प्रश्न१ प्रत्यक्ष प्रमाण किसे कहते है?
"तत्र प्रत्यक्षज्ञानकरणं प्रत्यक्षम्" प्रत्यक्ष ज्ञान या प्रमा का जो असाधारण कारण है वह ही प्रत्यक्ष प्रमाण है।
प्रश्न२ अब प्रश्न उठता है कि प्रत्यक्ष प्रमा क्या है?
"इन्द्रियार्थ सन्निकर्षजन्यं ज्ञानं प्रत्यक्षम्" अपने विषय के साथ इन्द्रियों का सामीप्य संबंध होने पर उससे जो ज्ञान उत्पन्न होता है।वह प्रत्यक्ष कहलाता है।
प्रत्यक्ष प्रमा के दो भेद है-
निर्विकल्पक ज्ञान
सविकल्पक ज्ञान
प्रत्यक्ष ज्ञान(प्रमा) का कारण इन्द्रियार्थ सन्निकर्ष( इन्द्रियो का अपने विषयो से संयोग अर्थात समीपता) है।
प्रश्न३ इन्द्रियार्थ सन्निकर्ष कितने प्रकार का है?
इन्द्रियार्थ सन्निकर्ष के छः भेद है
1.संयोग सन्निकर्ष= जब इन्द्रिय का किसी वस्तु से संयोग होता है तो उसे संयोग सन्निकर्ष होता है।जैसे आँख द्वारा घडे़ को देखना
2.संयुक्त समवाय=जब आँख द्वारा घडे़ का ज्ञान होता है उसके पश्चात उसमे शुक्ल,रक्त,पीत जैसे रंग का भी ज्ञान होता है तो वहाँ संयुक्त समवाय होता है।
संयुक्त समवाय में वस्तु के गुणो का प्रत्यक्ष होता है।
3.संयुक्त समवेत समवाय- जब वस्तु से संयोग होने पर उसकी जाति का बोध होता है तो वहाँ संयुक्त समवाय होता है। जैसै घडे़ में शुक्लत्व,लालत्व,पीतत्व का बोध होना।
4.समवाय =श्रोत्रेन्द्रिय(कान) से शब्द का ज्ञान
5.समवेत समवाय=श्रोत्रेन्द्रिय(कान) से शब्द की जाति शब्दत्व का बोध होना
6.विशेषण-विशेष्य= किसी भूतल पर घडे़ का अभाव होना विशेषण-विशेष्य भाव सन्निकर्ष है। यहाँ" घडे़ का अभाव" विशेषण है " भूतल "विशेष है।
निष्कर्ष= उक्त षड्विध(छः प्रकार)का सन्निकर्ष प्रत्यक्ष प्रमा के आधार है।
तर्कभाषा #केशवमिश्र#तर्क भाषा के महत्त्वपूर्ण प्रश्नोत्तर
कोई टिप्पणी नहीं:
एक टिप्पणी भेजें