काव्य क्या है? "काव्य "कला का वह सर्वोत्कृष्ट रूप है जो जीवन को सौन्दर्य से भर देता है" काव्य" में शब्दो की रमणीयता और अर्थ की अनुकूलता पायी जाती है अलंकार की शोभा, गुणो की विशिष्टता पायी जाती है।" काव्य "वह उत्तम औषधि है जो निरन्तर सेवन करने पर सभी शारीरिक और मानसिक रोगो को दूर करने में समर्थ है । काव्यकारो ने अपने काव्य के प्रारम्भ में "काव्य के लक्षण" दिए है संस्कृत भाषा में अनेक काव्यशास्त्रीय ग्रंथ है जिसमें काव्य के लक्षण दिए गये है काव्यालंकारशास्त्र या साहित्यशास्त्र- काव्य शास्त्रीय तत्वों का विवेचन करने वाले ग्रंथो का प्राचीन नाम" काव्यालंकार शास्त्र "है काव्यशास्त्र में रस,गुण,अलंकार आदि अनेक तत्वों का विवेचन होता है। आचार्य वामन के अनुसार काव्यशास्त्र सम्बन्धी ग्रंथो को काव्यालंकार शास्त्र इसलिए कहा जाता है क्योकि उनमे काव्यगत सौन्दर्य का निर्देश होता है। आधुनिक युग में काव्यालंकारशास्त्र की अपेक्षा "साहित्यशास्त्र "नामक शब्द का प्रयोग होने लगा है रुय्यक ने अपने ग्रंथ का नाम साहित्य मीमांसा,विश्वनाथ कविराज ने अपने ग्रंथ का नाम साहित्यदर्पण रखा है। काव्य के अंतर्गत दृश्यकाव्य और श्रव्यकाव्य दोनों का समावेश होने के कारण काव्य शास्त्र को समस्त काव्यो की कसौटी माना गया है।अतः काव्य के मर्म को समझने के लिए काव्यशास्त्र का ज्ञान होना अनिवार्य है। काव्यशास्त्रीय ग्रंथ और उनके रचनाकार काव्यालंकार- भामह , काव्यादर्श- दण्डी , काव्यालंकार सार संग्रह-उद्भट, काव्यालंकारसूत्र -वामन, काव्यालंकार-रूद्रट ध्वन्यालोक -आनन्दवर्धन, काव्यमीमांसा-राजशेखर , दशरूपक-धनञ्जय, वक्रोक्तिजीवितम्-कुन्तक , सरस्वतीकण्ठाभरण- भोजराज, कविकण्ठाभरण- क्षेमेन्द्र काव्य प्रकाश-मम्मट, साहित्यदर्पण - विश्वनाथ कविराज ,रसगंगाधर- पण्डित जगन्नाथ
आचार्यो द्वारा दी काव्य के संबंध में दी गई परिभाषाओं में से कुछ परिभाषाएँ यहां प्रस्तुत की जा रही है जिनको पढ़ने के पश्चात आप काव्य को स्पष्ट रूप में जान पायेंगे
काव्य की परिभाषाएँ |
अग्निपुराणकार महर्षि व्यास के अनुसार संक्षेपाद्वाक्यमिष्टार्थव्यवच्छिन्ना पदावली काव्यं स्फुरदलंकारं गुणवद् दोषवर्जितम् संक्षिप्त, इष्ट, अर्थयुक्त, स्फुट अलंकारयुक्त, गुणयुक्त तथा दोषरहित पदावली को काव्य कहते है। आचार्य भामह ने "काव्यालंकार में लिखा है कि "शब्दार्थौ सहितौ काव्यम्" अर्थात अर्थानुगत शब्दो के समुदाय को काव्य कहते है यह अर्थानुगत शब्दसमुदाय चमत्कारपूर्ण तथा कवि प्रतिभा प्रकाशित होना चाहिए। आचार्य दण्डी काव्य की परिभाषा करते हुए कहते है "शरीरं तावदिष्टार्थव्यवच्छिन्ना पदावली" अर्थात् इष्ट या चमत्कृत अर्थ से परिपूर्ण पदावली ही काव्य है। आचार्य वामन के अनुसार रीतिरात्मा काव्यस्य। विशिष्टपद रचना रीति आचार्य वामन ने विशेष संघटना काे रीति माना है उनके अनुसार रीति ही काव्य की आत्मा है आचार्य कुन्तक के अनुसार शब्दार्थौ सहितौ वक्रकविन्यापारशालिनी । बन्धे व्यवस्थित्तौ काव्यं तद्विदाहादकारिणी आचार्य कुन्तक ने अपने काव्य लक्षण में वक्रोक्ति को काव्य का प्राणभूत तत्त्व माना है। आनन्दवर्धन ने ध्वन्यालोक में ध्वनि को काव्य माना है। ध्वनिरात्मा काव्यस्य रसगंगाधरकार पण्डित जगन्नाथ ने काव्य को इस प्रकार परिभाषित किया है- रमणीयार्थ प्रतीपादक:शब्द काव्यम् अर्थात् रमणीय अर्थ का प्रतिपादन करने वाला शब्द समुदाय काव्य है भोज ने सरस्वती कण्ठाभरण में काव्य का लक्षण इस प्रकार दिया है निर्दोषं गुणवत् काव्यमलंकारै अलंकृतम्। रसान्वितं कवि: कुर्वन् कीर्ति प्रीति च विन्दति ।। वाग्देवताकार आचार्य मम्मट ने दोषहित गुणसहित , यथा संभव अलंकारयुक्त शब्दार्थ को काव्य माना है तददोषौ शब्दार्थौ सगुणावनलड्कृति पुन:क्वापि (काव्यप्रकाश) नोट यह काव्यलक्षण Exams में पूछा जाता है "साहित्यदर्पण" के रचयिता कविराज "विश्वनाथ" रसात्मक वाक्य को काव्य कहते है। "वाक्यं रसात्मकं काव्यम् (Important)
काव्यकारो द्वारा दिए गए उक्त लक्षणो के आधार पर कह सकते है कि काव्य कवि का कर्म है जहाँ अभिष्ट अर्थ की प्रतीति कराने वाला शब्द समुदाय विद्यमान हो,जहाँ रस में बाधक तत्त्वो का अभाव हो,गुणऔर अलंकारो का सद्भाव हो यह भी पढे़ "भारवे:अर्थगौरवम्" किरातार्जुनीयम् का प्रथम सर्ग
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