
बहुत जल्द परिस्थितियाँ हमारे अनुकूल होंगी।
 माँ हमारे सारे कष्टो का पूर्णत दमन करेंगी।

शनिवार, 28 मार्च 2020

सुविचार#शब्दो की ताकत#golden lines in hindi#motivation

दोस्तों में कोई दार्शनिक नहीं हूँ न ही कोई कवि और न ही महान लेखक हूं बस अपने दिल में उठ रही भावनाओं को कलम के माध्यम से कागज पर कभी कभार उतार देती हूं मुझे अपने अनुभवों को साझा करने में संतुष्टि का अहसास होता है यही मेरे लिए बहुत है।


१.अगर भावो की गहराई समझ मे आ रही हो तो शब्दो कोष का गहरा होना  आवश्यक नही

२.आपका एक एक अक्षर दिव्य हो जाता है यदि वह किसी के अंदर छाए तिमिर की परतो को खोलकर उसके सच्चे स्वभाव को सामने लाने में मदद करता है। 

३आपके शब्दों को किसी के लिए वेदना नही, प्रेरणा बनाइए 

४आपकी शब्दों में छुपे हुए भावनाओं की की कीमत ही है कि किसी के शब्द दवा बन जाते हैं क्यों किसी के शब्द केवल हवा बन जाते हैं। 

दोस्तों यदि आपको ये विचार अच्छे लगे हो तो लाइक करें और अपने दोस्तों को शेयर करें।

धन्यवाद

मंगलवार, 17 मार्च 2020

Net#set#jrf sanskrit exam#charvak darshan#चार्वाक दर्शन

लोकायत दर्शन#चार्वाक दर्शन#बार्हस्पति  दर्शन से सम्बन्धित तथ्य
चार्वाक दर्शन के संस्थापक बृहस्पति माने जाते हैं इसलिए इसे बार्हस्पति दर्शन भी कहते है।

इसी का प्राचीन नाम लोकायत दर्शन है।

चार्वाक दर्शन सुख को ही जीवन का परम उद्देश्य मानता है।

 यह भौतिकता वादी दर्शन है जो वेदों की निंदा करता है।

यह अग्निहोत्र और श्राद्ध का निषेध करता है

चार्वाक दर्शन की दृष्टि में प्रत्यक्ष ही एकमात्र प्रमाण है।

चार्वाक दर्शन  ईश्वर और आत्मा का निषेध मानता है।

चार्वाक दर्शन काम को ही एकमात्र पुरुषार्थ मानता है

 चार्वाक दर्शन की दृष्टि में मृत्यु ही मोक्ष है।

चार्वाक दर्शन चार तत्वों को मानता है।👉 पृथ्वी जल तेज वायु

यह आकाश को तत्व नहीं मानता है।

चार्वाक दर्शन के सिद्धान्त
 प्रत्यक्ष प्रमाणवाद- चार्वाक दर्शन प्रत्यक्ष दिखाई देने वाली वस्तुओं को ही अंतिम सत्य मानता है यह अनुमान शब्द आदि प्रमाणो को नहीं मानता है।

 भौतिकतावा   - यह सांसारिक वस्तुओं को अत्यधिक महत्व देता है

भूत चैतन्य वाद  - पृथ्वी जल तेज वायु  इन 4 महा भूतों के सहयोग से ही शरीर में चेतनता उत्पन्न होती है यह कोई अलौकिक वस्तु नहीं है


ऐहिकसुखवाद- चार्वाक दर्शन  पृथ्वीलोक के सुख को ही महत्व देता है इसके अनुसार जो कुछ है वह इसी  पृथ्वी पर है इसलिए व्यक्ति को जब तक जीवित है  सुख पूर्वक रहना चाहिए इस संबंध में कहा भी गया है जब तक जियो सुख पूर्वक जियो   चाहे इसके लिए  किसी व्यक्ति से ऋण भी लेना पड़े तो संकोच नहीं करना चाहिए क्योंकि यह मानव जीवन फिर हमें नहीं मिलेगा। इसलिए जब तक रहो सुख पूर्वक रहो 

यावजीवेत् सुखम् जीवेत् ऋणम् कृत्वा घृतं पिबेद्
विशेष -
चार्वाक दर्शन,जैन दर्शन,बौद्धदर्शन ये तीनों नास्तिक दर्शन माने जाते हैं।

 चार्वाक दर्शन अवैदिक दर्शन में प्राचीनतम दर्शन है।

 यदि आप सभी को यह पोस्ट ज्ञानवर्धक लगे तो अपने दोस्तों के साथ शेयर करना ना भूले ताकि उन्हे भी परीक्षा की तैयारी में मदद मिले


शनिवार, 14 मार्च 2020

net #set#jrf exam sanskrit#sanskrit exam


Important questions for net#set#jrf exam sanskrit#sanskrit exam
sanskrit exam
1⃣मनुस्मृति के अनुसार क्रोध से उत्पन्न होने वाले  दोषो  की संख्या कितनी है?
 ✔️ 8

✏️दूसरों की चुगली करना, दुस्साहस करना, द्रोह करना, ईर्ष्या करना,  दूसरों के गुणों में दोष निकालना दूसरे के धन का अपहरण करना, वाणी में कठोरता लाना, निरपराधी को मारना     
2⃣ मनुस्मृति के अनुसार काम से उत्पन्न होने वाले दोषों की संख्या कितनी है?
✔️ 10

✏️शिकार करना, जुआ खेलना ,दिन में सोना ,दूसरे की निंदा करना स्त्रियो मे आसक्ति,नशा करना, नाचना ,गाना ,बजाना ,व्यर्थ घूमना     

3⃣ काम और क्रोध से उत्पन्न होने वाले दोषों का मूल कारण क्या है?
 ✔️ लोभ

4⃣संकेत ग्रह के कितने साधन बताए गए हैं
✔️8

5⃣शूद्रक द्वारा रचित मृच्छकटिकम् प्रकरण मे संस्कृत बोलने वाले  पात्रों की संख्या है ?
✔️ ६

6⃣स्वल्पोछिष्टस्तु तद्हेतु़....... विस्तार्यनेकधा: । रिक्त स्थान की पूर्ति कीजिए? 
 ✔️बीजं

✏️ दशरूपककार धनञ्जय ने अपनी रचना दशरूपक मे  पाँच अर्थप्रकतियाँ बताई है  

बीजं,  बिंदु, पताका, प्रकरी और कार्य  
    

7  वर्णस्वराद्युच्चारणप्रकारो यत्र शिक्ष्यते उपदिश्यते सा शिक्षा"  शिक्षा के संबंध में यह परिभाषा किसने दी है ? 

✔️सायणाचार्य ने 

 

8.शिक्षा के कितने अंग है

✔️? 6 

✏️वर्ण,स्वर,मात्रा,बल,साम,सन्तान

 

9.रामायण पर वैद्यनाथ  दीक्षित ने कौन सी टीका लिखी?

  ✔️दीपिका

 

10. गोविंद राज ने रामायण पर कौन सी टीका लिखी ✔️रामायण भूषण 

 

नोट रामायण पर 15वी,16वी,17वी शताब्दियो मे कई टीकाएँ लिखी गई थी ।अत: इनकी भी जानकारी हमें होनी चाहिए क्योंकि परीक्षाओं में टीकाओ से संबंधित प्रश्न भी पूछे जाते हैं इसलिए आप इनका अध्ययन करें 👇
Net#set#jrfexam sanskrit#sanskrit important question#रामायण कीटीकाएँ
रामायण ग्रन्थ की टीकाएँ

11.गंगाअवतरण "की कथा रामायण के किस कांड में है? 

✔️बालकांड  35 वे सर्ग से 44 वे सर्ग तक 

12.ऋषि श्रॄंग आख्यान बालकांड के किस 

 सर्ग में वर्णित है?

✔️ 10वे सर्ग  से 15 वे सर्ग तक


 ✏️ मरुतोत्पति आख्यान बालकांड के 46 वे सर्ग से 47 
वे सर्ग तक

 ✏️ अहिल्या आख्यान बालकांड के  49 में

 सर्ग में है

 ✏️   शुनशेपाख्यान  बालकांड के 62 वे सर्ग में         
  read more👇रामायण महाकाव्य से सम्बन्धित महत्त्वपूर्ण तथ्य#महषिवाल्मीकि की रामायण 
धन्यवाद
 उम्मीद करते है आप फिर  यहाँ से कुछ जानकारी पायेंगे



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मंगलवार, 3 मार्च 2020

मृच्छकटिकम् (प्रकरण) # संस्कृत साहित्य में शूद्रक की रचना#mrichchhakatikam

मच्छकटिकम् प्रकरण के सम्बन्ध में सामान्य तथ्य 

रचयिता---शूद्रक,
 अंक-10,
 रस-श्रृंगार,
नायक-चारुदत्त(एक निर्धन ब्राह्मण)  , नायिका --वसन्तसेना (एक गणिका)  चारुदत्त की पत्नी-धूता,  चारुदत्त का पुत्र- रोहसेन,  प्रतिनायक--शकार

,प्रकरण के नामकरण का आधार----** षष्ठ अंक **********                                             
प्रकरण के प्रत्येक अंक का शीर्षक इस प्रकार है----------
प्रथम अंक--अलंकार न्यास, द्वितीय अंक---धूतकर -संवाहक , तृतीय अंक----सन्धिच्छेद, चतुर्थ अंक---मदनिका-शर्विलक     पंचम अंक----दुर्दिन,  षष्ठ अंक---प्रवहण-विपर्यय,   सप्तम अंक--- आर्यकापहरण   अष्टम अंक---वसन्तसेना मोचन ,नवम अंक---व्यवहार, दशम अंक---संहार(उपसंहार)

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मृच्छकटिकम् प्रकरण#mrichchhkatikam# संस्कृत साहित्य


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