वैदिक साहित्य **अग्नि सूक्त**
अग्नि सूक्त का परिचय अग्नि सूक्त Rigveda के प्रथम मण्डल का प्रथम सूक्त है जिसके स्तुति कर्ता महर्षि मधुच्छन्दा/विश्वामित्र है। यह सूक्त इन्द्र सूक्त के पश्चात दूसरा सबसे बडा सूक्त है जिसमें 200सूक्तो में अग्नि देवता की स्तुति की गई है। इसके मंत्रो में गायत्री छन्द का प्रयोग हुआ है
नोट:-गायत्री छंद वैदिक छंद है जिसका केवल वैदिक साहित्य में ही प्रयोग हुआ है ।गायत्री छंद में कुल 24 अक्षर होते है।
अग्नि सूक्त 1.1 में कुल 9 मंत्र है जिनको यहाँ सामान्य रूप में बताया जा रहा है-
प्रथम मंत्र में अग्नि देव को कामनाओ को पूरा करने वाला, यज्ञ का पुरोहित,दान आदि दिव्य गुणो से सम्पन्न, विभिन्न रत्नो अर्थात यज्ञ के फलस्वरूप प्राप्त होने वाले श्रेष्ठ पदार्थो को धारण करने वाला आदि सभी नामो से सम्बोधित कर स्तुति का प्रारम्भ किया गया है।
दूसरे मंत्र में बताया है कि अग्नि देव की प्राचीन भृगु आदि के द्वारा भी स्तुति की जाती थी और अब नवीन विश्वामित्र आदि महर्षियों द्वारा स्तुति की जाती है अत:अग्नि देव सभी कालो में स्तुति योग्य माने गये हैं। &nbs p;
तीसरे मंत्र में अग्नि देवता की स्तुति का सुफल बताया है कि अग्नि देवता की स्तुति से यजमान प्रतिदिन पोषण को प्राप्त होने वाले, दानादि के द्वारा यश के प्राप्त होने वाले,पुत्र आदि वीरो से युक्त धन को प्राप्त करता है।
चतुर्थ मंत्र में कहा गया है कि तुम जिस हिंसा से रहित यज्ञ को सभी दिशाओ में प्राप्त कर रहे हो वह यज्ञ ही सभी देवताओ की संतुष्टि के लिए प्राप्त होता है।
पाँचवे मंत्र में अग्निदेवता को होम को निष्पन्न करनेवाला,अतीत और भविष्य को जानने वाला ,मिथ्या से रहित, विविध प्रकार की कीर्ति से युक्त वालो मे श्रेष्ठ, आदि गुणो से स्तुति करते हुए अन्य देवताओ को इस यज्ञ में लाने की प्रार्थना की गई है।
छठे मंत्रमें अग्नि देव को अपने यजमान के लिए सभी प्रकार की वस्तुओ को प्रदानकरने वाला बताते हुए उसके कल्याणकारी स्वरूप को प्रदर्शित किया है।
सातवे मंत्र में नमस्कार का भाव है।
आठवे मंत्र में अग्नि देवता के अन्य विशेषण है -प्रकाशमान, हिंसा रहित यज्ञो का रक्षक, सत्य कर्मो को पुन:पुन प्रकाशित करने वाले और घर की यज्ञशाला में बढ़ने वाले हे अग्नि देव !नमस्कार करते हुए आपके समीप हम जाते है।
नवे और अंतिम मंत्र में अग्नि देव को पितातुल्य अपनी संतान का सर्वहितैषी बनने की कामना है।
विशेष :- दोस्तों अग्नि सूक्त ऋग्वेद का बहुत ही महत्त्वपूर्ण सूक्त माना जाता है जिसे विभिन्न नामों से संबोधित किया गया है।अग्नि देवता का हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है चाहे वह आध्यात्मिक हो भौतिक ह या धार्मिक
संस्कृत के विद्यार्थियों के लिए परीक्षा की दृष्टि से इसका अध्ययन बहुत ही महत्वपूर्ण है सामान्य रूप मे भी अध्ययन ज्ञानवर्धक है ।
👉 वैदिक साहित्य प्रश्नोत्तरी (संस्कृत साहित्य)
वैदिक साहित्य--**अग्नि सूक्त** |
नोट:-गायत्री छंद वैदिक छंद है जिसका केवल वैदिक साहित्य में ही प्रयोग हुआ है ।गायत्री छंद में कुल 24 अक्षर होते है।
अग्नि सूक्त 1.1 में कुल 9 मंत्र है जिनको यहाँ सामान्य रूप में बताया जा रहा है-
प्रथम मंत्र में अग्नि देव को कामनाओ को पूरा करने वाला, यज्ञ का पुरोहित,दान आदि दिव्य गुणो से सम्पन्न, विभिन्न रत्नो अर्थात यज्ञ के फलस्वरूप प्राप्त होने वाले श्रेष्ठ पदार्थो को धारण करने वाला आदि सभी नामो से सम्बोधित कर स्तुति का प्रारम्भ किया गया है।
दूसरे मंत्र में बताया है कि अग्नि देव की प्राचीन भृगु आदि के द्वारा भी स्तुति की जाती थी और अब नवीन विश्वामित्र आदि महर्षियों द्वारा स्तुति की जाती है अत:अग्नि देव सभी कालो में स्तुति योग्य माने गये हैं। &nbs p;
तीसरे मंत्र में अग्नि देवता की स्तुति का सुफल बताया है कि अग्नि देवता की स्तुति से यजमान प्रतिदिन पोषण को प्राप्त होने वाले, दानादि के द्वारा यश के प्राप्त होने वाले,पुत्र आदि वीरो से युक्त धन को प्राप्त करता है।
चतुर्थ मंत्र में कहा गया है कि तुम जिस हिंसा से रहित यज्ञ को सभी दिशाओ में प्राप्त कर रहे हो वह यज्ञ ही सभी देवताओ की संतुष्टि के लिए प्राप्त होता है।
पाँचवे मंत्र में अग्निदेवता को होम को निष्पन्न करनेवाला,अतीत और भविष्य को जानने वाला ,मिथ्या से रहित, विविध प्रकार की कीर्ति से युक्त वालो मे श्रेष्ठ, आदि गुणो से स्तुति करते हुए अन्य देवताओ को इस यज्ञ में लाने की प्रार्थना की गई है।
छठे मंत्रमें अग्नि देव को अपने यजमान के लिए सभी प्रकार की वस्तुओ को प्रदानकरने वाला बताते हुए उसके कल्याणकारी स्वरूप को प्रदर्शित किया है।
सातवे मंत्र में नमस्कार का भाव है।
आठवे मंत्र में अग्नि देवता के अन्य विशेषण है -प्रकाशमान, हिंसा रहित यज्ञो का रक्षक, सत्य कर्मो को पुन:पुन प्रकाशित करने वाले और घर की यज्ञशाला में बढ़ने वाले हे अग्नि देव !नमस्कार करते हुए आपके समीप हम जाते है।
नवे और अंतिम मंत्र में अग्नि देव को पितातुल्य अपनी संतान का सर्वहितैषी बनने की कामना है।
विशेष :- दोस्तों अग्नि सूक्त ऋग्वेद का बहुत ही महत्त्वपूर्ण सूक्त माना जाता है जिसे विभिन्न नामों से संबोधित किया गया है।अग्नि देवता का हमारे जीवन में बहुत महत्वपूर्ण स्थान है चाहे वह आध्यात्मिक हो भौतिक ह या धार्मिक
संस्कृत के विद्यार्थियों के लिए परीक्षा की दृष्टि से इसका अध्ययन बहुत ही महत्वपूर्ण है सामान्य रूप मे भी अध्ययन ज्ञानवर्धक है ।
👉 वैदिक साहित्य प्रश्नोत्तरी (संस्कृत साहित्य)
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