अनुभव= स्मृति से भिन्न ज्ञान अनुभव कहलाता है।
स्मृति भावना पर आधारित होती है जबकि अनुभव नामक ज्ञान स्मरण से भिन्न होता है किसी वस्तु को देखकर होने वाला मानसिक व्यापार बुद्धि का विषय होने पर अनुभव कहलाता है ।
अनुभव के दो भेद है
यथार्थ अनुभव और अयथार्थ अनुभव
यथार्थानुभव = जो वस्तु जैसी है उसका वैसा ही ज्ञान प्राप्त होना "यथार्थ अनुभव" कहलाता है। जैसेचांदी को देखकर चांदी का ज्ञान प्राप्त होना।
यथार्थ अनुभव के चार उपभेद है।
1.प्रत्यक्ष, 2.अनुमिति 3.उपमिति 4.शाब्द
इन चारों के आधार पर प्रमाण भी चार माने गए हैं 1.प्रत्यक्ष प्रमाण 2अनुमान प्रमाण3. उपमान प्रमाण 4. शब्द प्रमाण
आइए हम यथार्थ अनुभव के चारों उपभेदों के बारे में जान लेते हैं
प्रत्यक्ष यथार्थ अनुभव= प्रत्येक इंद्रिय का उसके विषय से साक्षात् संबंध होने पर जो ज्ञान प्राप्त होता है वह यथार्थ अनुभव प्रत्यक्ष कहलाता है जैसे घड़े को आंख से देखने पर यह घड़ा है इस प्रकार का ज्ञान होना प्रत्यक्ष यथार्थ अनुभव है।
अनुमति यथार्थ अनुभव= अनु अर्थात बाद में अर्थातप्रत्यक्ष ज्ञान के पश्चात होने वाला ज्ञान। प्रत्यक्षसे भिन्न कारण को देखकर कार्य का अथवा कार्य को देखकर कारण का अनुमान कर लेना अनुमति यथार्थ अनुभव है। जैसे सुबह उठने पर चारों ओर पानी देखने पर रात्रि में वर्षा होने का अनुमान यही 'अनुमिति" है
उपमिति यथार्थ अनुभव= किसी वस्तु या व्यक्ति का किसी दूसरे वस्तु या व्यक्ति से कुछ समानता होने पर किसी नवीन वस्तु का ज्ञान होना "उपमिति" नामक यथार्थ अनुभव कहलाता है।
जैसे गो के समान गवय होता है किसी व्यक्ति के कहने पर जब कोई गवय(नील गाय) से अपरिचित व्यक्ति गो(गाय)से समानता रखने वाले किसी किसी पशु को देखता है तो उसे अच्छा यही गवय (नील गाय)है इस प्रकार का नवीन ज्ञान प्राप्त होता है। यही"उपमिति" है
शब्द यथार्थअनुभव= शब्द से प्रतीत यथार्थ ज्ञान "शाब्द" नामक यथार्थ अनुभव कहलाता है
आगे अयथार्थ अनुभव और उसके उपभेदों के बारे में जानते हैं।
अयथार्थ अनुभव जो वस्तु जैसी नहीं है फिर भी उसका वैसे ही रूप में मानना समझना अर्थात वास्तविकता से भिन्नअवास्तविक ज्ञान"अयथार्थ अनुभव" कहलाता है
अयथार्थ अनुभव तीन प्रकार का होता है।
संशय, विपर्ययऔर तर्क
संशय =किसी एक वस्तु में परस्पर विरुद्ध अनेक धर्मों के संबंध का ज्ञान
जैसे किसी सूखे ठूंठ वृक्ष को देखकर यह ठूँठ है या मनुष्य इस प्रकार का संशय युक्त ज्ञान प्राप्त होता है।
विपर्यय= वास्तविकता से रहित है अवास्तविक मिथ्या ज्ञान अर्थात जो जैसा नहीं है उसका भी वैसा ज्ञान होना ।
जैसे सर्प को रस्सी समझ लेना।
तर्क=व्याप्य के आरोप से व्यापक का आरोप करना
जैसे यदि पर्वत में आग न हो तो धुआँ भी नहीं होगा इसमे अग्नि के अभाव रूप व्याप्य आरोप (मिथ्याज्ञान) से धूम अभाव रूप व्यापक का आरोप (मिथ्याज्ञान)है।
संक्षेप में इस प्रकार अनुभव के दो भेद है
यथार्थ अनुभव और यथार्थ अनुभव
यथार्थ अनुभव के पुनः चार भेद है
प्रत्यक्ष, अनुमति उपमिति और शाब्द
अयथार्थ अनुभव के पुनः तीन भेद है
संशय,विपर्यय और तर्क
धन्यवाद दोस्तों, उम्मीद है कि आप सभी का सहयोग आगे भी मिलता रहेगा।
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