मनुस्मृति-- सप्तम अध्याय
मनुस्मृति के सप्तम अध्याय में राजा के कर्तव्यों का वर्णन करते हुए मनु कहते हैं कि राजा को हमेशा विनयशील रहना चाहिए। विनय रहित होने के कारण अनेक राजा धन संपत्ति तथा कुटुंब सहित नष्ट हो गए थे तथा जंगलों में रहने वालों ने भी विनयशील होने के कारण राज्यों को प्राप्त किया इस संबंध में उदाहरण देते हुए कहते हैं राजा वेन नहुष सुदास,निमि आदि विनय शील नहीं होने के कारण नष्ट हो गए जबकि पृथु तथा मनु ने विनय के कारण राज्य को प्राप्त किया धनपति कुबेर ने विनय से धन ऐश्वर्य को तथा विश्वामित्र ने ब्राह्मणत्व को प्राप्त किया। राजा को जितेंद्रिय होना चाहिए मनु कहते है।कि राजा के लिए सभी विकारो से दूर रहना अनिवार्य है काम और क्रोध से उत्पन्न व्यसनो के त्याग के संबंध में चर्चा करते हुए मनु कहते हैं कि कुल 18 व्यसन होते है।जिनमे से काम से उत्पन्न 10 व्यसन तथा क्रोध से उत्पन्न 8 व्यसन परिणाम में बहुत दुखदाई होते हैं अतः राजा को उन्हें प्रयत्नपूर्वक त्याग देना चाहिए । काम से उत्पन्न 10 व्यसन कौनसे है । शिकार करना, जुआ खेलना ,दिन में सोना ,दूसरे की निंदा करना स्त्रियो मे आसक्ति,नशा करना, नाचना ,गाना ,बजाना ,व्यर्थ घूमना क्रोध से उत्पन्न आठ व्यसन कौनसे है। दूसरों की चुगली करना, दुस्साहस करना, द्रोह करना, ईर्ष्या करना, दूसरों के गुणों में दोष निकालना दूसरे के धन का अपहरण करना, वाणी में कठोरता लाना, निरपराधी को मारना काम और क्रोध से उत्पन्न व्यसनों का मूल कारण लोभ को माना गया है इसलिए राजा लोभ को जीते । व्यसन को मृत्यु से भी अधिक भयंकर बताया गया है क्योकि व्यसनी व्यक्ति मरकर नरक मे जाता है जबकि अव्यसनी मरने के पश्चात स्वर्ग मे जाता है।
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मनुस्मति का सप्तम अध्याय |
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1 टिप्पणी:
श्रीमान जी सप्तम अध्याय की पीडीएफ उपलब्ध करवा सकते हो क्या ?
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