संस्कृत शिक्षण की नवीन विधियाँ
लार्ड मैकाले की शिक्षा पद्धति के पश्चात से प्रारम्भ जाने वाली विधियां जो संस्कृत शिक्षण में सहायक है वे सभी संस्कृत शिक्षण की नवीन विधियों के अंतर्गत आती है ।
संस्कृत शिक्षण की नवीन विधियाँ निम्नलिखित है
पाठ्यपुस्तक विधि
यह संस्कृत शिक्षण की लोकप्रिय विधि है
इसमें संस्कृत का शिक्षण कक्षा के स्तर के अनुसार बनाई गई पाठ्य पुस्तक पर आधारित होता है।
इस विधि के प्रवर्तक वेस्ट महोदय है।
इस विधि के अंतर्गत किया जाने वाला शिक्षण का केंद्र बिंदु पाठ्य पुस्तक होती है।
गद्य,पद्य, व्याकरण पाठ का शिक्षण पाठ्य पुस्तक के अनुसार होता है।
पुस्तकों का मुख्य उद्देश्य यह है कि इन पुस्तकों का अध्ययन करके विद्यार्थी शिक्षक की सहायता के बिना भी स्वतंत्र रूप से संस्कृत का ज्ञान प्राप्त कर सकते है।
छात्र शिक्षक की अनुपस्थिति में भी अध्ययन कर सकते हैं अभ्यास कर सकते हैं जिससे छात्रों में स्वावलंबन की भावना का विकास होता है।
इसमे मातृभाषा के द्वारा नवीन शब्दो का अर्थ बतलाया जाता है।
पाठ्यपुस्तक विधि के गुण
.यह विधि संस्कृत शिक्षण की प्रक्रिया में नियमितता लाती है
.छात्रों को शुद्ध उच्चारण के अभ्यास का अवसर मिलता है
. मातृभाषा के द्वारा नवीन शब्दों का अर्थ बताने से छात्रों के शब्द भंडार में वद्धि होती है।
संस्कृत विषय के प्रति अनुराग उत्पन्न करने की यह सरलतम विधि है।
पाठ्यपुस्तक विधि के दोष यह यांत्रिक विधि है उसमें शिक्षण का केंद्र बिंदु पाठ्य पुस्तक होती है जो मानसिक शक्तियों के विकास में सहायक नहीं है ।
छात्रों में समीक्षात्मक दृष्टिकोण का विकास नहीं हो पाता है।
पाठयपुस्तको से प्राप्त ज्ञान केवल सैद्धांतिक होता है, व्यवहारिक नही
प्रत्यक्ष विधि यह विधि निर्बाध पद्धति ,सुगम पद्धति, मातॄ विधि,प्राकृतिक विधि आदि नामों से भी जानी जाती है।
प्रत्यक्ष विधि का सर्वप्रथम प्रयोग अंग्रेजी शिक्षण में 1901 में फ्रांस में गुईन ने किया। जबकि संस्कृत भाषा शिक्षण में प्रत्यक्ष विधि का प्रयोग प्रो.व.पी वोकील महोदय ने अल्फ्रिनस्टोन नामक विद्यालय मुंबई में किया
प्रत्यक्ष विधि की मुख्य विशेषता यह है कि में जिस भाषा का शिक्षण कराना है उसका माध्यम भी वही भाषा होती है जैसे संस्कृत शिक्षण में प्रत्यक्ष विधि के माध्यम से संस्कृत की शिक्षा संस्कृत भाषा के माध्यम से ही दी जाती है अन्य किसी भाषा को माध्यम नहीं बनाया जाता
संस्कृत शिक्षण में इस विधि के माध्यम से शिक्षण कराते समय कक्षा में संस्कृतमय वातावरण बनाया जाता है जिसे सुनकर और बोलकर संस्कृत भाषा के प्रयोग की प्रत्यक्ष शिक्षा प्राप्त होती है छात्र और शिक्षक दोनों ही संस्कृत के माध्यम से अपने भावों को प्रकट करते हैं
प्रत्यक्ष विधि के गुण
प्रत्यक्ष विधि संस्कृत शिक्षण की सर्वोत्तम विधि है
छात्र और शिक्षक दोनों के मध्य संभाषण होने से वे सक्रिय रहते है। कक्षा में सजीव वातावरण का निर्माण होता है।
इस विधि में श्रवण और वाचन कौशल के पर्याप्त अवसर प्राप्त होते है।
छात्रों में संस्कृत माध्यम से अपने विचारों को स्वतंत्र रूप से प्रकट करने की क्षमता का विकास होता है ।
यह विधि छात्रों में संस्कृत के प्रति अभिरुचि और अभिवृति को बढ़ाती है।
प्रत्यक्ष विधि के दोष
यह विधि प्रतिभाशाली छात्रों के लिए उपयुक्त है परंतु सामान्य और मंदबुद्धि वालों को के लिए उपयुक्त नहीं है
प्राथमिक स्तर पर इस विधि से शिक्षणकार्य नहीं कराया जा सकता है ।
प्रत्येक विद्यालय में प्रत्यक्ष विधि से पढा़या जाना संभव नहीं है क्योंकि प्रशिक्षित शिक्षकों का अभाव पाया जाता है।
वर्तमान में संस्कृत भाषा लोक व्यवहार की भाषा नहीं होने के कारण कि इस विधि द्वारा संस्कृत शिक्षण की गति मंद रहती है।
संस्कृत की प्रत्येक विधा को इस विधि के माध्यम से रुचिकर नहीं बनाया जा सकता जैसे पद्य पाठ पढ़ाते समय सौंदर्य अनुभूति जैसे सूक्ष्म भावों को स्पष्ट करने में मातृभाषा अधिक सहायक है।
निष्कर्ष पाठ्यपुस्तक विधि संस्कृत शिक्षण की सबसे लोकप्रिय विधि है जबकि प्रत्यक्ष विधि संस्कृत शिक्षण की सर्वश्रेष्ठ विधि है।
विशेष शेष नवीन शिक्षण विधियों के बारे में हम अगली पोस्ट में जानेंगे। उम्मीद करती हूं इस पोस्ट में जिन दो विधियों के बारे में बताया गया है । दोनों का अध्ययन परीक्षा की दृष्टि से बहुत आवश्यक है।
Read more संस्कृत शिक्षण की विधियों से संबंधित पूर्व में लिखी गई पोस्ट पढ़ने के लिए नीचे दी जा रही लिंक पर क्लिक कीजिए
संस्कृत शिक्षण की प्राचीन विधियाँ -व्याकरण अनुवाद विधि याँ भण्डारक विधि
व्याकरण विधि,व्याख्या विधि,कथानायक विधि
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